लखनऊ : इन दिनों योगी सरकार मे सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। अंदर ही अंदर चल रहे एक सियासी बवंडर के चलते मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ के तख्तापलट की सियासी साजिश की जा रही है। लेकिन, मोदी-शाह की खींची लक्ष्मण रेखा के अंदर मुख्य मंत्री योगी फिलहाल तो सुरक्षित कहे जा सकते हैं, आगे की राम जाने।
कब तक योगी इसकी आंच से बचे रह सकेंगे?
इसके बावजूद, यह आशंका तो की ही जा सकती है कि लक्ष्मण रेखा के अंदर होने के बावजूद, जैसे सीता पर रावण की कपट भारी पडा था। कहीं, ऐसा न हो कि इस बवंडर के तेज होने पर मुख्य मंत्री योगी और उनकी सरकार पर भी यह भारी पड जाए। वजह साफ है, अपनी सरकार के ही एक भारी भरकम शख्स और ऊपर तक उसके तार जुडे होने से इस साजिश से योगी कैसे और कब तक सुरक्षित रह सकते हैं। इस संदर्भ में सबसे अहम् सवाल है।
योगी आज भी योगी हैं, सत्तालिप्सु नहीं
खबर है कि इस बात की जानकारी भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को हो चुकी है। अपुष्ट समाचार के अनुसार, खुद मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ ने मोदी और शाह को अपनी पीडा से अवगत करा दिया है। वैसे, भाजपा का शीर्ष नेतृत्व भी अच्छी तरह जानता है कि योगी आदित्य नाथ का सच क्या है। इसीलिये वह उन्हें योगी ही मानता है, ढोंगी नहीं। सत्तालिप्सु भी नहीं।
मोदी-शाह का कूटनीतिक चातुर्य
भाजपा नेतृत्व इस सच को भी अच्छी तरह जानता है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री के पद पर रहकर योगी प्रधानमंत्री मोदी के ही राष्ट्र और व्यापक लोकहित से जुडे एक खास मिशन को ही पूरा करना चाहते है अन्यथा उनके लिये गुरू गोरखनाथ के मंदिर में रहना कहीं ज्यादा श्रेयष्कर कहा जा सकता है। पांच कालीदास मार्ग में उनके लिये आकर्षण की एक भी वस्तु नहीं। उनकी दिनचर्या में आज भी कोई फर्क नहीं आ सका है। लगता है कि इसी के मद्देनजर भाजपा नेतृत्व ने बडे कूटनीतिक चातुर्य से इस समस्या को जड से ही खत्म करने का मन बना लिया है।
क्यों बनाये गये योगी मुख्य मंत्री?
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, प्रदेश भाजपा के ही अंदर चल रही इस सियासी साजिश की शुरुआत योगी के बडे अप्रत्याशित रूप से मुख्यमंत्री बनाये जाने की घोषणा के बाद ही हो गयी थी। योगी को संघ और भाजपा के एक खास मिशन के ही तहत यह जिम्मेदारी सौंपी गयी है। गंभीर आपराधिक रिकार्ड और विवादित चरित्र वाले सत्तालिप्सु किसी अन्य भाजपाई के बूते यह संभव ही नहीं हो सकता था। इसीलिये संघ के सांचे में सिर्फ योगी आदित्य नाथ ही खरे उतर सके हैं। दूसरा नहीं।
छाती पर सांप की तरह लोट रहे हैं योगी
योगी आदित्य नाथ को ही प्रदेश का मुख्य मंत्री बनाये जाने के निर्णय को प्रदेश भाजपा के एक नेता को जहर की घूंट की तरह भले ही अपने गले के नीचे तो उतारना पडा हो लेकिन, मुख्यमंत्री के रूप में वह आज भी योगी आदित्य नाथ अपनी छाती पर जहरीले सांप की तरह लोटता हुआ ही महसूस कर रहा है। लिहाजा, उनकी कोशिश प्रदेश में एक समानांतर सरकार चलाने की हो रही है। इसी के तहत नौकरशाहों, प्रशासनिक तंत्र मीडिया और आम आदमी तक को योगी सरकार के बारे में गुमराह करने की कोशिश की जा रही है। इसका मकसद सिर्फ एक। समूचे सूबे में यह संदेश देना है कि योगी सूबे की सरकार को चलाने के लायक नहीं है।
