फैसला कथा-गोरखपुर में गैंगवार: इंजीनियर की हत्या राज़ बन गयी

विशेष न्यायालय कोर्ट संख्या- 2 के न्यायमूर्ति सीताराम वर्मा न्याय की कुर्सी पर विराजमान हुए. कुर्सी पर विराजमान होते ही अदालत कक्ष में चारों ओर गहरा सन्नाटा पसर गया कि सूई के गिरने की आवाज स्पष्ट सुनी जा सकती थी. सामने  कटघरे में सहायक इंजीनियर मनोज कुमार सिंह हत्याकांड का मुख्य अभियुक्त सहायक इंजीनियर अरूण कुमार चौधरी, माफिया सरगना अजीत शाही, गुड्डू यादव और संजय यादव खड़े थे. इसी मामलें में इन अभियुक्तों के अलावे 3 और अभियुक्त पंकज शाही, आशुतोष उर्फ दीपक सिंह और पंकज लोचन मिश्रा को सजा सुनाया था.

gkp 2      विडंबना तो देखिए, सभी अभियुक्त दो अलग-अलग गुटों से जुड़े थे और दोनों ही एक दूसरे के खून के प्यासे थे. एक गुट के सरगना खुद अजीत शाही थे जबकि दूसरे गुट के सरगना डॉन विनोद उपाध्याय.अभियुक्तों के दो अलग-अलग टुकड़ियों के होने के बावजूद भी एक ही हत्याकांड के अभियुक्त बनाये गये थे. दोनों गुटों के बदमाशों में गैंगवार होने की डर से उन्हें एक साथ कटघरे में खड़ा नहीं किया गया था. बाद में तीनों अभियुक्तों पंकज शाही, आशुतोष उर्फ दीपक और पंकज लोचन मिश्रा को अदालत की कटघरें में खड़ा किया, ताकि इनके बीच कोई अप्रिय घटना घटे न. पुलिस इंटेलीजेंट विभाग को पहले से सूचना मिल चुकी थी  फैसले के दिन पेशी पर आये बदमाशों के बीच गैंगवार छिड़ सकती है, इस सूचना को गंभीरता से लेते  आईजी मोहित अग्रवाल ने शान्ति एवं कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए एहेतियात के तौर पर दीवानी अदालत के चप्पे चप्पे पर पुलिस का कड़ा पहरा बिछा दिया था ताकि परिंदा पर न मार सके.

      करीब 11 बजे दिन में अदालत की कार्यवाही षुरू हुई. अभियोजन पक्ष के अधिवक्ता महेंद्र प्रसाद पाण्डेय ने न्यायमूर्ति की सिम्त (ओर) मुखातिब होकर दलील दी, ‘‘ माई लार्ड, अभियुक्त अरूण कुमार चौधरी, अजीत शाही, अजय कुमार उर्फ गुड्डू यादव, संजय यादव, आशुतोष उर्फ दीपक सिंह व पंकच लोचन मिश्रा के विरूद्ध पुलिस थाना कैंट गोरखपुर में विविध धाराओं 147,148,149,302,120बी भादंसं व धारा- 3(1) गिरोह बंद निवारण अधिनियम दर्ज किया है और उपर्युक्त अभियुक्तों के खिलाफ अलग-अलग आरोप  पत्र न्यायालय में विचारण के लिए प्रेषित  किया गया है. चूंकि, उपरोक्त सत्र परीक्षण एक ही साक्ष्य व सबूत से निस्तारित किया जाना है, अतः सुविधा की दृश्टि से वाद और सत्र वादों का निस्तारण एक साथ किया जाना न्यायोचित है.’’

