तपती धरती को मिला सावन की फुहार

मीना मौर्य ( मशाल)
तपती धरती को मिला सावन की फुहार
 बरखा में भीग- भीग कर ठंडी हुई बयार
 मनमोहक मौसम में नाच उठे हैं मोर
 नभ मे बिजली चमके घटा घिरी घनघोर
 हरे रंग से सजी धरती ले रही अंगड़ाई
 धानी चुनर की शोभा मन मस्तिष्क पर छाई
 सावन समीर उड़ाया सखियो का आंचल
 झूला- झूलना भूली देख काले बादल
सावन ने आकर किया धरती का श्रृंगार
अद्भुत शोभा देख विरहनी  हो गई बीमार
 मेघदल चल दिया चांदनी भरा आकाश
ऐसी छटा देख कवि करें कविता विकाश.

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