एक बार फ़िर से देश के सर्वोच्च पद को लेकर राजनीतिक बिसात बिछ चुकी है। अगले राष्ट्रपति का चुनाव 17 जुलाई को होगा और मतगणना 20 जुलाई को होगी। देश के 13वें राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का कार्यकाल 24 जुलाई को होगा। उपराष्ट्रपति का कार्यकाल अगस्त के अंत में समाप्त हो रहा है। हालांकि इस बार की राजनीतिक लड़ाई का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि दलित और पिछड़ा वर्ग केंद्रीय भूमिका में है। केंद्र में सत्तासीन एनडीए के अंदर भी इस बार किसी गैर ब्राह्म्ण को राष्ट्रपति बनाये जाने की मांग उठ रही है। जबकि विपक्ष भी दलित और ओबीसी को ध्यान में रखकर मोहरे चलने की फ़िराक में है।
इसके बावजूद सूत्रों की मानें तो भाजपा और उनके सहयोगी घटक दल मोहन भागवत के नाम पर मुहर लगाने को तैयार हैं। इसके लिए मोदी-शाह की जोड़ी ने तीन सदस्यों की कमिटी का गठन किया है। हालांकि इसमें अन्य घटक दलों के नेताओं को बाहर रखा गया है। इसमें तीन केंद्रीय मंत्रियों राजनाथ सिंह, अरुण जेटली और वेंकैया नायडू शामिल हैं। ये तीनों नेता मोदी-शाह के अनुयायी होने के साथ आरएसएस के हार्डकोर सदस्य भी हैं।
इस प्रकार यदि भागवत के नाम पर मुहर लगती है तो एक बार फ़िर एक ब्राह्मण के बाद दूसरे ब्राह्म्ण की ताजपोशी मुमकिन है। जबकि उपराष्ट्रपति पद के लिए एक आदिवासी चेहरे की तलाश की जा रही है। सूत्रों के अनुसार इनमें झारखंड के खुंटी से सांसद करिया मुंडा भी रेस में सबसे आगे हैं। श्री मुंडा पूर्व में लोकसभा के उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं। सूत्रों के मुताबिक 18 जून तक भाजपा के तीन नेताओं की कमेटी अपना सुझाव देगी।
उधर विपक्षी पार्टियां 14 जून को चर्चा करने के लिए बैठक करेंगी। सूत्र बताते हैं कि विपक्षी खेमे में मुलायम सिंह यादव रेस में सबसे आगे हैं। वैसे कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाधी ने जुलाई में होने जा रहे राष्ट्रपति चुनाव के लिए सभी विपक्षी दलों को एक साझा मंच पर लाने के प्रयास शुरू कर दिए हैं। सोनिया गांधी ने चुनाव पर चर्चा के मद्देनजर इस महीने की शुरुआत में विपक्षी पार्टियों के दस सदस्यीय उपसमूह का गठन किया था।
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