कश्मीर घाटी में सामान्य स्थिति कब बहाल होगी, यह राजग सरकार के लिए एक यक्ष प्रश्न बन गया है?

गृहमंत्री राजनाथ सिंह की इस बात से शायद ही कोई असहमत हो कि कश्मीर हमारा है, कश्मीरी हमारे हैं और कश्मीरियत भी हमारी है। लेकिन उनकी दूसरी बात को लेकर जरूर कुछ सवाल उठते हैं। सिक्किम के अपने दो दिन के दौरे के दौरान गृहमंत्री ने रविवार को यह भी कहा कि राजग सरकार ही कश्मीर समस्या का स्थायी हल निकालेगी, इस बात का उन्हें पूरा भरोसा है। स्थायी समाधान तो दूर, कश्मीर घाटी में सामान्य स्थिति कब बहाल होगी, यह राजग सरकार के लिए एक यक्ष प्रश्न बन गया है। राजग सरकार के तीन साल पूरे होने पर जश्न मनाने और जोर-शोर से उपलब्धियां गिनाने का क्रम चल रहा है। पर अगर कश्मीर की कसौटी पर देखें, तो सरकार कहां खड़ी है? इस मामले में वह दिशाहीन और दूरंदेशी से लगातार दूर होती नजर आती है। घाटी की हालत इतनी बिगड़ गई है जिसकी किसी को कल्पना नहीं रही होगी। पिछले साल जुलाई में आतंकी संगठन हिज्बुल के कमांडर बुरहान वानी के मारे जाने के बाद से अशांति, विरोध-प्रदर्शन और सब तरह की हिंसा का अप्रत्याशित दौर शुरू हुआ, जो लगातार और बिगड़ता गया है। सरकार सेना की सराहना करते हुए आतंकियों के मारे जाने के आंकड़े पेश करती है।

इसमें दो राय नहीं कि घाटी में सेना एक मुश्किल चुनौती का सामना कर रही है और इस क्रम में उसके कई जवानों ने अपनी कुर्बानी दी है। और यह क्रम जारी है। दो दिन पहले सेना ने चार आतंकियों को मार गिराया। पर चौबीस घंटों में उसे अपने तीन जवानों को भी खोना पड़ा। सवाल यह है कि सरकार सिर्फ सेना के भरोसे क्यों है? राजनाथ सिंह ने जिस स्थायी हल की बात कही है, क्या उसके लिए कोई पहल हो रही है? कश्मीरियत, कश्मीर और कश्मीरी हमारे हैं यह कह देने भर से कुछ नहीं होगा। कश्मीरियों को भी लगना चाहिए कि बाकी भारत उनसे हमदर्दी रखता है और उनके नागरिक अधिकार किसी से कम नहीं हैं। सवाल है कि कश्मीरियों का भरोसा जीतने के लिए राजग सरकार ने क्या एक भी कदम उठाया है? अभी तक तो विपक्ष को विश्वास में लेने की भी जरूरत उसने नहीं समझी है। जनता दल (एकी) के वष्ठि नेता शरद यादव ने कश्मीर के हालात को बेकाबू बताते हुए कहा है कि वहां शांति लाना बेहद चुनौतीपूर्ण है। इस तरह के चिंता भरे स्वर और भी विपक्षी नेताओं के बयानों तथा बातचीत में उभरे हैं। देश के लिए ऐसे बेहद नाजुक मौकों पर सभी दलों से राय-मशविरा करने की परिपाटी रही है। लेकिन सरकार ने कोई सर्वदलीय बैठक अब तक नहीं बुलाई है। सर्जिकल स्ट्राइक और नोटबंदी, दोनों की बाबत यह दावा किया गया था कि इनसे आतंकवाद की कमर टूट जाएगी। पर क्या ऐसा हो पाया है?

कश्मीर समस्या केवल कानून-व्यवस्था की नहीं है, यह सच्चाई हाल के दिनों में और भी उजागर हुई है। सेना और पुलिस पर पत्थर फेंकने वालों में लड़कियां तक शामिल दिखती हैं। श्रीनगर उपचुनाव में सिर्फ सात फीसद वोट पड़े थे। तलाशी के दौरान सेना को स्थानीय लोगों के कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है। यह सब बताता है कि केंद्र सरकार समस्या की वास्तविक प्रकृति और जटिलता को समझते हुए कोई ऐसा कदम नहीं उठा पा रही है जो हालात को सामान्य बनाने की दिशा में एक निर्णायक मोड़ साबित हो सके। कभी-कभी राज्यपाल शासन की संभावना जताई जाती है। पर क्या राज्य की मौजूदा स्थिति राजनीतिक अस्थिरता की वजह से है? केंद्र में तो भाजपा है ही, राज्य की सत्ता में भी साझेदार है। पीडीपी और भाजपा ने कश्मीर समस्या के स्थायी हल के लिए ‘गठबंधन का एजेंडा’ जारी किया था। उस पर कितना अमल हुआ?

 

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