नीली वर्दी में दिख रहा यह गार्ड रात में बच्चों को पढ़ाकर ला रहा उनके जीवन में नया सवेरा, बेसुध समाज – बदहाल सिस्टम ?

देहरादून. एक रिटायर्ड फौजी जो एटीएम में गार्ड की नौकरी कर गुज़ बसर कर रहा है, जी हां कह सकते है कि फौजी रिटायर्ड होने के बाद काम कर रहा है लेकिन कहानी इससे आगे की है, दरअसल हम जिस व्यक्ति के बारे में बताने जा रहे हैं वो साधारण तो बिल्कुल नहीं. यह शाम ढलते ही बच्चों को एटीएम के सामने दुधिया रात में किसी रोशनी के सहारे शिक्षित करता है, इतना ही नहीं उन्हें कॉपी किताब से लेकर बस्ते तक खुद ही तन्खावाह के ज़रिये देता है, जी हां ये हैं देहरादून के विजेंदर. एक एटीएम में बतौर सुरक्षा गार्ड का काम करते हैं. लेकिन उसके साथ वो कुछ ऐसा भी कर रहे हैं जिसे साधारण और असाधारण के बीच अंतर करना मुश्क़िल हो जाएगा कि क्या साधारण और क्या असाधारण तो शुरू होती है एक फौजी के गार्ड बनने और गार्ड बनकर बच्चों .

ATM के बाहर शाम ढलते ही शुरू होती है पाठशाला

देहरादून के सबसे भीड़भाड़ वाले इलाके में स्थित इलाहाबाद बैंक में सुरक्षा कर्मी हैं फौज से रिटायर्ड विजेंदर सिंह. विजेंदर का काम वैसे तो यहां सुबह 10 बजे से लेकर शाम 6 बजे तक होता है लेकिन ये फिर भी यहां रात के 10 बजे तक रहते हैं और शाम 6 बजे के बाद शुरू होती है विजेंदर की पाठशाला. ये पाठशाला उन बच्चों के लिये हैं जो या तो स्कूल जाने में सक्षम हैं या उनके पास पढ़ाई का कोई और साधन नहीं है. विजेंदर एटीएम के बाहर ही अंदर से आ रही रोशनी में आसपास की मलिन बस्तियों के करीब 81 से ज्यादा बच्चों को पढ़ाकर उनका भविष्य रोशन करने में लगे हुए हैं.

आखिर कैसे आया ख़्याल?

बीते 8 बरस से विजेंदर की ये पाठशाला यूं ही लगती है. इस क्लास में पहली से लेकर 10वीं तक के बच्चे पढ़ने आते हैं. विजेंदर का कहना है कि ये वो बच्चे हैं जिनके परिवार के पास पढ़ाने के लिए पैसे नहीं हैं इसलिए वो उनको पढ़ाते हैं.

विजेंदर की मानें तो उनको ये प्रेरणा तब मिली जब उन्होंने कुछ साल पहले बच्चों को कचरा बीनते हुए देखा और उसके बाद उनसे बात की. बच्चों ने उन्हें बताया कि वो पढ़ना चाहते हैं, फिर क्या था उन सब के साथ एक मीटिंग हुई और फिर शुरू हो गया पढ़ने का सिलसिला. आज विजेंदर के पढ़ाये बच्चे कूड़ा नहीं बीनते बल्कि देहरादून की कई दुकानों और शो रुम में काम कर रहे हैं. विजेंदर ने अपनी फौज की नौकरी में भी अच्छे काम किये और उसके बाद भी वो कई जगह काम कर चुके हैं लेकिन उनका मन वहां नहीं लगता था इसलिए उन्होंने ये काम तो चुना ही साथ ही बच्चे पढ़ा सकें ऐसा काम और जगह भी चुनी. विजेंदर का कहना है कि उनको परिवार और नौकरी स्टाफ से पूरा सहयोग मिलता है.खुद की तनख्वाह से लाते हैं किताबें-बस्ते विजेंदर

करीब 80 से ज्यादा बच्चों को पढ़ाने वाले विजेंदर ना किसी से कोई पैसा लेते हैं और ना ही किसी तरह का सहयोग बल्कि अपनी तनख्वाह में से वो जरूरतमंदों को किताबें और बस्ते तक दिलाते हैं. विजेंदर का कहना है कि जब वो एक सुरक्षाकर्मी हो कर ये सब कर सकते हैं तो समाज के समृद्ध लोगों को भी आगे आना चाहिए.

अब बच्चे बनना चाहते हैं विजेंदर सर की तरह

विजेंदर सभी को पढ़ाई के साथ-साथ अनुशासन भी सिखाते हैं. वो सभी को ये भी सिखाते हैं कि किसी से पैसे ना लें, अच्छा काम करें और सभी की सहायता करें. पढ़ने-लिखने के बाद इन छोटे-छोटे बच्चों के सपने भी बड़े हो चले हैं और अब कोई डॉक्टर बनकर गरीबों का इलाज करना चाहता है तो कोई विजेंदर सिंह की तरह फौजी बनकर देश की सेवा और रिटायर होने के बाद यूं ही समाजसेवा करना चाहता है.

 

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