पांच मौके जब मोदी सरकार को सुप्रीम कोर्ट से लगा झटका

प्राइवेसी के अधिकार को मौलिक अधिकारों का दर्जा देने के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इसके ख़िलाफ़ दी गईं केंद्र सरकार की दलीलें ठुकरा दीं.

भारत सरकार की तरफ़ से एटॉर्नी जनरल ने कहा संविधान में निजता का अधिकार न तो मौलिक अधिकार है और न ही कोई सामान्य अधिकार.

सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद ये तय हो गया कि प्राइवेसी अब एक मौलिक अधिकार है और इसके साथ ही सरकार ने इसे लांघने के लिए सरकार की हदें भी तय कर दी हैं.

माना जा रहा है कि गुरुवार के फ़ैसले का असर आधार क़ानून को चुनौती देने वाली याचिका को लेकर कोर्ट के फ़ैसले पर भी पड़ सकता है. लेकिन ये कोई पहला मौका नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार के मंसूबों पर पानी फेर दिया.

चार बड़े मामले

इसी अगस्त के महीने में सुप्रीम कोर्ट में काटने के लिए पशुओं की खरीद बिक्री पर बैन के अपने फैसले का केंद्र सरकार बचाव नहीं कर पाई थी.

केंद्र के इस फ़ैसले पर मद्रास हाई कोर्ट की मदुरै बेंच ने रोक लगा दी थी और सुप्रीम कोर्ट ने मदुरै बेंच के फ़ैसले को पूरे देश में लागू कर दिया था.

अरुणाचल प्रदेश मामला: जुलाई, 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू करने के केंद्र के फ़ैसले को पलट दिया था.

अरुणाचल प्रदेश में राजनीतिक गतिरोध का हवाला देते हुए केंद्र सरकार ने 24 जनवरी, 2016 को वहां राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर दी थी.

इसे कांग्रेस पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.

उत्तराखंड केस: अरुणाचल प्रदेश पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कुछ अर्से पहले उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लागू करने का मामला सबसे बड़ी अदालत में पहुंचा.

उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लागू करने के फ़ैसले का मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट में बचाव नहीं कर पाई थी.

मई, 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति शासन हटाते हुए हरीश रावत की सरकार फिर से बहाल कर दी थी.

एनजीएसी केस: मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति करने वाली कॉलेजियम व्यवस्था को ख़त्म करने के लिए 2014 में संविधान संशोधन किया.

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर, 2015 में सरकार की दलील ख़ारिज करते हुए एनजेएसी एक्ट को असंवैधानिक क़रार दे दिया.

 

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