उत्तर कोरिया को मिसाइल कौन देता है?

एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि उत्तर कोरिया ने अपना मिसाइल तंत्र यूक्रेन के काले बाजार से खरीदारी कर तैयार किया है. यूक्रेन ने इनकार किया है. इस अंतरराष्ट्रीय रहस्य के पीछे उंगलियां रूस की तरफ भी उठ रही हैं.

विताली जुशचेव्सकी से अगर आप उनकी पूर्व कंपनी पर लग रहे आरोपों के बारे में पूछेंगे तो वो तुरंत ही रोक देते हैं. जुशचेव्सकी पूर्वी यूक्रेन के दनिप्रो शहर की सोवियत रॉकेट बनाने वाली कंपनी युजमाश के पूर्व डिप्टी प्रोडक्शन मैनेजर हैं और वो कहते हैं “ये झूठ है.” सोमवार को न्यूयॉर्क टाइम्स में छपी एक खबर में कहा गया है कि मिसाइल तकनीक में उत्तर कोरिया की चौंकाऊ प्रगति के पीछे युजमाश हो सकता है. ये इंजीनियरिंग कंपनी आर्थिक मुश्किलों में है और यह वजह हो सकती है कि अपराधी या फिर कंपनी के पूर्व कर्मचारी तस्करी के जरिये सोवियत इंजिनों या फिर उनके पुर्जों को उत्तर कोरिया तक पहुंचा रहे हों. द टाइम्स ने इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटजिक स्टडीज और अमेरिकी खुफिया एजेंसियों के अनुमानों के आधार पर माइकल एलिमैन की रिपोर्ट के हवाले से ये बात कही है. अखबार ने कोई सबूत नहीं दिया है, केवल संकेतों की बात की है.

एलीमान ने उत्तर कोरिया की मध्यम दूरी और अंतरमहाद्वीपीय प्रक्षेपक मिसाइलों ह्वासोंग 12 और 14 का विश्लेषण किया है. इनकी बढ़ी हुई रेंज अमेरिका तक मार करने की काबिलियत रखती है. उनका कहना है कि बीते दो सालों में जो चौंकाऊ विकास हुआ है वो केवल विदेशी सप्लायरों की मदद से ही संभव है, और इसमें इशारा पूर्व सोवियत संघ की तरफ है. यहां तक कि टेक्निकल यूनिवर्सिटी ऑफ म्यूनिख (टीयूएम) के जर्मन मिसाइल विशेषज्ञ रॉबर्ट श्मुकर भी ऐलिमान के विेश्लेषण से सहमत हैं हालांकि वो साफतौर पर आरोप लगाने से बचते हैं.

जानकारों का मानना है कि नई ह्वासोंग मिसाइल में जो वन चैम्बर वाली इंजिन का इस्तेमाल हुआ है वह सोवियत आरडी 250 रॉकेट इंजिन से बना है, जिसमें दो चैम्बर होते थे और यह 1960 के दशक में विकसित हुआ था. यह साबित करना मुश्किल है कि आरडी 250 को युजमाश ने भी बनाया था. विताली जुशचेव्सकी का कहना है कि उन्हें ये इंजिन रूस से मिले जहां वे “बहुत कम संख्या में बनाए गए थे.” एलिमान का कहना है कि ये इंजिन यूक्रेन में भी बने थे. अपनी आईआईएसएस स्टडी में उन्होंने लिखा है, “अगर ज्यादा नहीं तो 100” आरडी 250 इंजिन रूस के साथ साथ यूक्रेन में भी रहे. इससे ये संदेह भी पैदा होता है कि मुमकिन है कि रूस ही उत्तर कोरिया का सप्लायर हो.