      फिर अधिवक्ता महेंद्र  प्रसाद पाण्डेय ने घटना का संक्षिप्त कथानक अदालत के सामने प्रस्तुत की. न्यायाधीश सीताराम वर्मा पूरी बहस gkpajeet sahiसुनी. सरकारी अधिवक्ता (फौजदारी) पटेल तमाम गवाहों के पक्षद्रोह हो जाने से दोष सिद्ध करने में असफल रहे. अंत में दोनों पक्षों के विद्वान अधिवक्ताओं के दलीलों को सुनने के बाद न्यायमूर्ति सीताराम वर्मा ने अपना निर्णय सुनाया, ‘‘विवेचक द्वारा अभियुक्तगण को जो बयान जेल में रिकार्ड किये जाने का कथन किया है, उक्त बयान के आधार पर अभियुक्तगण से बरामदगी दिखायी गयी है, लेकिन अभियुक्तों का उक्त बयान जेल में रिकार्ड किया गया हो, ऐसा कोई साक्ष्य पत्रावली पर नहीं है, बल्कि इसके विपरित यह साक्ष्य है कि सम्पूर्ण केस डायरी उप निरीक्षक सुभाष चंद्र सिंह कभी भी उपरोक्त मामले में विवेचक नहीं रहे हैं. ऐसी परिस्थिति में अभियुक्तों के कब्जे एवं निशानदेही पर जो बरामदगी दिखायी गयी है, वह युक्तियुक्त संदेह से परे साबित नहीं है. अतः अभियुक्त अरूण कुमार चौधरी, अजीत शाही, पंकज शाही , अजय कुमार उर्फ गुड्डू यादव, आषुतोश उर्फ दीपकसिंह वह पंकज लोचन मिश्रा को धारा 147,148,149,302,120बी भादंसं एवं धारा 3/25/27 आयुद्ध अधिनियम तथा धारा 3(1) उत्तर प्रदेश  गिरोह बंद अधिनियम के आरोपों से दोपमुक्त किया जाता है. अभियुक्तगण जमानत पर हैं, उनके व्यक्तिगत बंध पत्र व प्रतिभू पत्र निरस्त किये जाते हैं तथा प्रतिभूओं को उनके दायित्व से उन्मोचित किया जाता है.द कोर्ट एडजिस्टेड.’’ कहकर न्यायमूर्ति न्याय की कुर्सी से उठे और अदालत कक्ष से बाहर चले गये.

    gkp manoj  अदालत की फैसला सुनते ही अभियुक्तों के चेहरे खुशी के मारे खिल उठे. वहीं दूसरी ओर मृतक मनोज कुमार सिंह के छोटे भाई और मुकदमा के वादी अजय कुमार सिंह और उनकी पत्नी श्वेता सिंह की आंखो से आंसू छलक उठे क्योंकि उनके पति के सातों हत्यारों को अदालत ने बाइज्जत बरी कर दिया था. क्यों अदालत ने इंजीनियर के हत्यारों को दोषमुक्त किया था? शायद ये अपने आप में उत्तर प्रदेश  की पहली अनोखी कहानी बन जाये. इस कहानी के पर्दे के पीछे की कहानी को पुलिस ने जिस नायाब तरीके की हैरतअंगेज कहानी लिखी थी, अदालत भी चौंके बिना नहीं रह पाया है इसीलिए यह सनसनीखेज कहानी उत्तर प्रदेश  पुलिस के द्वारा लिखी सिर्फ एक अनोखी कहानी बन कर रह गयी. इंजीनियर मनोज कुमार सिंह की हत्या किसने की? हत्यारे कौन थे? हत्या करके वे कहां गुम हो गए? उन्हें जमीन निगल गई या आसमान खा गया? पुलिस हत्यारों का पता नहीं लगा पायी है. पुलिस हत्यारे को पता लगाना तो दूर की बात, हत्या की असल मोटिवतक पता लगाने में विफल रही है.

      पते की बात तो ये है पुलिस मुल्जिमों से उनके बयान लिये बिना ही मनगढंत तरीके से उनके बयान अपने शब्दों में अलंकृत करके अदालत के सामने पेश  कर दी, जिसका सीधा लाभ अभियुक्तों को हुआ. पुलिस की अजब गजब करतूतों की ऐसी रोमांचित कर देने वाली कहानी न तो आप ने अब तक सुना होगा और देखा होगा. आइये पढ़ते हैं रोम – रोम रोमांचित कर देने वाली यह अनोखी कहानी-

  38 वर्षीय  मनोज कुमार सिंह मूलतः उत्तर प्रदेश के जिला आजमगढ़ के थाना कंधरापुर सदर के अंतर्गत आने वाले गांव देवखरी के निवासी थे. उनके पिता का नाम सुरेंद्रनाथ सिंह था. सुरेंद्र नाथ सिंह पुराने रईस थे. कंधरापुर इलाके के बच्चा – बच्चा उनको जानता और पहचानता था. उसी इलाके में उनका अपना साइकिल का बड़ा एजेंसी था. दुकान खुद सुरेंद्र नाथ ही देखा करते थे. उनका दूसरा बेटा अजय कुमार सिंह था. वह मनोज से छोटा था और मां-बाप के साथ रह कर वकालत करता था. सन 2000 में सिंचाई विभाग में मनोज कुमार की नौकरी लगी. gkp laal bahdurनौकरी की वजह से वह गोरखपुर के थाना कैंट के अंतर्गत पड़ने वाली न्यू गंडक कालोनी स्थित मकान नंबर ए-6 में पत्नी श्वेता सिंह और तीनो बच्चों प्रिया, आदित्य ओर शोर्य के साथ रहते थे. मनोज कुमार सिंह उत्तर प्रदेश के सिंचाई विभाग में सहायक  अभियंता थे. जबकि उन के परिजन गांव में रहते थे. उनका जब भी मन होता था, वे सप्ताह, 2 सप्ताह के लिए मनोज के पास आ जाते थे.

