लखनऊ। बसपा छोड चुके पूर्व मंत्री इंद्रजीत सरोज भी भाजपा का दामन थाम सकते हैं। इसकी सबसे खास वजह उनका प्रधान मंत्री मोदी अथवा भाजपा से किसी भी प्रकार का भावनात्मक लगाव न होकर उनकी अपनी सियासी मजबूरियां ही कही जा सकती हैं। खुद नई पार्टी खडी करने की इनमें न तो कुव्वत है और न जुझारूपन हीं। इनकी अब तक की पूरी राजनीतिक जिंदगी बसपा सुप्रीमो मायावती की जीहुजूरी में बीती है। बसपा में इनके जैसा शांतिप्रिय, अनुशासित, लोकप्रिय और पार्टी तथा सरकार में महत्वपूर्ण पदों पर रह चुका नेता बसपा में आसानी से कोई दूसरा नहीं मिल सकता है। इसीलिये भाजपा नेतृत्व इनकी मर्यादा और दलित समुदाय मंे अच्छी पैठ देखते हुए इन्हें लोक लेने में देर नहीं लगा सकता है। 2019 की दृष्टि से उसे सरोज की सियासी कीमत मालूम है। इसीलिये रक्षाबंधन के आसपास ही इस बात का फैसला हो जाने की उम्मीद है।
इस संबंध में सबसे अहं सवाल यह है कि सरोज की ऐसी कौन सी राजनीतिक मजबूरी आ गयी थी, जिसके तहत इन्हें अचानके यह फैसला करना पड गया है। इस सवाल की तह में जाने की कोशिश पर यह साफ नजर आ रहा है कि आज के अधिकांश सजग बसपाई को इस बात का अच्छी तरह एहसास हो गया है कि मायावती और उनकी बसपा का राजनीतिक अवसान अब सिर पर आ गया है। ऐसे में उनका जबरदस्त दंभ उनके लिये कोढ में खाज साबित हो रहा है। इसके चलते उनके लिये अब ऐसा भी समय आ सकता है, जब उनके साथ खुद उनके अपने परिवार के लोग और बहुत ही सीमित और गिनेचुने लोग ही रह सकते हैं। लगता है कि इंद्रजीत सरोज ने इस स्थिति का बहुत अच्छी तरह आकलन करने के बाद ही यह फैसला लिया होगा।
चंदा वसूली को लेकर कही जा रही बात को तो जाहिरातौर परएक खूबसूरत बहाना से अधिक और कुछ नहीं कहा जा सकता है। इसके अंदरखाने की कोई न कोई बात ऐसी जरूर होगी, जिसे सार्वजनिक रूप से न इंद्रजीत सरोज कह सकते हैं और न मायावती ही। लेकिन, इतना जरूर है कि मायावती की लगातार खस्ताहाल होती जा रहे सियासी हालात को देखते हुए हर महत्वाकांशी युवा बसपाई अपने राजनीतिक भविष्य के लिये अब उनसे किनाराकशी ही करना चाहेगा। लिहाजा, बसपा में अब ही सियासी भगदड शुरू हो गया है। रही सही कसर इन पर सीबीआई जांचों के नतीजे आने के पहले ही पूरी हो जायेगी।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि धनसंचय की अपनी अतृप्त लालसा के तहत ही मायावती ने सरोज के सामने जरूर कोई न कोई ऐसी कोई कठिन शर्त रख दी होगी, जिसे मौजूदा हालात में पूरा कर सकना इनके लिये संभव न हो सका हो। ऐसे में मायावती से पिंड छुडाना ही जरूरी हो गया।बेशक, यह सच है कि मायावती सरकार के मंत्री रहते हुए इन्होंने अपने गृह जनपद कौशांबी के लिये कमोवेश वैसा ही करने का प्रयास किया था, जैसा कांग्रेस के दबंग नेता कल्पनाथ राय ने अपने गृह जनपद मऊ के लिये किया था। इस कसौटी से कौशांबी जनपद के ही मूल निवासी और योगी सरकार उपमुख्य मंत्री केशव प्रसाद मौर्य इनके आगे दूर दूर तक कहीं नहीं ठहरते हैं। इसे इस जनपद के आम आदमी से लेकर पूरा विपक्ष भी जानता है। इनके बाद इस जनपद में विकास के नाम पर किसी भी सरकार में एक ईंट तक नहीं रखी जा सकी है। यहां के लोगों को, खासतौर से अपनी बिरादरी के लोगों को रोजीरोटी देने में इन्होंने कोई कोरकसर नहीं छोडी थी। इसीलिये मंझनपुर विधान सभाई क्षेत्र में यह लगातार अजेय रहे हैं। लेकिन, मोदी की प्रचंड सियासी लहर में एक से एक बडे नेताओं की तरह इनका भी तंबू उखड गया। बसपा का मजबूत स्तंभ होने के नाते इनके जाते ही मायावती की मायावती को बडा गहरा धक्का लगा है। भारी संख्या में पुराने बसपाइयों ने उनसेे अपना नाता एक ही झटके में खत्म कर लिया है। पिछले दो दिनों से बसपाइयों का इस्तीफा लगातार जारी है।
हांलाकि, इंद्रजीत सरोज ने अभी तक अपने सियासी पत्ते नहीं खोले हैं। वैसे जाहिरातौर पर इनका कहना है कि रक्षाबंधन के आसपास लखनऊ में अपने समर्थकों की रैली में शक्ति और एकजुटता के प्रदर्शन के बाद उनकी राय से ही यह अपनी राजनीतिक दिशा तय करेंगे। लेकिन, अधिक संभावना इनके मोदी की शरण में जाने की ही है। इसके अलावा, इन्हें और कोई रास्ता भी नहीं सूझ रहा होगा। इनके शक्तिप्रदर्शन के समय तक भाजपा भी इन पर डोरे डालने की कोशिश शुरू कर सकती है। उसके लिये सरोज हर तरह से फायदे का ही सौदा हैं। प्रदेश के दलित समुदाय के एक खास वर्ग में भाजपा की पैठ काफी मजबूत हो जायेगी। लिहाजा, इनकी सियासी कदकाठी का पूरा ख्याल रखते हुए वह इनको ससम्मान शामिल करना चाहेगी।
Read More- Indiasamvad