प्रदेश में समानांतर सरकार चलाने की कोशिश
शायद, यही वजह है कि तमाम नौकरशाह मुख्यमंत्री योगी के फरमानों को तवज्जो नहीं दे रहे हैं। इसी के चलते प्रदेश के आम लोगों के मन में दो तरह की बात बैठती जा रही है। एक तो यह कि मुख्यमंत्री योगी को फ्री-हैंड नहीं किया जा सका है। पिछली सरकार की ही तरह इस सरकार में एक से अधिक पावर सेंटर बन गये हैं। दूसरी यह कि मुख्यमंत्री की इसी कथित अक्षमता के चलते प्रदेश में ट्रांसफर और पोस्टिंग का काला धंधा धडल्ले से शुरू हो गया है।
योगी के आदेशों का पालन करने में उनकी ही सरकार के नौकरशाह हीलाहवाली कर रहे हैं। नहीं तो क्या वजह है शासन की बागडोर हाथ में लेते ही मुख्यमंत्री योगी ने मंत्रियों और नौकरशाहों को अपनी संपत्ति को ब्योरा देने का आदेश दिया था। क्या हुआ उसका? इसके लिये तारीख पर तारीख बढाई जा रही है। लेकिन, नतीजा सिफर।
योगी सरकार से लोगों की नाउम्मीदी बढी
स्थिति यह हो गयी है कि आप प्रदेश के किसी भी हिस्से में जाकर इस सरकार के बारे में लोगों की राय जानना चाहें, तो अधिकांशतः आपको यह सुनने को मिलेगा कि यह सरकार उनकी उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पा रही है। ऐसे ही रहा, तो कुछ ही दिनों के बाद आपको यह भी सुनने को मिल सकता है कि जैसे मायावती और अखिलेश यादव की सरकारें थीं, वैसे ही योगी की भी सरकार है। इस साजिश का यही सबसे बडा मकसद है।
यह कहना है चोटी के एक पत्रकार का
यही वजह है कि हाल ही में एक शीर्ष पत्रकार ने ‘इंडिया संवाद‘में प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में बहुत खुलकर यह कहा है कि-‘चर्चा ये भी है कि चुनाव के वक़्त मोदी और अमित शाह के खिलाफ हर अख़बार और चैनल में खबरें प्लांट कराने वाले बाजीगर अफसर सहगल फिर सत्ता में वापस लौट रहे हैं। कहने वाले कह रहे हैं कि दो चार मंत्रियों को छोड़ कर भ्रष्टाचार का भेड़िया कालिदास मार्ग पर मंत्रियों की कोठी में फिर छुपकर बैठ गया है। ट्रांसफर.पोस्टिंग का उद्योग शुरू हो गया है और खुद बीजेपी के सांसद मोदी से इस गोरखधंधे की खुली शिकायत कर रहे हैं‘।
तेजी से उतर रही है जीत की खुमारी
इस रिपोर्ट में एक स्थान पर यह भी कहा गया है कि- ‘जाहिर है यूपी में बीजेपी की जबरदस्त जीत की खुमारी तेज़ी से उतर रही है और हाल अगर ऐसा ही रहा तो 2019 में दिल्ली की गद्दी पर दुबारा बैठने के मोदी के सपने यूपी में ही दम तोड़ देंगे। दरअसल बीजेपी 15 साल के सपा, बसपा के जिस कुशासन के मुद्दे पर सत्ता में लौटी थी उससे ही अब भटकती दिखाई दे रही है। यूपी में गले तक पहुंचे जिस भ्रष्टाचार पर मोदी और शाह ने अपनी हर चुनावी रैली में प्रहार किया था उस भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस के संकल्प को मोदी के ही मंत्री भूलने लगे हैं। सच तो ये है कि बीजेपी के बड़े नेता ये भूल गए कि पांच साल तक अखिलेश सरकार के भ्रष्टाचार को किन लोगों ने बेनकाब किया था।
भुला दिये गये लक्ष्मीकांत वाजपेयी जैसे जमीनी नेता
