भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सोमवार की मुलाकात के बाद जम्मू एवं कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने दोहराया कि कश्मीर पर अटल बिहारी वाजपेयी की रणनीति को अपनाने की ज़रूरत है, डोर के सिरे को वहीं से पकड़े जाना चाहिए जहां वाजपेयी ने उसे छोड़ा था.
कश्मीर के ज्यादातर राजनेता इन दिनों वाजपेयी की कश्मीर नीति की चर्चा करते हैं और उसे अपनाने पर ज़ोर देते हैं. लेकिन अहम सवाल ये है कि वाजपेयी ने ऐसा कौन सा ज़ादू किया था कि जो उनके बाद के प्रधानमंत्री नहीं कर सके.
हालांकि वास्तविकता ये है कि वाजपेयी जी ने कश्मीर की समस्या को सुलझाने के लिए कुछ ख़ास नहीं किया था, लेकिन उनकी छवि ऐसी है कि ढेरों कश्मीरी ये कहते नजर आते हैं कि कश्मीर को लेकर वाजपेयी की नीति सही थी.
दरअसल कश्मीर में जब भी कोई संकट बढ़ता है तो लोगों को वाजपेयी के नारे कश्मीरियत, जम्हूरियत और इंसानियत की याद आती है.
वाजपेयी कश्मीर को शांत रखने का तरीका जानते थे और ये तरीका था पाकिस्तान के साथ बातचीत जारी रखा. उन्होंने अपने प्रधानमंत्री के कार्यकाल में पाकिस्तान से लगातार बातचीत जारी रखी.
वाजपेयी ये समझते थे कि कश्मीर में शांति बनाए रखने के लिए पाकिस्तान के साथ कुछ ना कुछ बातचीत ज़रूरी है. यही वजह है कि कारगिल युद्ध और संसद पर हमले के बाद भी उन्होंने पाकिस्तान के साथ बातचीत का रास्ता खुला रखा.
इसके अलावा वाजपेयी ये भी जानते थे कि कश्मीर को लेकर केंद्र सरकार के कई फ़ैसले ग़लत रहे हैं और कोई भी राष्ट्रीय स्तर का नेता कश्मीरियों के दुख को नहीं समझ सका है.
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