उत्तर प्रदेश ,लखनऊ,30 अप्रैल 2023, गोमती नगर,विराजखंड स्थित नक्षत्र होटल कांफ्रेंस हॉल में लखनऊ साड़ी क्लब द्वारा भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया। यह लखनऊ साड़ी क्लब एक सामाजिक और गैर राजनीतिक संघठन है ,जो भारतीय पारम्परिक परिधान साड़ी को अंतर्राष्ट्रीय पटल पर पहुंचने एवं साड़ी परिधान को लोकप्रिय बनाने के साथ गरीब वर्ग के बुनकरों, कारीगरों को प्रोत्साहन देना भी है। फैशन के आगे भागती दुनिया साड़ी जैसे पारम्परिक परिधान की गरिमा संरक्षित करने का कार्य लखनऊ साड़ी क्लब द्वारा प्रदेश में किया जा रहा है।
कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि श्रीमती असमा हुसैन (अन्तर्राष्ट्रीय फैशन डिजाइनर) और सम्मानीय अतिथि के रूप में श्रीमती उपमा चतुर्वेदी (शिक्षाविद ) एवं श्रीमती अर्पिता भटाचार्य (मिस इंडिया अर्थ 2019)ने दीप प्रज्जवलन कर किया गया ,संस्था के इस विचार मंथन कार्यक्रम में मुख्य अथिति के रूप में श्रीमती असमा हुसैन (अन्तर्राष्ट्रीय फैशन डिजाइनर) ने इस कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई ,साथ ही सम्मानीय अतिथि के रूप में उपमा चतुर्वेदी (शिक्षाविद ) एवं अर्पिता भटाचार्य (मिस इंडिया अर्थ 2019) ने भी कार्यक्रम में शिरकत की।
लखनऊ साड़ी क्लब ने अपना प्रतीक चिन्ह अवलोकन हेतू प्रदर्शित किया जिसे सभी आंगतुकों ने सराहा। अनेक कारीगरों और बुनकरों ने भाग लिया, वही संस्था ने उनके उत्कृष्ट कार्य हेतू प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया।
मुख्य अतिथि श्रीमती असमा हुसैन(अन्तर्राष्ट्रीय फैशन डिजाइनर)ने सम्बोधित करते हुए कहा कि भारतीय चिकनकारी का काम तीसरी शताब्दी होता रहा है।
लखनऊ शहर की कई खासियत है जिनका जिक्र भारत के समृद्धि इतिहास में मिलता है जो इसे और खास बना देता है। कला के इस रूप में कशीदाकारी की करीब 36 तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है। अब आधुनिक समय में चिकनकारी में मोती और कांच से भी सजावट की जाती है। चिकनकारी अपनी
विशिष्टता के कारण ही ये कला सैकड़ो वर्षो से अपनी लोकप्रियता बनाये हुए है ,तत्पश्चात श्रीमती हुसैन ने आये हुए सभी सम्मानित बुनकरों व कारीगरों से उनकी समस्यों को जाना। बुनकरों व कारीगरों ने बताया कि कैसे वह चिकनकारी के कार्य को ईमानदारी व पूर्ण लगन से कई वर्षो से कर रहे है और सरकार द्वारा उनको कोई भी आर्थिक मदद नहीं की जाती है।
संस्था साड़ी परम्परा को बचाने,बढ़ाने और जुड़े लोगो को हक़ दिलाने के मार्ग पर कार्य जार रही है। आइये आपको साड़ियों के संक्षिप्त इतिहास के बारे में बताते चले कि साड़ी लगभग 5,000 से अधिक सालों से अपने अस्तित्व में है, पूरी दुनिया में भारतीय साड़ी को सबसे पुराने परिधानों में से एक माना जाता है। अगर हम वेद और सिंधु घाटी सभ्यता का इतिहास खंगले तो महिलाओं के साड़ी का परिधान के रूम में पहनने के बारें उल्लेख मिलता हैं।इस देश में साड़ी स्त्रीत्व का प्रतीक मानी जाती है। साड़ी अपनी पहचान के लिए सदियों से हक़ की लड़ाई लड़ती रही ,आज फैशन के दौर में भी साड़ी ने अपनी पहचान को बचा रखा है। सब उठा पटक के बाद भी बड़े फैशन शो में रैंप पर, फ़िल्मी दुनिया में,देश के गांव और शहरी वातावरण में साड़ी ने हमारी संस्कृति और सभ्यता हुईं हैं। साड़ी भारतीय मूल के मॉरीशस के लोगों के लिए एक पारंपरिक पोशाक है,बांग्लादेश, पाकिस्तानऔर नेपाल सहित दूसरे साउथ एशियन देशों में भी साड़ी महिलाओं के लिए पारंपरिक है। भारत में साड़ियों की लगभग 35 से अधिक रीजनल किस्मे है। उत्तर प्रदेश की बनारसी साड़ी तो देश से विदेश तक महिलाओं के लिए आकर्षण का केंद्र रहती है। इन्हे चमकीले सोने, चांदी ,कलर वाले ताबें के धागों से इसमें डिजाइन कर बनाते है। भारतीय दुल्हनों के लिए ख़ास कर बनायी जाती है और बहुत कीमती होती है। वही सिल्क साड़ी का अपना ही रौब है।
संस्था द्वारा कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया गया,जिसका उद्देश्य -महिलाओं में आत्मविश्वास को बढ़ाना था। रैंप-वाक के साथ साथ उन्हें मंच पर से अपनी साड़ी से जुड़ी कहानी को भी साझा करने का कार्यक्रम रखा गया। सांस्कृतिक कार्यक्रम में साड़ी से जुड़े कई खेल भी रखे गए ,जिसमे महिलाओ ने बढ़चढ़ कर भाग लिया। जिसमे विजेताओ को पुरुष्कार भी वितरित किये गए।
कार्यक्रम का सफल आयोजन श्रीमती अनुपमा सिंह (संस्थापक ), श्रीमती रेखा कुमार (संस्थापक),श्रीमती बृज कुमारी सिंह(कोर सदस्य ),श्रीमती रेनू जौहरी (कोर सदस्य), श्रीमती पूजा बतश(कोर सदस्य ),श्रीमती रीना सिंह (कोर सदस्य) के द्वारा किया गया।
@(रिपोर्ट -वरिष्ठ पत्रकार अरुण सिंह चंदेल )
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