राष्ट्रीय हरित अधिकरण, एनजीटी के पूर्ण प्रतिबंधों के बावजूद हरियाणा और पंजाब में किसान फसलों के अवशिष्ट को निपटाने के लिए जलाने की प्रक्रिया ही अपना रहे हैं। हाल ही में नासा की एक तस्वीर में दिखाया गया है कि 25 अप्रैल से 3 मई के बीच फसलों के अवशिष्ट को बड़े पैमाने पर जलाया गया है। इससे दिल्ली और आसपास के शहरों में प्रदूषण में व्यापक रूप में वृद्धि होने की आशंका है।
नासा की इस तस्वीर में दिखाया गया है कि पिछले सप्ताह 25 अप्रैल से 3 मई के बीच फसलों के अवशिष्ट को निपटाने के लिए किसानों ने जलाने का अपना पारंपरिक तरीका ही इस बार भी अपनाया जबकि इस पर एनजीटी ने पूरी तरह से प्रतिबंध लगा रखा है। खरीफ फसलों की बुआई के लिए खेतों को तैयार करने के क्रम में मार्च से मई महीने के दौरान किसान गेहूं के अवशिष्ट को खेतों में ही जलाकर निपटा देते हैं, जो पर्यावरण के दृष्टिकोण से बिलकुल भी उचित नहीं है।
विशेषज्ञों के अनुसार फसलों को जलाए जाने से स्वस्थ्य के लिए गंभीर चुनौती पैदा हो जाती है। पहले से ही प्रदूषण की अधिकता से संघर्ष कर रही दिल्ली के लिए पड़ोसी राज्यों में फसलों के जलाए जाने से समस्या और गंभीर हो जाती है। इन्हीं वजहों से सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी सहित सभी संबन्धित एजेंसियां समय-समय पर इस पर चिंता जताती रहती हैं।
इससे पहले अक्टूबर में पंजाब और हरियाणा में गेहूं की बुआई के लिए खेतों को तैयार करने के क्रम में किसानों ने धान के अवशिष्ट को बड़े पैमाने पर जलाया था। पड़ोसी राज्यों से उठने वाले धुएँ के चलते दिल्ली और इसके आसपास के शहरों पर घनी धुंध के बादल छा गए थे। दिवाली की आतिशबाज़ी ने स्थिति को और विषम बना दिया था और दिल्ली दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में सबसे ऊपर पहुँच गई थी। सर्दी के मौसम में आमतौर पर वातावरण में नमी अधिक होती है जिसके चलते प्रदूषण का असर और अधिक होता है।
इस बीच एनजीटी ने हरियाणा में फसलों को जलाए जाने से जुड़ी तस्वीरें बुधवार को जारी की। इन खबरों के मद्देनज़र एनजीटी ने सभी राज्य सरकारों से रिपोर्ट तलब की है। इससे पहले हरियाणा के करनाल में गेहूं की मड़ाई के लिए किसानों ने गेहूं की फसल के अवशिष्ट जलाए थे। हालांकि बाद में किसानों ने इस बात का खंडन किया था और कहा था की खेतों में आग जानबूझकर नहीं लगाई गई थी बल्कि यह दुर्घटनावश लगी थी।
मौसम और कृषि विशेषज्ञों के अनुसार फसलों के अवशिष्ट जलाए जाने से ना सिर्फ पर्यावरण को नुकसान होता है बल्कि इससे खेतों की मिट्टी की गुणवत्ता भी कम होती है। आग के चलते अधिक गर्मी से मिट्टी में नमी घट जाती है जो फसलों के स्वस्थ्य के लिए ठीक नहीं है। हालांकि किसान यह दावा करते हैं कि अवशिष्ट को जलाने के बजाए अन्य विधियों के इस्तेमाल से लागत बढ़ जाती है। नासा की तस्वीरों में मध्य भारत और पूर्वोत्तर राज्यों में भी कुछ स्थानों पर फसलों को जलाए जाने के प्रमाण मिले हैं।
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