      मनोज कुमार सिंह भाई बहन में सबसे बड़े थे. शायद इसीलिए अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए वह अत्यंत मृदुभाषी  और सरल स्वभाव के थे. मनोज कुमार सिंह के व्यवहार से पूरा गांव समाज हीं, यार दोस्त और कर्मचारी तक खुश  रहते थे. नहीं खुश रहते थे तो वे, मनोज जिन की चापलूसी या जी हुजूरी नहीं करते थे. ऐसे लोगों के सामने मनोज कुमार कभी झाकते थी नहीं थे. जब वह तन कर खड़े हो जाते थे, तो उन के सामने किसी की दाल नहीं गलती थे.

      सहायक अभियंता मनोज कुमार सिंह डेनेज खंड- 2, संतकबीर नगर में कार्यरत थे. 27 जून, 2008 को संतकबीर नगर से बतादला होने के बाद वह बाढ़खंड कुषीनगर आ गए थे. मनोज से पहले यहां की जिम्मेदारी सहायक अभियंता अरूण कुमार चौधरी संभाल रहे थे. मनोज कुमार सिंह के यहां आने के बाद उन का कुशीनगर में ही सिंचाई विभाग खंड-2 तबादला कर दिया गया था. लेकिन अरूण कुमार चौधरी बाढ़खंड को छोड़कर जाना नहीं चाहते थे. इसकी मुख्य वहज यह थी कि कुशीनगर का छितौनी-बगहा खंड बाढ़ग्रस्त इलाका है. उत्तर प्रदेश  और बिहार को जोड़ने वाला सब से लंबा पुल यह है. इसी पुल से त्रिवेणी नहीं गुजरती है. इस नदी में नेपाल से छोड़े जाने वाले पानी की वजह से इस क्षेत्र में लगभग हर साल बाढ़ आती है. इस बाढ़ से निपटने के लिए सिंचाई विभाग का बाढ़खंड विभाग पुल के किनारे बनाए गए बांध पर बोल्डर और पत्थर बिछाता है. बोल्डर और पत्थर बिछाने के लिए अभियंता अपने चहेते ठेकेदारों को ठेका देते है. फिर उन ठेकेदारों से ये कमीश न के रूप मोटी रकम वसूल करते है. इस दृष्टीकोण से देखा जाए तो छितौनी-बगहा बाढ़खंड कुषीनगर का मलाईदार विभाग है. हर साल बाढ़ के पानी से बोल्डर और पत्थर के बह जाने की बात से विभाग के कर्मचारी अपने अपने अभिलेखों में दर्षा कर करोड़ों का वारा न्यारा करते हैं. जबकि हकीकत में बोल्डर और पत्थर ही नहीं बहते हैं. भ्रष्टाचार और बेईमानी की नदियां बहती है  जिस में भ्रष्ट एवं बेइमान अधिकारी खूब डुबकी लगाते हैं और उतनी ही मलाई काटते हैं.

 gkp shilendr     मनोज कुमार सिंह संतकबीर नंगर से स्थानांतरित हो कर बाढ़खंड (प्रथम) खड्डा कुशीनगर पहुंचे, तो उस समय अरुण कुमार चौधरी 2 दिनों के अवकाश  पर दरभंगा स्थित अपने गांव मनौरा गए थे. क्योकि उन की मां की तबीयत ज्यादा खराब थी. जबकि सहायक अभियंता मनोज कुमार सिंह को चार्ज दिलाने के लिए विभाग के अब्दुल्ला पर ऊपर से दबाव डाला जा रहा था. तब सहायक अभियंता अरूण कुमार चौधरी की अनुपस्थिति में अभियंता मनोज कुमार सिंह को उन का चार्ज एज्यूम करा दिया गया था. जबकि अरूण कुमार चौधरी ने घर से 15 दिनों की छुट्टी के लिए एक प्रार्थना विभाग के पास भेज दिया था. प्रार्थना पत्र में लिखा कि उन की मां का देहांत हो चुका है, वह अपने मां-बाप के इकलौते संतान है. इसलिए वह सारे सामाजिक रीतिरिवाज निपटाने के बाद लौटेंगे, तब चार्ज देंगे.

