प्रसार भारती से नाराज़ स्मृति ईरानी ने दूरदर्शन और आकाशवाणी का सैलरी फंड रोका

विशेष रिपोर्ट: प्रसार भारती बोर्ड के अध्यक्ष ए. सूर्य प्रकाश ने बताया कि कर्मचारियों को जनवरी और फरवरी महीने का वेतन संस्थान की आकस्मिक निधि से दिया गया है.

नई दिल्ली: एक निजी कंपनी को दूरदर्शन की कीमत पर करीब तीन करोड़ रुपये के भुगतान को लेकर प्रसार भारती के साथ हुए विवाद के चलते केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी ने अप्रत्याशित कदम उठाते हुए उस फंड पर रोक लगा दी है, जिससे दूरदर्शन और आॅल इंडिया रेडियो के कर्मचारियों के वेतन का भुगतान होता है.

प्रसार भारती बोर्ड के चेयरमैन ए. सूर्य प्रकाश ने द वायर  को बताया कि उनकी इस ‘दंडात्मक’ कदम के चलते प्रसार भारती ने कर्मचारियों की जनवरी और फरवरी माह का वेतन आकस्मिक निधि से दिया है. अगर यह गतिरोध जारी रहता है तो अप्रैल तक बोर्ड के पास पैसा नहीं बचेगा.

यह कुछ वैसा ही है, जैसा वित्त मंत्री अरुण जेटली कर चुके हैं. जेटली ने भी रिज़र्व बैंक के सामने स्टाफ को तनख्वाह देने की मुश्किल खड़ी कर दी थी क्योंकि उन्हें ब्याज दर पसंद नहीं थी.

मालूम हो कि केंद्र सरकार ने 2018-19 के बजट में प्रसार भारती को लगभग 2,800 करोड़ रुपये दिए हैं. इस बजट का आवंटन सूचना और प्रसारण मंत्रालय के जरिए किया जाता है जो हर महीने लगभग 5,000 कर्मचारियों के वेतन के लिए प्रसार भारती को पैसे जारी करता है.

प्रसार भारती के सूत्रों का कहना है कि हर महीने मंत्रालय द्वारा पैसे जारी करने से पहले सवाल उठाए जा रहे थे, समस्याएं पैदा की जा रही थीं, लेकिन दिसंबर के बाद से उसने वेतन के लिए धन जारी नहीं किया है, जिससे आकस्मिक निधि से खर्च करना पड़ा है.

उनके अनुसार इस संकट की शुरुआत तब हुई जब इस ‘स्वायत्त’ संस्था के प्रमुख ए. सूर्य प्रकाश ने स्मृति ईरानी के फैसलों पर सवाल उठाना शुरू किया.

एक असाइनमेंट के लिए दूरदर्शन द्वारा एक निजी कंपनी को 2.92 करोड़ रुपये भुगतान करने संबंधी मंत्रालय की मांग को अनावश्यक आउटसोर्स बताकर खारिज करने के अलावा ए. सूर्य प्रकाश और उनके बोर्ड ने दो महत्वपूर्ण पदों पर उन पत्रकारों की नियुक्ति रोककर स्मृति ईरानी को गुस्सा दिला दिया, जिनकी सैलरी प्रसार भारती द्वारा दी जाने वाली सैलरी से बहुत ज्यादा थी.

हालांकि पत्रकारों को एक सर्च कमेटी द्वारा नामित किया गया था, लेकिन बताया जा रहा है कि उनके चयन में निजी तौर पर स्मृति ईरानी की भी सहमति थी. मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार इन नामित पत्रकारों में से एक ईरानी के ‘अनौपचारिक’ मीडिया सलाहकार के बतौर काम करते हैं.

15 फरवरी को हुई प्रसार भारती बोर्ड की बैठक में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के प्रतिनिधि अली रिज़वी ने कथित तौर पर कर्मचारियों के वेतन के लिए पैसे रोकने की धमकी दी थी.

बैठक में हुई घटनाओं से वाकिफ सूत्रों ने द वायर  को बताया कि तब एक जोरदार बहस के दौरान ए. सूर्य प्रकाश ने चिल्लाकर कहा, ‘बजट आवंटन के बारे में ऐसा बोलने की आपकी हिम्मत कैसे हुई? दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो में काम कर रहे सरकारी कर्मचारियों के लिए मासिक वेतन ट्रांसफर करना बजट से जुड़ी जिम्मेदारी है… यह आपके घर से नहीं आता.’

दूरदर्शन और आॅल इंडिया रेडियो के कैजुअल और अनुबंध कर्मचारियों को मिलाकर करीब अपने करीब 1,000 कर्मचारी हैं. इनकी सैलरी प्रसार भारती के खुद के राजस्व से दी जाती है लेकिन इसके अलावा 5,000 से अधिक केंद्र सरकार के कर्मचारी हैं, जिनका वेतन केंद्र के फंड से दिया जाता है.

