आधार केस: प्राइवेसी आपका मूल अधिकार है या नहीं, सुप्रीम कोर्ट का फैसला आज

आधार कार्ड को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई होते—होते मामला निजता के अधिकार यानि राइट टू प्राइवेसी पर पहुंच गया है. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्याया​धीश जस्टिस जेएस खेहर के नेतृत्व में 9 जजों की बेंच इस मामले पर सुनवाई कर रही है. इस मामले में शीर्ष अदालत ने सुनवाई पूरी करते हुए फैसला 2 अगस्त को सुरक्षित कर लिया था. गुरुवार को इस मामले पर संविधान पीठ फैसला सुना सकती है.

जस्टिस खेहर ने संविधान बेंच में जस्टिस जे चेलामेश्वर, जस्टिस एसए बोडबे, जस्टिस आरके अग्रवाल, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस अभय मनोहर सप्रे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस अब्दुल नजीर को भी शामिल किया था. नौ सदस्यीय पीठ ये फैसला सुनाएगी कि आखिर रा​इट टू प्राइवेसी के तहत भारतीय नागरिकों को क्या क्या अधिकार मिले हैं और इसके तहत आधार को अनिवार्य बनाया जा सकता है या इसकी क्या शर्तें होंगी.संविधान पीठ ये भी अध्ययन कर चुकी है कि इस केस के अलावा 1954 और 1962 में जो राइट टू प्रायवेसी को मूल अधिकार में शामिल नहीं किया गया था इसका आधार क्या रहा होगा.

दरअसल मामला ये आया कि आधार कार्ड को तमाम जरूरी सुविधाओं के लिए अनिवार्य किया जाने लगा और निजी हाथों में भी आधार की जानकारी जाने लगी. तब ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, इसके बाद कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई को सिंगल बेंच से कराने के बजाए 9 सदस्यीय संविधान पीठ से कराने का फैसला लिया. पीठ यह भी तय करेगी कि निजता मौलिक अधिकार है या नहीं? क्या यह संविधान का हिस्सा है? इस फैसले का असर सीधे-सीधे विभिन्न सरकारी योजनाओं को आधार कार्ड से जोड़ने के मामले पर पड़ेगा.

इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कुल 21 याचिकाएं दायर की गईं हैं. कोर्ट ने 7 दिनों तक लगातार सुनवाई की थी और इसके बाद 2 अगस्त को फैसला सुरक्षित रखकर 24 अगस्त की तारीख फैसले के लिए निर्धारित की थी.

 

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