      विभाग के बड़े से लेकर छोटे अधिकारियों तक ने अरूण कुमार चौधरी से चार्ज लेने के लिए एड़ी से चोटी तक का जोर लगा दिया. मगर वे सहायक अभियंता अरूण कुमार चौधरी का कुछ नहीं कर सके. मजबूर होकर अधीक्षण अभियंता पी.सी.मिश्र को जिलाधिकारी कुशीनगर से इस मामले में हस्तक्षेप करने का आग्रह करना पड़ा. तब जिलाधिकारी कुशीनगर ने इस संबंध में पी.के. मोहंती (मंडलायुक्त गोरखपुर) से निवेदन किया, तो उन के आदेश  पर सहायक अभियंता अरूण चौधरी को उन के गांव दरभंगा से पकड़ कर गेारखपुर के थाना कैंट लाया गया और प्रशासन के दबाव में जबरन उन से चार्ज लेकर सहायक अभियंता मनोज कुमार सिंह को सौंपा गया.gkp swroop

      अभियंता अरूण कुमार चौधरी ने इस प्रकरण को अपने मान सम्मान से जोड़ लिया और मनोज कुमार सिंह को अपना पक्का दुश्मन मान लिया, क्योंकि मनोज कुमार सिंह की वजह से उन्हें ये जलालत झोलनी पड़ी थी. दूसरी बात यह थी कि मनोज कुमार सिंह की ही वजह से 4 करोड़ रुपये से मिलने वाले मोटे कमीशन का भी नुकसान हुआ था. यह बात अरुण कुमार चौधरी के लिए बर्दाशत के बाहर थी. इस के लिए उन्होंने मनोज कुमार को सबक सिखाने का पक्का इरादा बना लिया था, लेकिन अकेले कुछ कर पाना उन के वश  की बात नहीं थी.

      2 अगस्त, 2009 को शाम साढ़े सात बजे के करीब मोहद्दीपुर किसी काम से अपने अधिकारी भानू प्रताप सिंह से मिलने उनके आवास चालक विजय के साथ आये थे. कुछ देर बातचीत करने के बाद वे नीचे उतरे. सड़क के दूसरी ओर हरि मेडिकल स्टोर से कुछ दवाइयां खरीदे और अपनी चारपहिया वाहन के पास जैसे पहुंचे, तभी विपरीत दिषा से एक मोटर साइकिल 2 युवक सवार नजदीक पहुंचकर गोली मार हत्या कर दिये और फरार हो गये. मृतक मनोज कुमार के छोटे भाई अजय कुमार सिंह ने विभाग के सहायक अभियंता अरुण कुमार चौधरी नामजद और दो अज्ञात हत्यारों के खिलाफ थाना कैंट को लिखित तहरीर दिया. कैंट पुलिस ने अपराध संख्या- 1722/2009 पर भादंसं की धारा 302,120बी दर्ज कर ली. इंजीनियर मनोज कुमार सिंह की हत्या सूचना पाकर एसएसपी/डीआईजी आनंदस्वरुप, पुलिस अधीक्षक बनवारीलाल, कैंट क्षेत्राधिकारी विश्वजीत श्रीवास्तव एवं समर बहादुर घटना स्थल पहुंच कर मौका मुआयना किये. मुकदमा दर्ज होने के बाद उसी रात पुलिस ने सहायक अभियंता अरुण कुमार सिंह को उनके सिंघड़िया स्थित सिंचाई विभाग के सरकारी आवास से पुलिस ने गिरफ्तार कर ली और कैंट थाना ले आयी.

