अच्छे दिन : रोजगार नहीं मिलेगा क्योंकि लाखों स्वयंसेवक जो भर्ती किये जा रहे हैं

पलाश विश्वास

मोदी उत्सव के शुभारंभ पर गोहत्या निषेध लागू करने करने के लिए देशभर में मांसाहार प्रतिबंधित कर दिया गया है। गायों के साथ खेती के लिए पालतू जानवरों की बिक्री भी  प्रतिबंधित कर दी गयी है। तो दूसरी ओर युद्धोन्माद का माहौल घना बनाने के लिए अरुणाचल को असम से जोड़ने वाले सबसे लंबे पुल के उद्घाटन को चीन से निबटने की सैनिक तैयारी बतौर पेश किया जा रहा है।

अरुणाचल को लेकर भारत चीन विवाद पुराना है और सड़क संपर्क से अरुणाचल को बाकी भारत से जोड़ने की इस उपलब्धि को चीन के साथ युद्ध बतौर प्रचारित करने की राजनाय और राजनीति दोनों समझ से बाहर है।

1962 के भारत चीन युद्ध की पृष्ठभूमि में संसद में नेहरू के बयान को काफी लोग जिम्मेदार मानते हैं। इस सरकारी पार्टीबद्ध राष्ट्रवादी प्रचार से क्या चीन को युद्ध का खुला न्यौता दिया जा रहा है या नहीं, हमारी समझ से बाहर है। यह भी समझ से बाहर है कि संवेदनशील सीमा क्षेत्र में सैन्य तैयारियों का खुलासा करके मीडिया किस तरह का देशप्रेम दिखा रहा है।

सामान्यज्ञान तो यह बताता है कि सुरक्षा संबंधी तैयारियों के बारे में सख्ती के साथ गोपनीयता बरतनी चाहिए। देश की सुरक्षा तैयारियों के राजनीतिक इस्तेमाल को क्या कहा जा सकता है, भक्तमंडली तय कर लें।

मोदी उत्सव की शुरुआत में हालांकि संघ के सिपाहसालार ने ईमानदारी बरतते हुए साफ कर दिया है कि सबको नौकरी देना उनकी सरकार का काम नहीं है। बल्कि राजकाज स्वरोजगार पर है। शाह ने कहा,

”हमने रोजगार को नये आयाम देने की कोशिश की, क्योंकि 125 करोड़ लोगों के देश में हर किसी को रोजगार मुहैया कराना संभव नहीं है।  हम स्वरोजगार को बढ़ावा दे रहे हैं और सरकार ने आठ करोड़ लोगों को स्वरोजगारी बनाया है।

इस स्वरोजगार का मसला क्या है, उनने खुलासा नहीं किया है।

किस सेक्टर में स्वरोजगार मिलना है, इसकी कोई दिशा कम से कम हम जैसे कम समझ वाले लोगों की समझ के बाहर है।

संघ परिवार के स्वदेशी जागरण मंच को भी यह मामला शायद समझ में नहीं आ रहा है। सबसे ज्यादा चिल्ल पों स्वदेशी जागरण मंच के स्वयंसेवक मचा रहे हैं। हालाकि उन्हें अभी किसी ने राष्ट्रद्रोह का तमगा दिया नहीं है।

खेती में तो किसान और खेतिहर मजदूर खुदकशी कर रहे हैं और खुदरा कारोबार समेत तमाम काम धंधे पर कारपोरेट एकाधिकार है।

युद्ध जैसी परिस्थिति से निपटने के लिए देश सेना के हवाले हैं और संसद और सांसदों को उनसे सवाल पूछने का हक भी छीन लिया गया है।

यूपी में ऐसी ही युद्ध परिस्थिति में कत्ल और बलात्कार के खून के धब्बे मिटाने के लिए अलग प्रचार अभियान चल रहा है और बाकी सचार कंपनियों पर निषेधाज्ञा जारी करके एक चहेती कंपनी के मोबाइल से दंगा भड़काने का पवित्र धर्म कर्म जारी है। रक्षा उत्पादन में भी उसी कंपनी का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है तो तीन साल के राजकाज के हिंदुत्व की आड़ में एक योगी का कारपोरेट साम्राज्य ग्लोबल हो गया है।

अफसोस है कि यूपी वालों को देश बचा लेने की अपील हमने की थी।

कोलकाता में बैठकर यूपी की जमीनी हालत न जानने की वजह से हम यह गलती कर बैठे।

नोटबंदी के बाद वह चुनाव कब्रिस्तान और श्मशानघाट के मुद्दे पर लड़ा गया है और योगी आदित्यनाथ की ताजपोशी के चंद दिनों में ही यूपी देश का सबसे बड़ा श्मशान और सबसे बड़ा कब्रिस्तान भी साबित होने लगा है।

जिस हिंदुत्व की सुनामी के दम पर यूपी फतह कर लिया गया, वह हिंदुत्व अब जातियों के महाभारत में तब्दील है और यूपी में जाति युद्ध के हालात कश्मीर के संगीन हालात से कम नहीं है।

जातियों में बंटकर हिंदी आपस में मारकाट करके खुद अपना सफाया कर रहे हैं,हिंदुत्व के एजंडे का यह करतब या करिश्मा भी खूब है। वोट से पहले समरसता और वोट के बाद महाभारत और हस्तिनापुर का साम्राज्यऔर राजकाज ही यूपी की संस्कृति है तो बाकी देश की भी संस्कृति वहीं है।

आत्मध्वंस का राजमार्ग शायद यमुना एक्सप्रेस वे का नया नाम है या फिर गंगा सफाी का मतलब गंगा यमुना के मैदानों में बसी आबादी का सफाया है।

