आजादी के 70 साल में पहली बार लगी खादी वस्त्रों पर जीएसटी

स्वदेशी की पहचान और स्वतंत्रता आंदोलन में जान फूंकने वाली बापू की खादी पर भी जीएसटी लग गई। हालांकि खादी वस्त्र पर आजादी के बाद से अब तक गांधी जयंती पर बम्पर छूट मिलती रही है। इसी खादी वस्त्र पर 70 साल में पहली बार 5 से 12 फीसदी जीएसटी लग रहा है।
खादी। यह शब्द सुनते ही मन 100 फीसदी स्वदेशी होने के गौरव से आह्लादित हो जाता है। बापू ने चरखा चलाने और सूत कातने के लिए लोगों को प्रेरित किया। खुद भी उन्होंने चरखा चलाया, सूत बनाया। इस सोच के साथ कि हम खुद कपड़े बनाएंगे और पहनेंगे। हालांकि 1935 में अंग्रेज खादी का प्रसार-प्रसार नहीं होने देना चाहते थे लेकिन गांधी के पीछे चल पड़े पूरे हिन्दुस्तान ने से अपनाया।


बापू की खादी चल निकली। जन-जन की पसंद खादी को बढ़ावा देने के लिए पूरे देश में गांधी आश्रम खुल गए। केंद्र सरकार के टैक्स वसूलने के नए नियम के तहत पहली पर खादी पर भी टैक्स लग गया है। खादी पर भी जीएसटी वसूल किया जाने लगा है। खादी आश्रम से जुड़े कर्मचारी और संगठन का कहना है कि सरकार ने बुनकरों एवं पावरलूम पर हैंडलूम के उत्पाद बनाने वालों का ख्याल तो रखा लेकिन स्वतंत्रता के आंदोलन में महात्मा गांधी के शब्दों में विचार बनी खादी को जीएसटी से बाहर करना भूल गई।

राष्ट्रीय ध्वज, गांधी टोपी जीएसटी से बाहर
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी कहा था कि राष्ट्रीय ध्वज खादी का ही रहेगा। यह किसी अन्य कपड़े का नहीं बनाया जा सकता। केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय ध्वज और महात्मा गांधी की ‘गांधी-टोपी’ को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा है। इसके अलावा कता हुआ सूत भी जीएसटी से बाहर रखा गया है लेकिन उस सूत से निर्मित होने वाले सभी तरह के सूती, ऊनी और रेशमी वस्त्रों पर जीएसटी लगा दी गई है।

5 से 12 फीसदी जीएसटी
सरकार ने खादी के एक हजार रुपये से तक के वस्त्रों पर 5 फीसदी एवं एक हजार रुपये से ऊपर के वस्त्रों पर 12 फीसदी जीएसटी लगाया है। हालांकि खादी आश्रम में अब भी दस फीसदी छूट पर उपभोक्ताओं को पुरानी दरों पर ही वस्त्र उपलब्ध कराए जा रहे हैं। जीएसटी आधारित बिल भी नहीं काटा जा रहा है।

इसलिए खास है खादी
हाथ से चरखे पर कात कर सूत बनाया जाता है। उसके बाद उसी सूत से सूती, ऊनी और रेशमी वस्त्र तैयार होते हैं। इन वस्त्रों की खास बात होती है कि गर्मी में ठण्डे और सर्दी में गर्माहट देते हैं।

‘‘मुझे याद नही पड़ता कि सन् 1908 तक मैने चरखा या करधा कहीं देखा हो फिर भी मैने ‘हिन्द स्वराज’ में यह माना था कि चरखे के जरिये हिन्दुस्तान की कंगालियत मिट सकती है और यह तो सबके समझ सकने जैसी बात है कि जिस रास्ते भुखमरी मिटेगी उसी रास्ते स्वराज्य मिलेगा’’
महात्मा गांधी, सत्य का प्रयोग, आत्मकथा 

 

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