देश के सबसे बड़े बैंक एनपीए के चपेट में , चौथी तिमाही में हुआ 7,718 करोड़ रुपये का घाटा

देश में बढ़ते बैंक घोटालों और उससे थम नहीं रहे नॉन परफोर्मिंग अस्सेट (एनपीए) के कारण देश के बैंक डूबते जा रहे हैं। और अब इस से देश का सबसे बड़ा बैंक स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया भी बच नहीं पा रहा है।

देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) को वित्त वर्ष 2017-18 की चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च) में 7,718 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है। इसका कारण बढ़ते एनपीए को ही बताया जा रहा है। इसके बावजूद मोदी सरकार कर्जदारों पर कार्रवाई करने के बजाए अपने चहिते उद्योगपतियों को लोन दिला रही है।

गौरतलब है कि मोदी सरकार के सत्ता में आते ही प्रधानमंत्री मोदी के करीबी माने जाने वाले उद्योगपति गौतम अडानी को एसबीआई से 62000 करोड़ रुपये का लोन मिला था।

एन.पी.ए बैंकों का वो लोन होता है जिसके वापस आने की उम्मीद नहीं होता। इस कर्ज़ में 90% से ज़्यादा हीस्सा उद्योगपतियों का है। अक्सर उद्योगपति बैंक से कर्ज़ लेकर खुद को दिवालियाँ दिखा देते हैं और उनका लोन एन.पी.ए में बदल जाता है। यही उस लोन के साथ होता है जिसे बिना चुकाए नीरव मोदी और विजय माल्या जैसे लोग देश छोड़कर भाग जाते हैं।

इस घाटे की वजह बैंक की ओर से बढ़ाई गई प्रोविजनिंग है। इसका मतलब है कि बैंक अप्रैल-मई-जून में डूबे कर्ज बढ़ने की आशंका है। इसीलिए बैंक ने पहले से इसका अनुमान लगाते हुए प्रोविजनिंग बढ़ा दी है।

इस अवधि में बैंक का सकल एनपीए बढ़कर कर्ज के 10.91 प्रतिशत के बराबर हो गया, जो इससे पिछले वित्त वर्ष की समान तिमाही में 6.90 प्रतिशत था। इस दौरान बैंक का शुद्ध एनपीए बढ़कर 5.73 प्रतिशत पर पहुंच गया , जो एक साल पहले समान तिमाही में 3.71 प्रतिशत था।

एनपीए पर नजर डालें तो तिमाही आधार पर चौथी तिमाही में एसबीआई का ग्रॉस एनपीए 1.99 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2.2 लाख करोड़ रुपये रहा है।

सरकारी बैंकों के एनपीए में भी पिछले कुछ सालों में इसी तरह का बढ़ोतरी देखी गई है। रिज़र्व बैंक ने एक आरटीआई के जवाब में बताया कि जून 2017 के आखिरी में देश का एनपीए 9 लाख 50 हज़ार के रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गया है। जबकि 2013-14 में ये 2 लाख 40 हज़ार करोड़ था। देश में लगभग 90% एनपीए सरकारी बैंकों का ही है।