निजी फर्म के चयन पर विवाद

हालांकि अब नियुक्तियों का मुद्दा ठंडा पड़ गया है, लेकिन मंत्रालय द्वारा दूरदर्शन पर एक प्राइवेट कंपनी को गोवा में आयोजित अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) का फुटेज उपलब्ध कराने के भुगतान को लेकर दबाव डाला जा रहा है, जिसका प्रसार भारती सीधा विरोध कर रहा है.

जब से फिल्म महोत्सव की शुरुआत हुई है, तब से दूरदर्शन ने ही हमेशा इसके उद्घाटन और समापन समारोह को कवर किया है. लेकिन अधिकारियों का कहना है कि 2017 में सूचना और प्रसारण मंत्रालय का कार्यभार मिलने के तुरंत बाद ईरानी ने यह अधिकार अचानक दूरदर्शन से ‘छीन लिया.’

स्मृति ईरानी के इस फैसले से वाकिफ अधिकारियों ने द वायर  को बताया कि उन्होंने फाइल पर इसके लिए कोई कारण बताने की जहमत भी नहीं उठाई. उन्होंने अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के प्रबंधन को मंत्रालय के डायरेक्टोरेट ऑफ फिल्म फेस्टिवल से लेकर सार्वजनिक क्षेत्र के राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम (एनएफडीसी) को दे दिया.

इसके बाद एनएफडीसी ने आईएफएफआई के प्रसारण के विशेष अधिकार मुंबई की एक कंपनी एसओएल प्रोडक्शन प्राइवेट लिमिटेड को दे दिए. यह एक स्वतंत्र प्रोडक्शन हाउस है, जिसे फाज़िला ऐलाना और कामना निरुला मेनेज़ेस चलाती हैं.

ये दोनों पहले रॉनी स्क्रूवाला प्रोडक्शन हाउस, यूटीवी के लिए काम करती थीं. एसओएल जनवरी 2003 में बना था और इसके बनाए कुछ कार्यक्रमों में कॉफी विद करन सीजन 1 और 2 और नच बलिए सीजन 1 और 2 शामिल हैं.

मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि अभिनय के दिनों से ही ईरानी इन दो महिलाओं को जानती हैं इसलिए इस अनुबंध पर सवाल उठना शुरू हुए.

द वायर  द्वारा लगातार ईरानी से एसओएल मालिकों के साथ, अगर कोई रिश्ता है, तो उसे स्पष्ट करने के बारे में सवाल किए गए, यह भी पूछा गया कि उन्हें आईएफएफआई के प्रसारण के विशेषाधिकार क्यों दिए गए, लेकिन तीन विस्तृत प्रश्नावली और टेक्स्ट के जरिये रिमाइंडर भेजने के बावजूद ईरानी ने जवाब नहीं दिया. सूचना एवं प्रसारण सचिव एनके सिन्हा को भी एक प्रश्नावली भेजी गई लेकिन उनकी ओर से भी जवाब नहीं आया.

एसओएल को आईएफएफआई के फिल्मांकन के लिए 2.92 करोड़ रुपये की हद से ज्यादा फीस देने का वादा किया गया था, हालांकि इसके कवरेज की कोई आवश्यकता नहीं थी क्योंकि यह हमेशा से दूरदर्शन की जिम्मेदारी थी.

इंडियन एक्सप्रेस ने दूरदर्शन के एक अनाम अधिकारी के हवाले से बताया, ‘दूरदर्शन के पास इसके लिए क्षमता, उपकरण और कर्मचारी हैं. हम 40 से अधिक कैमरा के साथ गणतंत्र दिवस और अंतरराष्ट्रीय योग दिवस जैसे बड़े कार्यक्रमों को कवर करते हैं. इस कार्यक्रम के लिए तो केवल 15 कैमरों की आवश्यकता थी. इसलिए यह काम करने के लिए बाहरी एजेंसी किराए पर लेने की कोई जरूरत नहीं थी. यही कारण है कि बोर्ड को बताया गया कि ऐसे कार्यक्रम का भुगतान प्रसार भारती के लिए उचित नहीं है. साथ ही ऑडिट के समय इस पर आपत्तियां दर्ज करवाई जा सकती हैं.’

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मंडी हाउस स्थित प्रसार भारती का मुख्यालय (फाइल फोटो)

15 फरवरी की बैठक में जब प्रसार भारती बोर्ड में ईरानी द्वारा नामित अली रिज़वी ने एसओएल का भुगतान करने पर बात की, तब प्रसारक (प्रसार भारती) ने ऊपर बताए गए कारणों का हवाला देते हुए इस मांग को खारिज कर दिया.

