नरेंद्र मोदी के लिए बड़ी चुनौती, नौकरियां पैदा करने में मनमोहन सिंह से भी पिछड़े, अभी स्थिति सुधरने के भी आसार नहीं

श्रम मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार साल 2013 में 4.19 लाख नई नौकरियां निकली थीं, वहीं साल 2014 में 4.21 लाख और 2015 में वह 1.35 लाख नई नौकरियां ही तैयार हुईं।

 

बाकि किसी वर्ग के लिए नरेंद्र मोदी सरकार का पहला तीन साल चाहे जैसा भी रहा है देश के करोड़ों बेरोजगान नौजवानों के लिए ये साल अच्छे नहीं रहे। “अच्छे दिन” के वादे के साथ केंद्र की सत्ता में आई नरेंद्र मोदी सरकार नए रोजगार सृजित करने के मामले में पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह सरकार से भी पीछे है। नए रोजगार तैयार होने की दर पिछले आठ सालों के न्यूनतम स्तर पर है। इससे भी बुरी खबर ये है कि निकट भविष्य में भी रोजगार तैयार करने को लेकर कोई सकारात्मक संकेत नहीं मिल रहे हैं।  नरेंद्र मोदी सरकार अपने तीन साल पूरे करने जा रही है। नरेंद्र मोदी ने 26 मई 2014 को अपनी कैबिनेट के साथ शपथ ग्रहण किया था।

केंद्रीय श्रम मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार पिछले आठ सालों में सबसे साल 2015 और साल 2016 में क्रमशः 1.55 लाख और 2.31 लाख नई नौकरियां तैयार हुईं। मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल में साल 2009 में 10 लाख नई नौकरियां तैयार हुई थीं। जहां एक तरफ केंद्र सरकार नई नौकरियां नहीं तैयार कर पा रही है वहीं भारत में बहुत बड़े वर्ग को रोजगार देने वाले आईटी सेक्टर में हजारों युवाओं की छंटनी हो रही है। आईटी सेक्टर पर नजर रखने वाली संस्थाओं के अनुसार भारत के आईटी सेक्टर में सुधार की निकट भविष्य में कोई संभावना नहीं दिख रही है।

केंद्र में सत्ता में आने से पहले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने हर साल दो करोड़ नए रोजगार पैदा करने का वादा किया था। रोजगार सृजन में लगातार पिछड़ते जाने के बाद हो रही आलोचनाओं के जवाब में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने मीडिया से कहा था कि उनकी पार्टी ने नौकरी नहीं बल्कि “रोजगार” सृजन का वादा किया था। अमित शाह ने दावा किया कि मोदी सरकार की स्किल इंडिया और स्टार्ट-अप इंडिया जैसे कार्यक्रम से काफी रोजगार पैदा हुए हैं।

भारत की आधी आबादी 35 साल से कम उम्र की है। साल 2020 तक भारत की औसत आयु 29 साल होगी जो पूरी दुनिया में सबसे न्यूनतम में से एक होगी। युवाओं की बड़ी संख्या को देखते हुए केंद्र सरकार को हर साल 1.20 करोड़ से 1.50 करोड़ तक नए रोजगार तैयार करने की जरूरत होगी। अंधेरे में उम्मीद की एकमात्र किरण श्रम मंत्रालय का यह दावा है कि पिछले साल की आखिरी तिमाही (अक्टूबर-दिसंबर 2016) में 1.22 लाख नई नौकरियां तैयार हुई थीं और ये रोजगार सृजन के लिए सकारात्मक संकेत हैं। हालांकि आर्थिक विशेषज्ञ  मंत्रालय के इस दावे से ज्यादा इत्तेफाक नहीं रखते।

श्रम मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार साल 2013 में 4.19 लाख नई नौकरियां निकली थीं, वहीं साल 2014 में 4.21 लाख और 2015 में वह 1.35 लाख नई नौकरियां ही तैयार हुईं। इन आंकड़ों के अनुसार पिछले छह सालों में सबसे कम रोजगार 2015 में तैयार हुए। ये आंकड़े रोजगार के आठ प्रमुख क्षेत्रों टेक्सटाइल, लेदर, मेटल, ऑटोमोबाइल और जूलरी इत्यादि के 1,932 यूनिट के अध्ययन पर आधारित थे।

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