इंदु सरकार मूवी रिव्यू- अब इस देश में गांधी के मायने बदल चुके हैं, सरकारें चैलेंज से नहीं चाबुक से चलती हैं?

फिल्म – इंदु सरकार
डायरेक्टर- मधुर भंडारकर
स्टार कास्ट: कीर्ति कुल्हारी, नील नितिन मुकेश , तोता रॉय चौधरी
अवधि:2 घंटा 19 मिनट
रेटिंग: 4 स्टार

घुटन का कोई नाम नहीं होता. न जात होती है. उसकी बस एक ही अदा होती है. न वो चैन से जीने देती है न मरने देती है. बस तड़पाती रहती है सुकून की चंद सांसों के लिए. सन् 1975 में लगी इमरजेंसी के दौरान लोगों की भी बस कुछ ऐसी ही हालत थी. लोग आजादी की सांस लेने के तड़प रहे थे. घुट रहे थे. खैर…

इमरजेंसी के बारे में पढ़ा था. सुना था. लेकिन मधुर भंडारकर की फिल्म ‘इंदु सरकार’ में शासन का वो ‘तांडव’ देखने को भी मिल गया. आपातकाल वो दौर था जब सत्ता ने आम आदमी की आवाज को कुचलने की सबसे निरंकुश कोशिश की. सरकार तय करती थी. अखबार में क्या छपना है. रेडियो में कौन सा गाना बजना है. कैसे बोलना है. क्या गाना है. कौन सी कविता लिखनी है. सबकुछ. मधुर ने 1975 से 1977 तक इमरजेंसी के उस दौर को इतनी सजीवता से उभारा है जिसे देखकर वाकई लगता है उस वक्त सरकार की नंगाई निर्दयता का किस कदर लोगों ने सामना किया होगा.

कहानी- 27 जून 1975 की वो काली रात जिस दिन सरकार ने देश में इमरजेंसी का ऐलान किया. सरकार के पांच सूत्रीय  प्लान के अनुसार देश के विकास पर जोर देना था. लेकिन विकास के नाम पर लोगों की जबरन नसबंदी करवायी जाने लगी. जिसमें 11..12 साल के बच्चे तक शामिल थे. गरीबी हटाने के नाम पर गरीबों को ही उजाड़ा जाने लगा. इंदु (कीर्ति कुल्हारी) एक आम शादीशुदा औरत जिसकी शादी नवीन सरकार (तोता रॉय चौधरी ) से होती है उससे ये सब देखा नहीं जाता. वो अपने पति से बगावत कर बैठती है. हद तो तब होती है जब इमरजेंसी की आग में जल रहे एक इलाके में उसे दो बिछड़े मासूम बच्चे मिल जाते हैं और बस यही शुरु होती है फिल्म की असली कहानी. पति से बगावत करके इंदु क्या करती है ये आप पर्दे पर खुद देखें तो ज्यादा खून में ज्यादा उबाल उठेगा. एक नज़र देखिए फिल्म का ट्रेलर

अभिनय- मतलब की क्या कहें. हर किरदार सजीव. गजब की एक्टिंग. सरकारी अफसर में तोता रॉय चौधरी की उम्दा एक्टिंग. कीर्ति कुल्हारी का कमाल का अभिनय. नील नितिन मुकेश की खड़ूस अदा. मंजे हुए कलाकार अनुपम खेर की देशभक्ति. हर कलाकार जैसे अपने किरदार के लिए ही बना था.

क्यों देखे- फिल्म की कसावदार कहानी. स्क्रीनप्ले. सिनेमैटोग्राफी. कमाल की है. एक-एक सीन वक्त की परिधि में पिरोया हुआ. मधुर का कैमरावर्क. लोकेशन. इस वक्त की बारीकियों को समझते हुए. चाल-ढाल. ड्रेसिंग सेंस. हेयरकट. स्टाइल. सबकुछ परखा हुआ. फिल्म का संगीत भी कमाल का है.चढ़ता सूरज धीरे-धीरे कव्वाली एक बार फिर सुनने को मिलेगी. मोनाली ठाकुर का गाना ‘ये आवाज है’ भी फिल्म के बैकग्राउंड में बजता हुआ अच्छा लगता है.

बॉक्स ऑफिस – फिल्म का बजट 11.5 करोड़ के आसपास बताया जा रहा है. दमदार कहानी और बेहतरीन स्क्रीनप्ले की वजह से फिल्म का अपने बजट से कहीं ज्यादा की कमाई की उम्मीद करना बेमानी नहीं लगता है. अगर आप कुछ हटकर फिल्म देखने के शौकीन हैं, तो ‘इंदु सरकार’ ‘हक मांगती एक हकलाती आवाज’ आपके दिलों को भी झकझोर देगी.

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