शाहनवाज आलम
उत्तर प्रदेश चुनाव में सपा और बसपा को जनता द्वारा बुरी तरह नकार दिए जाने से सामाजिक न्याय की अवधारणा के साथ 90 के शुरूआती दौर से शुरू हुई एक राजनीतिक धारा का अंत हो चुका है। हालांकि इस राजनीति के पुरोधा इसे इनकम्पबैंसी फैक्टर या इवीएम धांधली बता कर इस सच्चाई को नकारने की कोशिश में हैं लेकिन हकीकत यही है कि यह उनकी राजनीति की स्वाभाविक मौत है। अगर आगामी चुनावों में सपा और बसपा का कोई उभार होता भी है तो अब वो उन वैचारिक और सैद्धांतिक बुनियादों पर नहीं होगा जिसके दावे के साथ यह खड़ी हुई थीं। बल्कि वह अब सामान्य चुनावी उलटफेर ही ज्यादा होगी।
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