जज लोया की मौत को ‘असंदिग्ध’ बताते चार जजों के बयान को ‘संदिग्ध’ करते 17 बयान!

रवीश कुमार

 

जज लोया की मौत के मामले में कैरवान की निकिता सक्सेना ने उस रवि भवन के 17 कर्मचारियों से बात की है जो उस वक्त वहां तैनात थे। निकिता ने लिखा है कि किसी को भी उस रात किसी मेहमान के बीमार पढ़ने की ख़बर नहीं थी बल्कि जज लोया की मौत हुई है, इसका पता उन्हें तीन साल बाद चला था। ये सभी कर्मचारी महाराष्ट्र के अलग अलग हिस्सों में तैनात हैं, निकिता ने हर किसी के पास जाकर बात की है बल्कि अपने सवालों को लेकर वह कई लोगों के पास कई कई बार गई है। इसे कहते हैं रिपोर्टिंग। 17 में से 15 ने कहा कि उन्हें तो उस रात पता ही नहीं चला कि कोई जज बीमार पड़ा है या उसकी मौत हुई है। आम तौर पर नाइट शिफ्ट वाले कर्मचारी ऐसी घटनाओं को दिन की पाली वाले कर्मचारियों को बताते हैं। मगर हम सभी को 2017 में पता चला जब प्रेस में रवि भवन में जज लोया की मौत को लेकर चर्चा होने लगी।

आप जानते हैं कि चार जजों ने लिख कर दिया है कि जज लोया की मौत में संदिग्ध कुछ भी नहीं है। उनकी तबीयत बिगड़ी तो बाहर से एक जज बेर्डे को बुलाया गया। लेकिन क्या यह बात मानने लायक है कि तब तक इन लोगों ने रवि भवन के किसी स्टाफ को नहीं बताया होगा। उनकी मदद नहीं ली होगी। इन चार जजों के हलफनामे के आधार पर ही महाराष्ट्र सरकार जज लोया की मौत की जांच का विरोध कर रही है

निकिता ने बताया है कि जज लोया का कमरा और रिसेप्शन इतना करीब है कि कुछ भी हलचल हो और नाइट शिफ्ट वालों को पता न चले, ऐसा हो ही नहीं सकता है। आम तौर पर नाइट शिफ्ट वाले रिसेप्शन एरिया में ही जमा रहते हैं। रात के वक्त रवि भवन का दरवाज़ा बंद हो जाता है। आप शीशे की दीवारों से रवि भवन के गेट से किसी को आते-जाते देख सकते हैं। कर्मचारी ने बताया है कि गहरी नींद में सोने का सवाल ही नहीं होता है। हम नाइट शिफ्ट में मुश्किल से सो पाते हैं। कुछ भी होता है हमें पता चल जाता है। निरंजन टाकले की साहसिक रिपोर्टिंग के बाद निकिता सक्सेना ने इस कहानी को और मज़बूत बना दिया है। शानदार बात यह है कि जहां बड़े बड़े चैनल थूक चाट रहे हैं वहां कैरवान अपनी इस स्टोरी पर लगातार रिपोर्टिंग किए जा रहा है।

आपने आज का इंडियन एक्सप्रेस पढ़ा? सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस चेलामेश्वर ने मुख्य न्यायाधीश समेत सभी 22 जजों को पत्र लिखा है कि न्यायपालिका में सरकार के हस्तक्षेप को लेकर भरी अदालत में चर्चा होनी चाहिए। ताकि हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति में सरकार की भूमिका सामने आ सके। मुख्य न्यायाधीश ने इस पत्र का जवाब नहीं दिया है। 12 जनवरी को जस्टिस चेलामेश्वर समेत चार जजों ने प्रेस कांफ्रेंस की थी और सुप्रीम कोर्ट के भीतर चल रही गड़बड़ियों को लेकर सवाल उठाया था। पत्र में लिखा है कि सरकार कोलेजियम के सुझाए उन नामों को मंज़ूरी नहीं दे रही है जिन्हें लेकर वो सहज नहीं है।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में कर्नाटक का एक उदाहरण दिया गया है। कोलेजियम में अगस्त 2016 में ज़िला और सत्र न्यायाधीश पी कृष्ण भट्ट को हाई कोर्ट जज बनाने का प्रस्ताव किया था। मगर किसी सिविल जज ने उन पर आरोप लगा दिया। कर्नाटक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने सुनवाई कर आरोपों को निराधार और मनगढ़ंत बताया। इसके बाद अप्रैल 2017 में सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम ने दोबारा से भट्ट के नाम का प्रस्ताव भेजा इसके बाद भी प्रोन्नति नहीं दी जा रही है जबकि कानून सरकार ऐसा नहीं कर सकती है। दोबारा नाम भेजने पर कोलेजियम की बात माननी पड़ती है। अब फिर से न्यायमूर्ति भट्ट के ख़िलाफ़ मामले को खोल दिया गया है। जस्टिस चेलामेश्वर का कहना है कि सरकार कर्नाटक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस माहेश्वरी से सीधा संवाद कर रही है। उन्होंने न्यायमूर्ति भट्ट के खिलाफ दोबारा मामले की जांच को लेकर आलोचना की है। तो कुल मिलाकर यह सब खेल चल रहा है।

जनता के घरों में आग लगाई जा रही है, लोकतंत्र की संस्थाओं को भीतर से सुलगाया जा रहा है। आप देखते रहिए वरना एक दिन कुछ भी देखने के लिए नहीं बचेगा।

पढ़िए कैरवान की स्टोरी–

Death Of Judge Loya: Testimonies Of 17 Current And Former Ravi Bhawan Employees Raise Troubling Questions About Statements Of Four Judges

 

रवीश कुमार मशहूर टी.वी पत्रकार हैं।