“जय भारत” ! साथियों…!
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“”ब्रम्हाण्ड है अपना परिवार…
मानवीय गुण रहे…
ना रहे कोई विकार…
“सम्पूर्ण राष्ट्र” करे ;
“भारत” का नमन स्वीकार…।।””
“सम्पूर्ण राष्ट्रों” को…अंतःकरण की असीम गहराईयों से “भारत” नमन करता है…।
“ओ…तथागत !”
(तेरे साथ ही चलना है…)
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ओ…तथागत ! मेरे पास शब्द नहीं…
पर… तुझसे बहुत कुछ कहना है…।।
छल-दम्भ भरी दुनियाँ देखी…
सब अपनें हैं;कैसे समझाऊँ???
जी करता है…चुप रह जाऊँ…
पर…चुप नहीं मुझको रहना है.।।
ओ…तथागत ! मेरे पास शब्द नहीं…
पर…तुझसे बहुत कुछ कहना है…।।
सबनें ख़ामोश किया मुझको…
पर…तू तो मेरा अपना है…
लाऊँगी तेरे विचार;विश्वपटल पर…
अब यही इक मेरा सपना है…।।
ओ…तथागत ! मेरे पास शब्द नहीं…
पर…तुझसे बहुत कुछ कहना है…।।
तू कहता है ; मैं सुनती हूँ…
तू सुनता है ; मैं कहती हूँ…
मेरा अंतःकरण ही तेरा है निवास…
अब तुझको यहीं पे रहना है…।।
ओ…तथागत ! मेरे पास शब्द नहीं…
पर…तुझसे बहुत कुछ कहना है…।।
ज़िन्दगी में एक ओर कुआँ है…
दूसरी ओर खाई है;पथ धारदार है…
ज़िन्दगी मुझे बहुत आजमाई है…
अब प्रण है…धारदार पथ पर ही चलना है…।।
ओ…तथागत ! मेरे पास शब्द नहीं…
पर…तुझसे बहुत कुछ कहना है…।।
तू मेरे साथ ; मैं तेरे साथ…
प्रकृति का अद्भुत ये सौगात…
मेरे गृहस्थ आश्रम में तुझको…
हरपल मेरी राहों को प्रशस्त करना है…।।
ओ…तथागत ! मेरे पास शब्द नहीं…
पर…तुझसे बहुत कुछ कहना है…।।
गृहस्थ आश्रम है मानवता का मन्दिर…
जो राष्ट्र की अटूट इकाई है…
अब तो मानावता की ख़ातिर…
कटु वचनों का विष नित पीना है…।।
ओ…तथागत ! मेरे पास शब्द नहीं…
पर…तुझसे बहुत कुछ कहना है…।।
काम-क्रोध-मद-लोभ से दूर…
होगी तेरी – मेरी ढेरों बाते…
मानवता की बरखा होगी सकल विश्व पर…
इंसा – इंसा को बरखा में भिगोना है…।।
ओ…तथागत ! मेरे पास शब्द नहीं…
पर…तुझसे बहुत कुछ कहना है…।।
खुली आँखों के मानवीय स्वप्न को…
मूर्तरूप हम ख़ुद देगें…
तेरी छाँव बनी रहे सब पर…
अब हमें नहीं किसी से डरना है…।।
ओ…तथागत ! मेरे पास शब्द नहीं…
पर…तुझसे बहुत कुछ कहना है…।।
तू मानवता का “गौरव” है…
मैं तेरे गौरव की “गरिमा” हूँ…
अब तो विश्वपटल पर…
मानवता के मनके पिरोना है…।।
ओ…तथागत ! मेरे पास शब्द नहीं…
पर…तुझसे बहुत कुछ कहना है…।।
स्मरण रहे ! “भारत”कभी “विश्वगुरु” था…
“विश्वगुरु” की जन्म की ख़ातिर…
“करुणामय नारीशक्ति” को…
अब “विश्वशक्ति” ही बनना है…।।
ओ…तथागत ! मेरे पास शब्द नहीं…
पर…तुझसे बहुत कुछ कहना है…।।
निडरता-साहस-धैर्य…
अंधभक्ति के बंधन से निकलना है…
तथागत तुझको मेरे साथ अब चलना है…।।
ओ…तथागत ! मेरे पास शब्द नहीं…
पर…तुझसे बहुत कुछ कहना है…।।
ये मानवता की ज़िद है…मेरी ज़िद है…
अब अंतःकरण पट खोल…
“ज्वाला” बनकर…
विश्वपटल को रौशन करना…।।
ओ…तथागत ! मेरे पास शब्द नहीं…
पर…तुझसे बहुत कुछ कहना है…।।
ओ…तथागत ! तुझे मेरी ज़िद पूरी करना है…
मुझे तेरे साथ ही चलना है…
मुझे तेरे साथ ही चलना है…
मुझे तेरे साथ ही चलना है…
ओ…भारत ! आ…तथागत संग सभी मिलकर चलें…विश्वपटल की ओर…