जुशचेव्सकी कहते हैं, “हमने कभी उस तरह के इंजिन नहीं बनाए जिनका जिक्र न्यूयॉर्क टाइम्स के लेख में है.” जुशचेव्सकी ने करीब पांच दशक युजमास में काम किया है. अब रिटायर हो चुके इस इंजीनियर ने इस बात की पुष्टि की है कि रूस ने जब क्राइमिया को अपने साथ मिला लिया तो उसके साथ कंपनी का संबध खत्म हो गया और तब से दनिप्रो का रॉकेट संयंत्र “एक तरह से बंद” हो चुका है. उत्तर कोरिया को तकनीक की तस्करी के बारे में कोई जानकारी नहीं है. यूक्रेन और युजमाश के अधिकारी दोनों टाइम्स की रिपोर्ट को खारिज करते है. एलिमान को इस बात पर संदेह है कि यूक्रेन की सरकार इस तस्करी के बारे में कुछ नहीं जानती.

इतिहास की छाया

यह पहली बार है जब युजमास पर संयुक्त राष्ट्र और दूसरी अंतरराष्ट्रीय संधियों के उल्लंघन का आरोप लगा है. यह कंपनी सोवियत काल में विशाल एसएस-18 अंतरमहाद्वीपीय मिसाइल बनाया करती थी. उत्तर कोरिया हालांकि पहले यूक्रेन की तकनीक में दिलचस्पी दिखा चुका है. 2012 में दो उत्तर कोरियाई नागरिकों ने युजमाश में जासूसी की कोशिश की थी.

2002 में ऐसी खबरें आई थीं जिनमें दावा किया गया कि यूक्रेन इराक को आधुनिक रडार सिस्टम बेचना चाहता है. यूक्रेन ने इस रिपोर्ट से इनकार किया और इराक में कोई रडार सिस्टम मिला भी नहीं. हालांकि तस्करी के कुछ मामलों की पुष्टि जरूर हुई. 2005 में तब यूक्रेन के प्रॉसिक्यूटर जनरल ने एक अखबार इंटरव्यू में दावा किया था कि यूक्रेनी और रूसियों के एक गुट ने अवैध रूप से चीन और ईरान को 2001 में 18 क्रूज मिसाइल बेचे.

उत्तर कोरिया के रॉकेट तकनीक ने हाल में काफी तरक्की की है. यूक्रेन की स्टेट स्पेस एजेंसी के पूर्व प्रमुख ओलेग उरुस्की को नहीं लगता कि ऐसा कुछ अब भी हो सकता है. उनका कहना है कि देश में कई स्तरीय निगरानी तंत्र है. हालांकि उरुस्की ने इस बात से इनकार नहीं किया कि संकेत कुछ गलत होने का संकेत दे रहे हैं. उनका कहना है, “अपराध कहीं भी संभव है.”

रूस की तरफ ऊंगली

यूक्रेन के विश्लेषकों का मानना है कि टाइम्स का लेख रूस के चलाए लक्षित प्रचार अभियान का हिस्सा हो सकता है. मंगलवार को कीव की सेंटर फॉर आर्मी, कनवर्जन एंड डिसआर्मामेंट स्टडीज (सीएसीडीएस) ने लिखा है कि अमेरिकी प्रकाशन “यूक्रेन पर जानकारियों के हमले के संकेत” दिखाता है. दूसरी चीजों के अलावा इस लेख का एक मकसद “उत्तर कोरिया को उनकी मिसाइल तकनीक भेजने की ओर से ध्यान हटाना” और यूक्रेन को बदनाम करना है खासतौर से अमेरिका की नजर में. सीएसीडीएस के उपनिदेशक मिखाइलो सामूस कहते हैं, “रूस की उत्तर कोरिया के साथ साझी सीमा है, ऐसे में कोई वहां कुछ भी भेज सकता है यहां तक कि पूरा का पूरा इंजिन भी.” जबकि यूक्रेन के लिए तो भेजने का काम ही बहुत मुश्किल है.

उधर टीयूएम के रॉबर्ट श्मुकर का कहना है कि नई कहानी केवल एक इंजिन के बारे में नहीं है, “मिसाइलों का क्या? केवल सूचना का अपने आप में कोई इस्तेमाल नहीं है आपको निर्माण की सुविधायें चाहिए, तकनीकी सामान चाहिए और इन सबसे ऊपर बढ़िया नियंत्रण भी चाहिए. उनका कहना है, “यूक्रेन से केवल एक इंजिन के अलावा और भी बहुत कुछ आया होगा.”

 

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