खुल रहा नया समझौते का ‘रहस्य’, दे रहे विद्रोहियों को ‘आज़ादी’!- देश से कौन खेल रहा है

  • गोपनीय क्यों रखा गया नगा शांति समझौते का मसौदा?
  • कश्मीरी अलगाववादियों की ‘आज़ादी’ की मांग राष्ट्रद्रोह
  • नगा अलगाववादियों की ‘आज़ादी’ की मांग राष्ट्रवाद कैसे!
  • नगालैंड का होगा अपना जज, अपनी सेना और अपनी मुद्रा
  • सेना बोली, ऐसा हुआ तो नगालैंड भी हाथ से निकला समझें
  • क़ानून को ठेंगा, पीएमओ ने जेल से छुड़वाया खूंखार विद्रोही

क्या मोदी सरकार पूर्वोत्तर में एक और कश्मीर स्थापित करने की कोशिश में है, जिसका अपना संविधान होगा, अपनी न्यायिक व्यवस्था होगी, अपना झंडा होगा, अपनी मुद्रा होगी, अपना पासपोर्ट होगा और अपनी सेना होगी, जो भारतीय सेना के साथ साझा तौर पर काम करेगी! भारतीय सेना के शीर्ष अफसर भी यह संकेत दे रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नगाओं को ‘आजादी’ देने जा रहे हैं, जो आने वाले समय में कश्मीर से ज्यादा खतरनाक साबित होने वाला है.

पूर्वोत्तर के साथ-साथ शेष भारत के आम लोग भी पीएम मोदी से पूछ रहे हैं कि कश्मीरी अलगाववादियों की ‘आजादी’ की मांग राष्ट्र-द्रोह और नगा विद्रोहियों की ‘आजादी’ की मांग राष्ट्रवाद कैसे है? यह वाजिब लोकतांत्रिक सवाल है, इसका जवाब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देना ही चाहिए.

केंद्र की सत्ता में आने के सालभर बाद ही तीन अगस्त 2015 को नरेंद्र मोदी सरकार ने नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड ‘ईसाक-मुइवा’ (एनएससीएन-आईएम) गुट के साथ एक समझौता किया, लेकिन देश के सामने इसका ब्यौरा नहीं रखा. केंद्र सरकार की तरफ से यह कहा गया कि पहले इसका विवरण संसद के समक्ष रखा जाएगा, फिर बाद में इसे सार्वजनिक किया जाएगा. लेकिन केंद्र सरकार ने दोनों काम नहीं किया. न संसद में रखा और न जन-संसद को इस लायक समझा.

समझौते के दो साल होने को आए, लेकिन केंद्र सरकार ने देश को यह बताने की जरूरत नहीं समझी कि समझौते के कौन-कौन से मुख्य बिंदु हैं और केंद्र सरकार ने एनएससीएन की क्या-क्या शर्तें मानी हैं. केंद्र ने इसे गोपनीय बना कर रखा है लेकिन पूर्वोत्तर मामलों के विशेषज्ञ वरिष्ठ सेनाधिकारी केंद्र सरकार द्वारा मानी गई शर्तों की परतें खोलते हैं और उन पर अपना क्षोभ जाहिर करते हैं. गृह मंत्रालय के एक आला अधिकारी ने कहा कि एनएससीएन (आईएम) के स्वयंभू लेफ्टिनेंट जनरल और विदेश मंत्री अंथोनी निंगखन शिमरे ने जमानत पर छूटने के बाद जो बातें कहीं, उसके बाद समझौते की गोपनीयता कहां रह गई.

शिमरे के बयान को ध्यान से देखें, उसने तो बता ही दिया है कि क्या होने जा रहा है. शिमरे एनएससीएन प्रमुख मुइवा का भांजा है. शीर्ष सत्ता गलियारे में जिस तरह की सुगबुगाहटें हैं, उससे केंद्र सरकार के एनएससीएन (आईएम) के आगे दंडवत होने के कई उदाहरण सामने दिखने लगे हैं. विदेशों से बड़ी तादाद में हथियारों का जखीरा जमा करने के आरोप में गिरफ्तार किए गए अंथोनी शिमरे की जमानत अर्जी पर नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) का कोई आपत्ति दर्ज नहीं करना और शिमरे को बड़े आराम से जमानत मिल जाना, केंद्र सरकार की दंडवत-कथा के बारे में काफी-कुछ कहता है.

दिल्ली के पटियाला हाउस स्पेशल कोर्ट के जज अमरनाथ के समक्ष एनआईए के स्पेशल पब्लिक प्रॉसीक्यूटर ने ‘ऑन-रिकॉर्ड’ कहा था कि उन्हें ई-मेल पर एनआईए से निर्देश मिला है कि शिमरे की जमानत अर्जी पर कोई आपत्ति दाखिल न की जाए. एनआईए के वकील ने अदालत से यह भी कहा कि शिमरे की जमानत एनएससीएन (आईएम) के साथ चल रही शांतिवार्ता के कार्यान्वयन के लिए जरूरी है. शिमरे को सितम्बर 2010 में काठमांडू में गिरफ्तार दिखाया गया था. उसे चीन के साथ हथियारों की बड़ी डील करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था, लेकिन चार अगस्त 2016 को एनआईए ने ही शिमरे की रिहाई का रास्ता खोल दिया.

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