  gkp pankj    मनोज कुमार सिंह हत्याकांड की जांच में पुलिस हत्याकांड के हर पहलू पर गौर कर रही थी. जिस दुस्साहसिक तरीके से हत्यारों ने मनोज कुमार सिंह को गोली मारी थी, उससे यह बात साफ थी कि हत्यारे पेषवर कातिल थे. और चलती मोटरसाइकिल पर पीछे बैठा बदमाश  ने गोली मारी थी, वह भी कुछ फुट की दूरी से. गोली मारने के बाद हवाई फायर करते हुए हत्यारे फरार हो गए थे.थाना प्रभारी विजय सिंह ने पुलिस अधीक्षक के निर्देश  पर अभियंता मनोज कुमार की निजी जिंदगी और विभागीय टसल को लेकर अपनी विवेचना को आगे बढ़ाया. सहायक अभियंता अरूण कुमार चौधरी ने अपने और मनोज कुमार के बीच टसल को जरूर स्वीकर लिया था, लेकिन पुलिस उन की इस दुष्मनी को हत्या से नहीं जोड़ पाई थी. उस के बाद पुलिस मुखबिरों की मदद से उस आदमी को तलाश  करने लगी, जिस ने सहायक अभियंता मनोज कुमार सिंह की सटीक मुखबिरी की थी. यानी की वहां होने की सूचना दी होगी, जो उसका बहुत करीबी रहा होगा. क्योंकि घटना से कुछ समय पूर्व ही मनोज कुमार सिंह मोहद्दीपुर इंजीनियर बी.पी. सिंह उर्फ भानु प्रताप सिंह के यहां गए थे. जब वह वहां गए थे, उस समय वहां जूनियर इंजीनियर सुभाषचंद्र सिंह, ठेकेदार पंकज शाही, इंजीनियर ए.के. सिंह थे. बाकी सब लोग तो उन के साथ ही निकले, केवल पंकज शाही ही उन से मिल कर पहले ही चला गया था.

      पुलिस का अनुमान था कि इन्हीं लोगों में से किसी ने मनोज कुमार सिंह की मुखबिरी की होगी. पुलिस की सबसे ज्यादा नजर मनोज कुमार सिंह के करीबी ठेकेदार पंकज षाही पर गड़ी थी, क्योंकि वह मनोज की हत्या के बाद उन के परिजनों से आवष्यता से अधिक जुड़ गया था. पुलिस को पंकज का यह रवैया कुछ अजीब लग रहा था. इस बात को विवेचक ने अपने तक ही सीमित रखा और और ठेकेदार पंकज शाही के मोबाइल फोन का काल डिटेल निकलवा लिया. विवेचक विजय सिंह ने उस काल डिटेल का किया, पता चला कि 1 अगस्त, 2009 की सुबह 9 बजकर 12 मिनट 28 सेकंड पर पंकज शाही ने मोबाइल नंबर 983872….पर पहली बार 52 सेकंड बात की थी. उसके बाद उसी नंबर पर उसने 2 अगस्त की शाम  7 बजकर 33 मिनट 38 सेकंड से लेकर 8 बजकर 22 मिनट 37 सेकंड के बीच कुल 6 बार फोन किया था.

      आखिरी बार उसने कुल 219 सेकंड बात की थी. प्रभारी निरीक्षक विजय सिंह ने जब उस मोबाइल नंबर के बारे में पता किया, तो पता चला कि वह फोन शिवपुर शाहबाजगंज के रहने वाले शशिभूषण सिंह का है. पुलिस ने उस फोन को सर्विसलांस पर लगवा दिया और मुखबिरों से उसके बारे में पता कराया. इसी के बाद 4 अगस्त को मुखबिरों की सूचना एवं सर्विसलांस से मिला जानकारी के आधार पर थाना प्रभारी विजय सिंह ने ठेकेदार पंकज षाही को हिरासत में ले लिया.

      पुलिस के चक्रव्यूह में आते ही पंकज शाही का चेहरा उतर गया था. फिर 2 दिनों तक चली लंबी पूछताछ में अंततः ठेकेदार पंकज शाही ने पुलिस के सामने घुटने टेक दिए और फफक -फफक कर रोते हुए कहने लगा, ‘‘जी मैंने ही अपने देवता समान भाई की मुखबिरी की थी. मुझे मुखबिरी करने के लिए बाहुबली अजीत शाही और उनके खास आदमी ज्येष्ठ ब्लाक प्रमुख लाल बहादुर यादव ने मजबूर किया था. ऐसा न करने पर उन्होंने मुझे जान से मारने की धमकी दी थी. इंजीनियर साहब की हत्या के लिए सहायक अभियंता अरुण कुमार चौधरी ने अजीत शाही को बड़ी रकम दी थी.’’

