जज लोया मामले पर बहुत ही ग़लत फ़ैसला, सुप्रीम कोर्ट के लिए काला दिन: प्रशांत भूषण

Prashant Bhushan, a senior lawyer, speaks with the media after a verdict on right to privacy outside the Supreme Court in New Delhi, India August 24, 2017. REUTERS/Adnan Abidi

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने विशेष सीबीआई जज ब्रजगोपाल हरकिशन लोया की मौत की स्वतंत्र जांच कराने की मांग करने वाली याचिकाएं खारिज कर दी हैं. मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने कहा कि बीएच लोया की मृत्यु प्राकृतिक कारणों से हुई थी.

इस मामले पर वकील प्रशांत भूषण का बयान…

सुप्रीम कोर्ट ने जज लोया के मामले में फैसला सुनाया है. उन्होंने उन सारी याचिकाओं को जिसमें जज लोया के मौत की स्वतंत्र जांच की मांग की गई थी, खारिज कर दिया है और ये बोला है कि सुप्रीम कोर्ट के पास उन चार लोअर कोर्ट के जजों की बात पर विश्वास नहीं करने की कोई वजह नहीं है.

जो स्टेटमेंट उन जजों ने, कहा जाता है कि महाराष्ट्र के एक पुलिस आॅफिसर को दिए और उन्होंने बोला कि उन जजों ने यह बोला था कि जज लोया उनके साथ रात में गेस्ट हाउस में रुके थे. उसके बाद उनको चेस्ट में पेन हुआ था तो अस्पताल ले गए थे. फिर दूसरे अस्पताल ले गए थे. जहां उनकी मौत हो गई थी.

इसलिए उन चार जजों के स्टेटमेंट के हिसाब से कोई वजह नहीं है इस पर संदेह करने की. इस आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वतंत्र जांच की मांग को ठुकरा दिया है. ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि चार जज जिनका कोई एफिडेविट पर स्टेटमेंट सुप्रीम कोर्ट के सामने नहीं आया और उस पुलिस अफसर का भी कोई एफिडेविट पर स्टेटमेंट नहीं आया है जिसकी वजह से कोई ये पक्का कह भी नहीं सकता कि भाई इन जजों ने यह स्टेटमेंट दिया.

अगर उन जजों का स्टेटमेंट मान भी लिया जाय तो जस्टिस कौल ने जज लोया की ईसीजी और हिस्ट्रो पैथोलॉजी रिपोर्ट के आधार पर यह बोला था कि उसमें जरा भी कोई सबूत नहीं है कि उनकी मौत हार्ट अटैक से हुई. हार्ट अटैक का कोई साक्ष्य उस ईसीजी में नहीं है जिस ईसीजी के बारे में थोड़ा संदेह था लेकिन बाद में सरकार ने बोला था कि भई उस अस्पताल में उनका यही ईजीसी लिया गया था.

उन्होंने बोला कि इस ईसीजी में हार्ट अटैक का कोई भी सबूत नहीं है. हिस्ट्रो पैथोलॉजी की रिपोर्ट में इस बात के कोई साक्ष्य नहीं है. फिर भी इन जजों के स्टेटमेंट के आधार पर जो एफिडेविट पर भी नहीं आए थे, सुप्रीम कोर्ट ने स्वतंत्र जांच की मांग को ठुकरा दी. जबकि इतने सारे संदेह उत्पन्न हुए थे.

उनकी फैमिली ने बोला था कि जज लोया को वहां के चीफ जस्टिस ने घूस की पेशकश की थी. उस पर भी कोई जांच नहीं कराई गई. उनके परिवार ने बोला था कि उनके कपड़ों पर खून के निशान थे लेकिन उसकी भी कोई जांच नहीं कराई गई. ये सवाल भी उठा था कि तीन जज, दो बिस्तर के एक कमरे में रात में कैसे सोए और क्यों सोए जबकि उस गेस्ट हाउस में कई और कमरे थे जो कि खाली थे.

तो ये कहानी जो बनाई गई कि तीनों जज एक ही कमरे में सो रहे थे. इस कहानी की भी जांच होनी चाहिए लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस आधार पर ये भी बोल दिया कि जो एक सवाल मैंने पूछा था कि क्या ये ठीक होगा कि आप जो जज इसकी सुनवाई कर रहे हैं वो जज क्योंकि उन महाराष्ट्र के जजों के जानते हैं, क्योंकि दो जज महाराष्ट्र से थे और आप अपने नॉलेज के आधार पर इस केस को डिसाइड कर दें कि आप उन जजों को जानते हैं जबकि उनका स्टेटमेंट एफिडेविट पर भी नहीं आया था. लेकिन फिर भी इस आधार पर उन्होंने बोल दिया कि नहीं- नहीं ये तो बिल्कुल गलत बात है ये कहना कि हमको इसकी सुनवाई नहीं करनी चाहिए. वगैरह-वगैरह…

मेरी राय में ये एक बहुत ही गलत फैसला हुआ है और सुप्रीम कोर्ट के लिए मेरी राय में एक काला दिन है. क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने बजाय इसके कि भाई एक स्वतंत्र जांच हो जाए जब इतने सारे संदेह हो गए थे. जज लोया के मौत के ऊपर पर्दा डालने का काम किया है.