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पिछले एक साल से भी ज़्यादा समय से जब-जब भारतीय जनता पार्टी या संघ के भीतरखाने राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार के नामों पर विचार होता था तो एक नाम थावर चंद गहलोत का भी लिया जाता था. माना जाता रहा कि मोदी अगर किसी दलित चेहरे को राष्ट्रपति भवन में भेजने का मन बनाते हैं तो थावर चंद गहलोत उनकी पसंद हो सकते हैं.

थावर चंद गहलोत दलित हैं. मध्य प्रदेश से भाजपा के सांसद हैं. राज्यसभा के लिए चुने गए हैं और फिलहाल केंद्र सरकार में सामाजिक न्याय एवं सहकारिता मंत्री हैं. भाजपा की राजनीति का अपना चरित्र है. यहां दलित चेहरे होते हैं पर उतने चर्चित नहीं जितने अगड़े. यह भाजपा के विचार का जातीय विधान जैसा है. लेकिन फिर भी जो चेहरे हैं, उनमें थावर चंद एक प्रभावी नाम हैं.

तो फिर ऐसा क्या हुआ कि मध्य प्रदेश के इस दलित की जगह मोदी ने कानपुर के एक अन्य दलित चेहरे को अपनी पसंद बना लिया. दरअसल, मोदी राजनीति में अपनी सूची वहां से शुरू करते हैं जहां से लोगों के कयासों की सूची खत्म होती है. जिन नामों पर लोग विचार करते हैं, ऐसा लगता है कि मोदी उन नामों को अपनी सूची से बाहर करते चले जाते हैं. मोदी को शायद इस खेल में मज़ा भी आता है और इस तरह वो अपने चयन को सबसे अलग, सबसे हटकर साबित भी करते रहते हैं.

 

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