      पंकज के मुह से यह सच्चाई जान कर पुलिस अधिकारी भौचक रह गए थे. इस तरह सहायक अभियंता मनोज कुमार सिंह के हत्या के 5 दिनों बाद ही पुलिस ने इस हत्याकांड का परदाफास  कर दिया था. फिर 7 अगस्त, 2009 को एसएसपी/डीआईजी आनंदस्वरूप ने पुलिस लाइंस स्थित मनोरंजन कक्ष में पत्रकारवार्ता के दौरान अभियुक्त अरूण कुमार चौधरी और ठेकेदार पंकज षाही को पत्रकारों के सामने पेष करते हुए बयाता कि मनोज कुमार सिंह की हत्या के असल सूत्रधार यही दोनों हैं. अरुण कुमार चौधरी ने हत्यारांे को सुपारी दी थी और पंकज षाही ने मुखबिरी की थी. जबकि घटना को अंजाम दिया था अजीत षाही-लाल बहादुर यादव गैंग ने.

      इसके बाद ठेकेदार पंकज शाही और अभियंता अरुण कुमार चौधरी के बयानों और पुलिस विवेचना के आधार पर इस मामले में भादंसं की धारा 147,148,149 और उ0प्र0 गिरोह बंद अधिनियम 3(1) लगा दिया गया था. जांच पूरी होने तक मुलजिमों की संख्या 3 से 9 तक हो गई थी. उन सब अभियुक्तों के नाम अजीत शाही, लाल बहादुर यादव, अजय यादव उर्फ गुड्डू यादव, संजय यादव, आषुतोश उर्फ दीपक सिंह, पंकज लोचन मिश्र और शशिभूषण सिंह थे. पुलिस जांच में सहायक अभियंता मनोज कुमार सिंह की हत्या की वजह ठेका माफिया, भ्रश्टाचार, विभागीय टसल और करोड़ों का फर्जी भुगतान था. ये खेल कैसे खेला जाता है, कुछ ऐसे सामने आया–

      लगभग 36 वर्शीय पंकज शाही मूलरूप से गोरखपुर जनपद के थाना गगहा के गांव राउतपार का रहने वाला है. उस के पिता का राजेंद्र शाही है. जबकि तब वह कूड़ाघाट स्थित आवासविकास कालोनी के मकान नंबर- 410 में परिवार सहित रहता था और सहायक इंजीनियर मनोज कुमार सिंह के साथ मिल कर सिंचाई विभाग और बाढ़ खंड विभाग में ठेकेदारी करता था. कहा जाता है कि वषों पूर्व गांव में पंकज शाही के पास सिर छिपाने के लिए भी कुछ नहीं था. फटे हाल पांव में टूटी हवाई चप्पल पहने वह गांव की गलियों मारा मारा फिरता था. पंकज जवान और सूबसूरत था. साथ ही दिमाग से भी तेज था. नहीं था, तो उस के पास करने के लिए कोई काम.

मनोज कुमार सिंह के गांव देवखरी में पंकज शाही के गांव की एक लड़की ब्याही थी. वह लड़की रिश्ते में

पंकज की बहन लगती थी. इस तरह पंकज जब भी देवखरी आता, तो मनोज कुमार सिंह से अक्सर उस की मुलाकात हो जाती थी. चूंकि दोनों हम उम्र थे और गांव में रिश्ते से साले बहनोई लगते थे, इसलिए  दोनों में खूब निभने लगी थी. बातोंबातों में जब मनोज का पता चला कि पंकज के पास करने के लिए कोई काम नहीं है, तो उन्होंने उस से ठेकेदारी करने के लिए कहा. पंकज शाही सहर्ष  तैयार हो गया, तो मनोज सिंह ने उसे अपने (सिंचाई विभाग) में काम दिलवा दिया.

      बस इसी के बाद पंकज शाही का भाग्य चमक उठा और वह लाखों में खेलने लगा. इस के बाद तो मनोज कुमार उस के लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी हो गए थे. बदले में पंकज भी मनोज को खुश  रखता था. धीरेधीरे नजदीकियां बढ़ीं और दोनों का एक दूसरे के घर आंगन तक आना जाना हो गया.

      अब पंकज शाही बे-रोकटोक मनोज के घर आने जाने लगा था. आने जाने से मनोज के साथ ही उसकी पत्नी श्वेता सिंह से काफी घुल मिल गया था. उनके बीच मधुर संबंध बन गए थे. श्वेता सिंह को जब भी कोई काम होता, तो वह फोन करके उसे आवास बुला लेती थी. घंटों दोनों साथ रहते थे. मनोज सिंह को पता था कि मेरे अनुपस्थिति में पंकज शाही मेरे घर पर आता जाता था. मुंह बोले भाई बहन का मधुर प्रेम कुछ ज्यादा ही बढ़ गया था. लेकिन किसी कारण बस वह प्रतिकार कर नहीं सकता था.