धार्मिक ध्रूवीकरण के तहत हिंदुत्व के नाम पर बंगाल में जो हो रहा है,उसके दृश्य भी सार्वजनिक हैं और बंगाल में भी हाल यूपी जैसे ही हैं।

स्वरोजगार से गोरक्षा का कोई संबंध है या नहीं ,कहा नहीं जा सकता। देश जीतने के लिए भी स्वरोजगार का नया क्षेत्र खुल गया है।

लाखों स्वयंसेवक भर्ती किये जा रहे हैं। जो देश के अलग अलग युद्धक्षेत्र में मरने और मारने के लिए तैनात किये जा रहे हैं। यही स्वरोजगार है शायद।

अन्यत्र सभी सेक्टर में तो छंटनी और कत्लेआम का माहौल है।

नोटबंदी से मुलायम और मायावती के खजाना बेकार करने की रणनीति से यूपी फतह जरुर कर ली गयी, लेकिन उससे कालाधन कितना निकला, इसका कोई हिसाब नहीं मिला है।

बहरहाल नोटबंदी के बाद असंगठित क्षेत्र में देशभर में नकदी संकट की वजह से लाखों लोग बेरोजगार हो गये और नोटबंदी की मार से उत्पादन इकाइयों और कारोबार जगत को उबरने का मौका अभी नहीं मिला है तो काम खोने वाले लोगों को नौकरी दोबारा मिलने की कोई संभावना नहीं दिखती है। खेती भी चौपट है और किसानों के लिए खुदकशी जिंदगी का दूसरा नाम है।

यह बेरोजगारी, मंदी, भूख, अकाल, भुखमरी, प्राकृतिक आपदाओं और महामारी का डिजिटल इंडिया है। ज्ञान के बदले मोक्ष का रास्ता अब तकनीक है। आगे स्वर्ग है।

संगठित क्षेत्र में अब तक सिर्फ आईटी सेक्टर में कम से कम पचास हजार युवाओं की छंटनी हो चकी है और अगले तीन साल में साढ़े छह लाख युवाओं के हात पांव दक्षता और तकनीक के नाम पर काट लिए जाने की तैयारी है।

अकेली कंपनियों में सिर्प एल एंड टी में 14 हजार लोगों की छंटनी हो गयी है।

एचडीएफसी बैंक में 10 हजार लोग निकाले गये हैं।

बाकी बैंकों में कितने लोग निकाले गये हैं,मार्केटिंग और मीडिया में भी व्यापक छंटनी के तहत कुल कितने लोग निकाले गये हैं और आगे निकाले जायेंगे,यह अंदाजा लगाकर हिसाब जोड़ने का मामला है क्योंकि इस सिलसिले में कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है।

विदेशी विनिवेश सर्वोच्च स्तर पर है और 2024 तक सेनसेक्स के पूंजी बाजाक केसूचंकांक के एक लाख तक पहुंचने की उम्मीद बतायी जा रही है।

मुनाफा के लिए सात प्रतिशत जीडीपी के मुकाबले एर प्रतिशत रोजगार सृजन का समीकरण हमारे पास है और सभी सेवाओं,सभी सेक्टरों,सभी सराकारी संस्थाओं और उपक्रमों में विनिवेश और निजीकरण के बाद कितना रोजगार बचा रहेगा,इसका हिसाब पढ़े लिखे लोग खुद लगा लें तो बेहतर है।

जाहिर है कि बलि से पहले जैसे बलिप्रदत्त को नशा कराया जाता है, उसीतरह जनसंख्या सफाये के लिए युद्धोन्माद और मजहबी जाति अस्मिता दंगों का यह माहौल तैयार किया जा रहा है ताकि संसादनों,मौकों,समता और न्याय से इस देश की बहुसंख्य आपस में मारकाट करती जनता का सफाया कर दिया जाये।

हमने पहले ही लिखा है कि हमें मानवाधिकार के बारे में चर्चा नहीं करनी चाहिए।  धर्मांध देशभक्तों को नागरिक और मनावाधिकार की चर्चा से बहुत तकलीप होती है।  हम तो गायों के बराबर हक हकूक मांग रहे हैं।

जितना चाकचौंद इतंजाम गायों को बचाने के लिए हो रहा है,इंसानों और इंसानियत को बचाने किए वैसे ही इंतजाम किये जायें तो बेहतर है।

लेकिन संघ के अश्वमेध अभियान के सिपाहसालार ने साफ साफ कह दिया है कि रोजगार नहीं मिलेगा,स्वरोजगार का बंदोबस्त है।

जाहिर है कि स्वरोजगार संघ परिवार की सेवा से ही संभव है

गौरतलब है कि गाय,बैल के अलावा भैंस से लेकर ऊंट तक खेती के काम में लाये जाते हैं। दूध का मामला साफ नहीं है वरना बकरियां भी नहीं बिकेंगी। बहरहाल मंगलवार को जारी केंद्र सरकार के नोटिफिकेशन में कहा गया है, “ऐसा उपक्रम कीजिए कि जानवर सिर्फ खेती के कामों के लिए लाए जाएं, न कि मारने के लिए। ”

मनमोहन सिंह काल के आखिरी सबसे खराब दो सालों यानी 2012 और 2013 में कुल 7.41 लाख नए रोजगार सृजित हुए पर मोदी राज के दो सालों 2015 और 16 में कुल 3.86 लाख रोजगार सृजित हुए हैं. यानी 2.55 लाख रोजगार कम.

यूपीए-2 के शुरू के दो साल यानी 2009 और 2010 में 10.06 और 8.65 लाख नए रोजगार सृजित हुए थे. यदि इसकी तुलना 2015 और 2016 से की जाए तो मोदी राज के इन दो सालों में तकरीबन 74 फीसदी रोजगार के अवसर कम हो गए हैं.

 

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