इस रिपोर्ट में एक अन्य संदर्भ में यह भी कहा गया है कि ‘नॉएडा में अरबों रूपए के घोटालों को खोलने वाले बीजेपी नेता लक्ष्मीकांत वाजपेयी भी सत्ता की चकाचौंध में गुम हो गए हैं। स्कूटर से चलने वाले बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत की छवि ईमानदार नेता वाली थी लेकिन चुनाव हारने के बाद पार्टी ने लक्ष्मीकांत को कार्यकर्ता तक की अहमियत नहीं दी पार्टी के एक पदाधिकारी ने कहा कि यादव राज में भ्रष्टाचार की लड़ाई या तो सुरेश खन्ना ने सदन में लड़ी और या फिर लक्ष्मीकांत ने सडकों परण।
खन्ना चुनाव जीत गए इसलिए उनकी वरिष्ठता देखकर उन्हें मंत्री बनाना पड़ा। लेकिन लक्ष्मीकांत को शायद अब बीजेपी का कोई सचिव भी एक गिलास पानी नहीं पूछता है कौन चला रहा है यह कुचक्र? इसके पीछे किन ताकतों का हाथ है? इस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह को बडी गंभीरतापूर्वक विचार करने की आवश्यकता है।‘
योगी के खिलाफ तांत्रिक अनुष्ठान
इसके पहले ‘इंडिया संवाद‘ की ही एक रिपोर्ट में उसके वरिष्ठ पत्रकार नवनीत मिश्र ने योगी सरकार के ही एक उप मुख्यमंत्री के नाम तक का उल्लेख करते हुए कहा था कि यह व्यक्ति उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री होने के लिये अब इस सीमा तक अकुला उठा है कि पिछले 24 जून को शनिवार के दिन नई दिल्ली में उसने बडे ही गोपनीय ढंग से पूरी रात एक तांत्रिक यज्ञ का अनुष्ठान कराया था। यह दिन शनि देवता के अलावा, हनुमान जी और भगवती दुर्गा का भी माना जाता है।
प्रदेश में समानांतर सरकार
सूत्रों की माने, तो इसके अलावा, योगी सरकार के खिलाफ और भी तरह तरह के सियासी हथकंडे अपनाए जा रहे है। यहां तक कि प्रदेश में समानांतर सरकार तक चलाई जा रही है। अखिलेश सरकार के जाने की एक खास वजह उसमें एक साथ कई समानांतर सरकारों का चलना भी रहा है। उस सरकार में एक नही, पांच मुख्यमंत्रियों का होना रहा है। इसे लेकर नौकरशाहों में भी कई खेमे हो गये थे। सबके अपने अपने राजनीतिक आका थे। इसे लेकर अखिलेश यादव को जब होश आया, उस समय तक बहुत देर हो चुकी थी। योगी सरकार मेे भी यही स्थिति पैदा करने की कोशिश की जा रही है।
अपुष्ट सूत्रों की माने, तो मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ ने प्रधान मंत्री मोदी और भाजपाध्यक्ष अमित शाह को इस स्थिति से अवगत करा दिया है। उन्होंने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा तक देने की अपनी मंशा जाहिर की है। भाजपा नेतृत्व ने इसे बडी गंभीरता से लिया है। लगता है इसीलिये अगस्त के तीसरे सप्ताह में मोदी सरकार के संभावित विस्तार में प्रदेश के इस उप मुख्यमंत्री को शामिल करने का मन बना लिया है। इस खबर से बौखलाए इस भाजपाई नेता ने इस खबर को हवाहवाई बताया है।
मोदी ही करने जा रहे हैं इस मर्ज का सटीक इलाज
दूसरी ओर, भाजपा के जिम्मेदार सूत्रों का कहना है कि इस शख्स का केंद्र की सरकार में जाना एकदम तय है। इसमें उनकी अपनी मर्जी का कोई भी अर्थ इसलिये नहीं है कि भाजपा की नियामक शक्ति वह नहीं, मोदी और शाह हैं। यदि यह होते तो आज योगी आदित्य नाथ की जगह प्रदेश सरकार के राजसिंहासन पर खुद यही विराजमान होते। यह माननीय इस मुगालते में भी न रहे कि उत्तर प्रदेश में भाजपा को प्रचंड बहुमत की विजय इनकी वजह से मिली है। अच्छा तो यह होगा कि इस स्थिति में इन्हें हर हाल में मोदी और शाह के आदेशों का पालन करें अन्यथा बिना देर किये इन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया जायेगा।
Source- Indiasamvad