हालांकि इस फैसले से ईरानी गुस्से में हैं लेकिन मंत्रालय के कई अधिकारियों ने बताया कि वे दूरदर्शन के स्टैंड के साथ सहमत हैं कि निजी कंपनी को किराए पर लेना गलत है, वह भी इंडस्ट्री की कीमत से ज्यादा पर और फिर यह उम्मीद करना कि दूरदर्शन इस बिल का भुगतान करे.

एक वरिष्ठ अधिकारी जिन्हें एसओएल को भुगतान सुनिश्चित करने का काम सौंपा गया था कहते हैं, ‘निजी खिलाड़ियों को सरकारी खजाने की कीमत पर क्यों लाभ होना चाहिए? दूरदर्शन की कीमत पर मुंबई इंडस्ट्री के लोगों को क्यों फायदा मिलना चाहिए? प्रधानमंत्री मोदी को ईरानी को सूचना एवं प्रसारण मंत्री नियुक्त करने से पहले हितों के टकराव (कॉनफ्लिक्ट आॅफ इंटरेस्ट) की स्पष्ट संभावना को देखना चाहिए था.’

तबादले का ‘हथियार’

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फोटो: पीटीआई

अली रिज़वी अक्टूबर 2017 में प्रसार भारती बोर्ड में तब आये जब स्मृति ईरानी ने एडिशनल सेक्रेटरी जयश्री मुखर्जी को हटाया. सूत्रों का मानना है कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि जयश्री ने बोर्ड में रहते हुए ‘हां में हां मिलाने वाली’ भूमिका में रहने से इनकार कर दिया था.

ईरानी की वजह से हुआ एक तबादला भारती वैद का भी है. भारती इंडियन इनफॉर्मेशन सर्विस (आईआईएस) में एक वरिष्ठ अधिकारी हैं, जो श्रीनगर में प्रेस इनफॉर्मेशन ब्यूरो (पीआईबी) की एडिशनल डायरेक्टर जनरल का पद संभाल रही थीं.

पिछले साल 24 नवम्बर को ईरानी से हुए विवाद के बाद उन्हें इस्तीफा देने को मजबूर किया गया. वैसे भारती की नौकरी के दो साल बाकी थे, लेकिन उन्होंने नौकरी छोड़ दी. इस रिपोर्ट के लिए उन्होंने कोई टिप्पणी देने से मना कर दिया.

इस समय देश के सभी आईआईएस अधिकारी ईरानी के खिलाफ हैं और इस तरह के तबादलों को लेकर प्रधानमंत्री मोदी को एक मेमोरेंडम भेज चुके हैं. इसमें लिखा गया है कि किस तरह ईरानी के इस तरह तबादलों के आदेश से आईआईएस कैडर के एक चौथाई अधिकारी प्रभावित हो रहे हैं-  बीते दो महीनों में ईरानी द्वारा ग्रुप ‘ए’ के 500 से भी कम अधिकारियों में से 140 के तबादले के आदेश जारी किए गए हैं.

मंत्रालय के सूत्रों की मानें तो ‘तबादले’ ईरानी का पसंदीदा हथियार हैं. जब भी वे किसी अधिकारी से नाखुश होती हैं, तबादले का आदेश आ जाता है. एक अन्य अधिकारी, जो जल्द ही लगातार अपमान के चलते इस्तीफा देने की सोच रहे हैं, के अनुसार, वे ‘ऐलिस इन वंडरलैंड’ की रानी की तरह हैं- हमेशा ‘सिर कटवा दो’ जैसी स्थिति रहती है. मैंने अपनी 25 साल की नौकरी में उन जैसी सनकी और घमंडी मंत्री के साथ काम नहीं किया.’

ईरानी ने 28 फरवरी को आईआईएस ऑफिसर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिंद्य सेनगुप्ता के तत्काल प्रभाव से तबादले का आदेश दिया, क्योंकि उन्होंने इन ‘बेवकूफी भरे तबादलों’ के बारे में पीएमओ में शिकायत की थी. अनिंद्य दिल्ली में दूरदर्शन न्यूज़ के डायरेक्टर के बतौर काम कर रहे थे, लेकिन ईरानी के खिलाफ बोलने की सजा के तौर पर उन्हें मंत्रालय के प्रकाशन विभाग में भेज दिया गया है.

प्रसार भारती के सूत्र बताते हैं कि जुलाई 2017 में पद संभालने के बाद से ही ईरानी ‘सुपर सेंसर’ की तरह व्यवहार कर रही हैं, जैसे दूरदर्शन को इसकी कवरेज के लिए फटकारना और यह कहकर इसकी आलोचना करना कि यह भारत सरकार की सफलता से जुड़ी स्टोरी नहीं दिखाता.