कैसा ‘मान’ किसकी ‘हानि’ अपराध में बीत गयी पूरी जवानी !

 

वाराणसी। (अमित मौर्या ) धरती पर जन्म लिए हर इंसान की इच्छा होती है कि लोग उसका सम्मान करें लोग उसे जाने समाज उसे माने अधिकतर लोग इसके लिए तरह-तरह के सामाजिक कार्यों में भागीदारी करते हैं मसलन गरीबों की आर्थिक मदद ,ब्लड डोनेशन, विपन्नता के कारण पढ़ाई से वंचित बच्चों को शिक्षा दिलाना वगैरह वगैरह इससे समाज मे उनकी ख्याति के साथ मान प्रतिष्ठा बढ़ता है।

वहीं दूसरी तरफ समाज मे कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जो समाज विरोधी गतिविधियों में लिप्त हो भयाक्रांत कर समाज का शोषण उत्पीड़न करते हैं ऐसे लोगों को प्रबुद्ध समाज माफिया, बाहुबली ,या अपराधी कहता है । वहीं पुलिस प्रशासन ऐसे लोगों को की अपराधीक गतिविधियों में संलिप्तता देखकर बार-बार लगातार दर्ज हो रहे गम्भीर मुकदमों के मद्देनजर इनकी हिस्ट्रीशीट खोलकर थाने के सूचना पट्ट पर इनके नाम पिता का नाम पते के साथ दुराचारी नम्बर फलनवा दुराचारी नम्बर ढेकनवा लिखवा देती ताकि आम जन इनकी करतूतों से वाकिफ हों।

आईये बताते हैं एक ऐसे व्यक्ति के बारे में जो जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही अपने हाथ पांव इंसानी खून से रंगता हुआ बड़ा हुआ कहने को तो यह अपने पिता के हत्या का बदला लेने को अपराध के दलदली जमीन पर उतरा मगर जुर्म की स्याह कोठरी में कदम रखते ही इसे ‘नाजायज’तरीके से धन कमाने की ऐसी लालसा जगी की इसने अपने रहनुमाओं को भी नही बख्शा।

हम बात कर रहे हैं जुर्म की दुनिया के कुख्यात बादशाह बृजेश सिंह की जो लूट, हत्या, धमकी ,नरसंहार का मुल्जिम है जिसने जुर्म की दुनियां की गंदगी पर बैठकर पूंजीपतियों, दुकानदार ,ट्रांसपोर्टर, कोयला व्यापारियों को डरा धमकाकर अपनी तिजोरी भरता रहा जिसने सिकरौरा कांड नरसंहार में दुधमुंहे बच्चे पर भी रहम नही किया औऱ यमलोक पहुचा दिया , जिसके आतंक ने भतीजों को भी बिन पूंजी का व्यापार दे दिया औऱ दिवंगत भाई के गले में विधायकी का हार दे दिया कुनबे को मजबूत कर यह शातिराना अंदाज में प्रगट और गायब होता रहा और अंदर ही अंदर यूपी से बाहर दूसरे प्रदेशों में अपने आर्थिक साम्राज्य को बढ़ाता रहा और यहां इसके भतीजे इसके नाम को भुना कर आगे बढ़ते रहे अपने तीन दशक के अपराधीक जीवन में बृजेश ठेकों से अरबों कमाता रहा इसके नाम का आतंक ऐसा रहा कि हर बड़े व्यापार में इसको कमीशन चाहिए था जो इंकार करता उसकी अंतिम तिथि भी तय हो जाती।

खैर समय बदला औऱ कुख्याती चरम पर हुई तो बस नाम ही काफी है के तर्ज पर बृजेश ने सोचा कि अब टेरर तो बन तो क्यों न भाई भतीजे की तरह नाम के आगे माननीय लगवा लूं इसी मकसद को अंजाम देने के लिए बृजेश ताना बाना बुनने लगा क़ामयाबी तब मिली जब चंदौली के मूल निवासी एक स्वजातीय कद्दावर नेता जो इनका सब राज जानते हुए भी इनका ‘नाथ’ बनने को तैयार हो गए वो वर्तमान में वो केन्द्रीय औऱ ‘घर’के मंत्री हैं ।
सूत्रों की माने तो इसी योजना के तहत एक दशक पूर्व दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने उड़ीसा से अरुण सिंह उर्फ बृजेश सिंह को गिरफ्तार किया यह गिरफ्तारी किसी नाटक से कम नही था।