      संतकबीर नगर से स्थानांतरित होकर जब मनोज कुमार सिंह छितौनी-बगहा बाढ़खंड (प्रथम) खड्डा कुशीनगर आए, तो यहां का ठेका उन्होंने पंकज को दिलवा दिया था. पते की बात ये थी कि मनोज कुमार ने पंकज शाही के नाम से ठेकेदारी के लिए जिस फर्म का पंजीकरण कराया था, वह फर्म सिर्फ दिखावे के लिए पंकज षाही का था, हकीकत में उस फर्म के स्वामी खुद मनोज कुमार सिंह थे. ठेके के कार्य को संपादित करने के लिए उसमें लगा संपूर्ण पूंजी खुद इंजीनियर मनोज का था. वह रकम करीब 3-4 करोड़ के करीब बतायी जाती रही. पंकज शाही सिर्फ दिखावे के लिए एक कठपुतली था. पंकज के जरिये सारे पैसे मनोज के पास आता था. उसमें से वह पंकज के हिस्से को ईमानदारी से दे दिया करता था.

यहां बेईमानी और भ्रष्टाचार की गंगा बहती थी. कहा जाता है कि सहायक अभियंता अरुण कुमार चौधरी के सभी ठेके बिहार के ठेका माफियाओं को मिलते थे. ये बात विभाग के अधिकारियों से लगायत चपरासी तक जानते थे. मगर विरोध करने का साहस किसी में नहीं था. सहायक अभियंता अरुण कुमार चौधरी के समय में जिस बड़ी रकम की बात सामने आई थी उसमें से उसके एक-चौथाई रुपए का भुगतान व्यवस्थित करके ठेका माफिया को देना था और कहा जाता है कि वह ठेका माफिया अजीत षाही थे.

करीब 50 वर्शीय अजीत शाही बहुजन समाज पार्टी के नेता थे और पिपरौली ब्लाक के ज्येष्ठ उप ब्लाकप्रमुख कुख्यात अपराधी रहे लालबहादुर यादव के साथ मिल कर ठेकेदारी करत थे. पुलिस रिकार्ड के मुताबिक अजीत शाही बड़ा अपराधी है. उस पर दर्ज मुकदमे काफी संगीन और गंभीर है. वहीं दूसरी ओर बाहुबली लालबहादुर यादव थाना बेलीपार का हिस्ट्रीशीटर था. उस पर भी हत्या, हत्या के हत्या के प्रयास लूट आदि के 20 मुकदमें दर्ज थे. करीब 2 साल पहले माफिया डॉन विनोद उपाध्याय ने पंडित दीन दयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय गोरखपुर के मुख्य द्वार के सामने गोली मरवाकर लालबहादुर यादव की हत्या करवाकर अपना इंतकाम पूरा कर लिया. माफिया डॉन विनोद उपाध्याय लालबहादुर की हत्या के अपराध में जेल की सजा काट रहा है.

बहरहाल, अरुण कुमार चौधरी और मनोज कुमार सिंह के बीच एक-चौथाई भुगतान को लेकर ठन गई. अरुण चौधरी मनोज कुमार सिंह को अजीत षाही-लालबहादुर गैंग से धमकी दिलवाने लगे. मनोज उनके धमकियों से तनिक भी डरे नहीं. इस बात ने अरुण चौधरी सहित ठेका माफियाओं को बेचैन कर दिया था. इसी बीच एक बात यह हुई कि मनोज कुमार के ठेकेदार मित्र पंकज शाही उन के ही किसी मित्र बड़ी रकम उधार ले लिया था. जिसे वह लौटाने का नाम ही नहीं ले रहा था. जबकि मनोज कुमार रुपए लौटाने के लिए उस पर काफी दबाव डाल रहे थे. मनोज के दबाव से पंकज शाही काफी परेशान था, क्योंकि उसके पास इतनी बड़ी रकम नहीं थी. इस बात को लेकर वह परेशान था.

उधर मनोज कुमार सिंह से अरुण कुमार खार खाए बैठे थे. उसने अजीत षाही से कह दिया था कि अब मनोज कुमारा को रास्ते से हटाए बिना काम नहीं बन सकती है. अरुण कुमार चौधरी के आग्रह पर अजीत षाही उनका साथ देने के लिए तैयार हो गया. मनोज कुमार सिंह का सब से करीबी कौन है, इस पर नजर दौड़ाई गयी तो पंकज षाही का चेहरा सामने आ गया. मनोज के बारे में सटीक जानकारी उसी से मिल सकती थी.

