अब सुप्रीम कोर्ट खुद एक न्यायाधीश की हत्या के इस षड़यंत्र की जाँच कराये और न्याय करे

अरुण माहेश्वरी

हम यहाँ सोहराबुद्दीन मामले में सीबीआई के सिर्फ अड़तालीस साल की उम्र के न्यायाधीश श्री ब्रजगोपाल हरकिशन लोया की मृत्यु की संदेहास्पद स्थिति के बारे में ‘कैरावन’ पत्रिका में आज ही प्रकाशित हुई रिपोर्ट का लिंक दे रहे है। इस रिपोर्ट को अगर आप ध्यान से पढ़ेंगे तो आपकी रूह काँप जायेगी।

जिन्होंने भी प्रियंका पाठक नारायण की किताब ‘Goodman to Tycoon : The untold story of Baba Ramdev ‘ को पढ़ा है, इसमें एक महत्वपूर्ण चरित्र आता है ‘भारत स्वाभिमान आंदोलन’ के नेता राजीव दीक्षित का। रामदेव का एक योग गुरु से स्वदेशी के प्रचारक के रूप में कायांतर कराने वाला प्रमुख चरित्र। जब दीक्षित इस अभियान में काफी आगे बढ़ गये थे और अपनी राजनीतिक आकांक्षाएं जाहिर करने लगे थे तभी 30 नवंबर 2010 के दिन छत्तीस गढ़ के बेमेतारा में आर्य समाज के एक गेस्ट हाउस में उनके 42वें जन्मदिन पर उन्हें अचानक मृत पाया गया। कहा गया कि दिल का दौरा पड़ने के कारण उनकी मृत्यु हुई है।

लेकिन इसके बाद दीक्षित के परिजनों के विरोध और नाना संदेहों के बावजूद बाबा रामदेव ने उनके शव को हरिद्वार लाकर उसका जिस प्रकार दाह-संस्कार करवा कर पूरे मामले को रफ़ा-दफ़ा कर दिया, प्रियंका की किताब में उसका विस्तृत ब्यौरा है।

गौर करने की बात है कि सीबीआई के न्यायाधीश लोया की मृत्यु, उनके पोस्ट मार्टम और दाह-संस्कार के मामले में जिस प्रकार की साजिशाना हड़बड़ी का जो ब्यौरा कैरावन की इस रिपोर्ट में है, राजीव दीक्षित के मामले का उससे पूरी तरह मेल बैठता है। इन दोनों मामलों में एक ही प्रकार की शातिराना हत्यारी मानसिकता के लोग काम करते हुए दिखाई दे रहे हैं।

लगता है आज सत्ता का गलियारा ऐसे षड़यंत्रकारी हत्यारों से भर गया है।

http://www.caravanmagazine.in/vantage/shocking-details-emerge-in-death-of-judge-presiding-over-sohrabuddin-trial-family-breaks-silence

जस्टिस लोया की हत्या की जाँच जरूर होगी,कोई इसे रोक नहीं पायेगा- रवीश के इस विश्वास में हम भी अपने स्वर को मिलाते हैं।शाबाश रवीश !

अक्सर अपराधी अपने अपराध का कोई न कोई सुराग़ छोड़ जाता है। यदि उस ओर ध्यान दिया जाए तो वह सुराग़ कभी न कभी सामने आ ही जाता है।

सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस लोया की मृत्यु स्वाभाविक मृत्यु नहीं थी, हत्या थी, और इसके पीछे बड़े-बड़े लोगों का हाथ था, ‘कैरावन’ के ख़ुलासे के बाद किसी को भी यह साफ दिखाई दे सकता है।

ज़रूरत इस बात की है कि अब सुप्रीम कोर्ट खुद इस पूरे मामले का संज्ञान लेते हुए एक न्यायाधीश की हत्या के इस षड़यंत्र की जाँच कराये और न्याय करे।

जस्टिस लोया की मृत्यु की जाँच की माँग न्यायपालिका के दरवाज़े पर दस्तक देने लगी है। पूर्व न्यायाधीश ए पी शाह ने इसे सही बताया है।

जस्टिस लोया की मौत की खबर उनके परिजनों को देने वाला आरएसएस का आदमी कौन था, सरकार और सीबीआई जनता को इतना तो बताए !

बोम्बे हाईकोर्ट के पूर्व-न्यायाधीश बी एच मरलापल्ले ने हाईकोर्ट में याचिका दाख़िल कर जस्टिस लोया की मृत्यु की जाँच की माँग की है।

 

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