खैर गिरफ्तारी के बाद हर जगह यह गिरफ्तारी चर्चा में रही बाद में बृजेश को वाराणसी के सेंट्रल जेल में रखा गया समय के साथ बृजेश ने योजना के तहत अपनी पत्नी को ‘ले देकर’ एक पार्टी से एम एल सी बनाया बाद में उस पार्टी से भाव न मिलने पर चन्दौली के सैयदराजा से चुनाव लड़ा मगर करोड़ो रूपये पानी की तरह बहाने के बाद भी निर्दल मनोज सिंह डब्लू से मुँह की खाने के बाद ख्याति और कुख्याति का फर्क समझ आया, लिहाजा स्थानीय निकाय चुनाव में करोड़ो रूपये पानी की तरह बहाने और ‘नाथ’ के अदृश्य समर्थन के बाद सपा प्रत्याशी मीना सिंह से 1986 मतों से बृजेश ने जीत दर्ज की।

और यहीं से मान या न मान है कर मेरा जबरन सम्मान की शुरुआत हुई

एमएलसी बनते ही बृजेश के नाम के साथ माननीय शब्द ऐसे जुड़ गया जैसे किसी का नाम हो रामसुख मगर कर्म उसका कामसुख हो । सूत्रों की माने तो एमएलसी बनते ही अपने टेरर को धार और काली कमाई को व्यापार बनाने के लिए बृजेश ने अपने गुर्गो को कामपर लगा दिया एक तो मिनिस्टर ‘नाथ’का साथ ऊपर से माननीय का दर्जा.. यही कारण है कि सत्तारुण सरकार माफिया के लिए आंखे मुद कर पड़ी रहने लगी लोगों की माने तो इसी का नाजायज फायदा उठा बृजेश अपने मकसद को अंजाम देने के लिए येन केन प्रकारेण बीमारी का बहाना बना जेल से पूर्व के मुकदमो को प्रभावित करने और वसूली ठेको के लिए इलाज की आड़ में बीएचयू में डेरा डाल दिया जब लम्बे समय तक हॉस्पिटल में पड़े रहने की खबर वाराणसी के अखबारों को हुई तो जाहिर सी बात है लोकतांत्रिक खम्बा अपना फर्ज निभाएगा ही लिहाजा बृजेश के इलाज पर सवाल खड़े होंने लगे इससे तिलमिलाये माफिया मास्टर यानी बृजेश ने उन अखबारों को अर्दब दवाब में लेने के लिए मान हानि का नोटिस भेज दिया ।

अमर उजाला के सम्पादक राजेन्द्र त्रिपाठी व समाजसेवी राकेश न्यायिक के ऊपर ब्रजेश सिंह ने मानहानि का परिवाद दर्ज कराया है आरोप है कि हम लोग की राजनीति बैकग्राउंड है कहि न कही खबर से इन सबकी प्रतिष्ठा धूमिल हुई है

लोग कहते हैं इन अखबारों को नोटिस से कोई फर्क नही पड़ता क्योंकि मान उसी का है जो सम्मानित हो औऱ जो हिस्ट्रीशीटर हो उसका मान सम्मान कैसा और क्यों..?

अभी कुछ दिनों पहले ही वाराणसी जिले के एक विधायक के बीजेपी अध्यक्ष ने एक सवाल के जवाब में ‘चोर’ कह दिए तो जिस एमलसी की पूरी जवानी जिंदगानी वसूली, रंगदारी ,अपराध में गुजरी हो उसका कैसा मान कैसी हानि..? बल्कि उसे तो अपने पूर्व के कर्मो के लिए उन पीड़ितों जो इसके अपराध कर्मो की वजह से अपनो को खो चुके हैं उनसे माफी मांगनी चाहिए आप माफिया से माननीय हो सकते हैं मगर आपसे लुटे पिटे बर्बाद हुए और उन विधवाओं की सुनी मांग चीख चीख कर आपको माफिया मर्डरर ही कहेगा क्योंकि आप सफेद शर्ट पर सैकड़ों खून के धब्बे हैं जो इस जीवन में आपको मान नही दिला सकते . औऱ ख्यात और कुख्यात में जनता फर्क जानती है आप जनता और अखबार से जबरन मान चाहते हैं तो आपका भरम है कम से कम मुझसे और मेरे अखबार से यह उम्मीद तो नही होनी चाहिए।

हम तो अपराध अपराधीयों भ्र्ष्टाचार भ्र्ष्टाचारियों के खिलाफ यूँ ही मुखर रहेंगे चाहे भले ही अंजाम गौरी लंकेश जैसा हो।