दूरगामी असर होगा निजता के मौलिक अधिकार का

विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए संविधान के तहत निजता के अधिकार को बुनियादी अधिकार करार दे दिया. इस फैसले के बारे में बेहद महत्वपूर्ण बात यह भी है कि नौ-सदस्यीय खंडपीठ ने यह फैसला सर्वसम्मति से सुनाया है और न्यायाधीशों के बीच इस मुद्दे पर कोई मतभेद नहीं था. इस फैसले ने सुप्रीम कोर्ट के ही पहले के दो फैसलों को उलट दिया है और कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 21 में दिये गए जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार में ही निजता की अवधारणा भी निहित है और वह एक बुनियादी अधिकार है.

हालांकि इस खंडपीठ ने आधार कार्ड संबंधी याचिकाओं पर सुनवाई नहीं की लेकिन माना जा रहा है कि इस फैसले का असर आधार कार्ड वाले मामले के अलावा कई अन्य क्षेत्रों पर भी पड़ेगा. आधार कार्ड की योजना पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में शुरू की गयी थी. कांग्रेस का आरोप है कि जहां उसने निजता के अधिकार की हिफाजत करते हुए कानून बनाया था, वहीं वर्तमान नरेंद्र मोदी सरकार ने कानून में ऐसी व्यवस्थाएं जोड़ दीं हैं, जिनसे निजता के अधिकार को चोट पहुंचती है.

कोर्ट के फैसले का अर्थ है कि अब नागरिकों के विवाह, यौनिकता और पारिवारिक संबंधों से जुड़ी जानकारी महफूज रहेगी. क्रेडिट कार्ड, आयकर रिटर्न भरते समय की गयी घोषणाएं, सोशल नेटवर्किंग प्लेटफॉर्मों पर दी गयी जानकारी और इसी तरह की सभी किस्म की सार्वजनिक जानकारियों को साझा न करने के लिए अब नागरिकों को संवैधानिक संरक्षण मिल गया है. राज्य और नागरिकों के बीच सहज संबंध बनाने की दिशा में यह एक ऐतिहासिक कदम होगा और इसका व्यापक एवं दूरगामी प्रभाव पड़ेगा

डिजिटल डेटा के इस युग में विश्व वास्तव में एक भूमंडलीय गांव में तब्दील हो चुका है. जॉर्ज ऑरवेल के उपन्यास ‘उन्नीस सौ चौरासी’ में वर्णित काल्पनिक स्थिति एक ऐसे यथार्थ में बदलती दिख रही है जिसमें ‘बड़ा भाई नजर रख रहा है’ (यानी राज्य और उसकी एजेंसियां हर समय नागरिकों की हर गतिविधि पर नजर रख रही हैं) वाली स्थिति सचमुच पैदा हो गयी है. ऐसे में नागरिकों की निजता की रक्षा करने की दिशा में सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला मील का पत्थर साबित होगा.

आधार कार्ड के संबंध में याचिकाकर्ताओं का कहना है कि उसके लिए नागरिकों की बायोमीट्रिक जानकारी यानी आंखों की पुतली और हाथ की सभी उंगलियों की डिजिटल जानकारी इकट्ठी की जाती है जिसका दुरुपयोग होने की पूरी पूरी संभावना है, खासकर ऐसे युग में जहां जानकारी का अर्थ धन और सत्ता हो गया है. निजी क्षेत्र की कंपनियों के पास नागरिकों के बैंक खातों, खरीदारी के पैटर्न आदि अनेक ऐसी बातों की पूरी जानकारी पहुंच जाती है, जिसका सीधा संबंध निजता के अधिकार से है. हालांकि सरकार का दावा है कि अधिकार कार्ड संबंधी सारी जानकारी सुरक्षित है, लेकिन एक ऐसे समय में जहां हैकिंग के द्वारा पेंटागन और नासा तक के नेटवर्क में सेंध लगाना संभव हो गया है, भारत सरकार के दावे पर आसानी से विश्वास करना कठिन है. इसी तरह डीएनए प्रोफाइल के संबंध में सरकार जो विधेयक तैयार कर रही है, उसके ऊपर भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का असर पड़ सकता है क्योंकि डीएनए तो किसी भी व्यक्ति की सबसे अधिक गोपनीय और निजी जानकारी है.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का दायरा इतना अधिक व्यापक है कि फैसला आते ही उसके सभी क्षेत्रों पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करना आसान नहीं है. जब आधार कार्ड तथा अन्य मामलों से संबंधित मुकदमों में सुनवाई होगी, तभी ठीक ठीक पता चल पाएगा कि कानूनी प्रक्रिया को यह कितनी गहराई तक प्रभावित करता है.

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