आपस में बातचीत करके अजीत षाही उसे अपने खेमे में षामिल करने की योजना बनायी. योजना के अनुसार, अजीत शाही के कहने पर लालबहादुर यादव, अजय यादव, संजय यादव और आषुतोश उर्फ दीपक सिंह सिंचाई विभाग के कार्यालय से पंकज षाही का उसी की गाड़ी में अपहरण कर के अजीत षाही के आवास बेतियाहाता ले गए. वहां पहले से अरुण चौधरी, ठेकेदार अजय सिंह, ठेकेदार वीरेंद्र प्रताप शाही, और पंकजलोचन मिश्रा बैठे थे. तब अजीत शाही ने पंकज शाही से स्पष्ट कहा था कि उसने मनोज कुमार के बारे में सही जानकारी नहीं दी, तो उसे जान से मार दिया जाएगा. अंततः अजीत शाही की धमकियों के डर से पंकज षाही मनोज की मुखबिरी करने के लिए तैयार हो गया. 2 अगस्त, 2009 को उसी की सूचना पर षूटर आषुतोश उर्फ दीपक सिंह, अजय यादव, पंकजलोचन मिश्र और संजय यादव ने मोहद्दीपुर चारफाटक रोड पर सहायक अभियंता भानु प्रताप सिंह के घर के सामने सड़क पर सहायक अभियंता मनोज कुमार सिंह की 9 एमएम पिस्टल से गोली मार हत्या कर दी थी. हत्या के 5 दिनों बाद अभियुक्त शषिभूषण सिंह को छोड़कर बाकी के 8 अभियुक्तों में से अरुण चौधरी, पंकज शाही और लालबहादुर की गिरफ्तारी हुई थी और अजीत शाही, अजय कुमार यादव, संजय यादव, आशुतोष  उर्फ दीपक सिंह, पंकजलोचन मिश्रा ने अदालत में आत्मसमर्पण किया था.

विवेचक और कैंट थानाप्रभारी विजय कुमार सिंह ने सभी अभियुक्तों के खिलाफ आरोप पत्र 29 अगस्त, 2009 को दाखिल किया था. आरोप पत्र में लिखा था उपर्युक्त अभियुक्तों के  विरूद्ध धारा 147,148,149,302,120बी, भादंसं व 3(1) 0 प्र0 गैंगेस्टर एक्ट का आरोप प्रथम दृश्टया प्रमाणित पाकर द्वारा आरोप पत्र चालान न्यायालय किया जाता है. सबूत तलब कर अभियुक्तमय को अधिकतम दंड से दंडित करने की कृपा करें. इस आरोप पत्र में विवेचक विजय कुमार सिंह ने 23 गवाहों के नाम प्रस्तुत किये थे.

मुकदमा के वादी मृतक मनोज कुमार सिंह के भाई अजय कुमार सिंह थे. अजय कुमार ने भाई की हत्या की मूल वजह विभागीय विवाद, ट्रांसफर और पोस्टिंग को लेकर सहायक अभियंता अरुण कुमार चौधरी को लेकर बतायी थी. अपने बयान में अजय ने यह भी कहा था कि भाई ने मरने से पहले ये बातें उसे बताई थी. ट्रांसफर और पोस्टिंग की ये बातें घटना से 20-25 दिनों पहले की थी.

अदालत में मनोज कुमार सिंह हत्याकांड की सुनवायी शुरू हुई. अभियुक्त सहायक अभियंता अरुण कुमार चौधरी ने अपने बचाव में अदातल के सामने ऐसा सबूत और गवाह पेष किया कि पुलिस की विवेचना महज एक कोरी थोथी साबित होकर रह गयी थी. अभियुक्त अरुण कुमार चौधरी की ओर से पेश गवाह सिंचाई विभाग के लिपिक राज बल्लभ यादव थे. उसने अदालत को बताया कि अरुण और मनोज के बीच कभी दुष्मनी थी ही नहीं, वे एक अच्छे दोस्त की तरह रहते थे. 30 जून, 2008 को मास स्थानांतरण हुआ था. स्थानांतरण का आदेश  3 दिनों पूर्व 27 जून, 2008 को प्राप्त हुआ था. मास स्थानांतरण से आषय यह है कि उस तिथि को पूरे प्रदेश  से सैकड़ों अभियंताआंे के स्थानांतरण एक साथ हुई थी. ये स्थानांतरण विभाग द्वारा हुई थी.

अभियुक्त अरुण चौधरी स्थानांतरण होने से 3 दिन पहले यानी 27 जून, 2008 को मां राम सखी देवी की मृत्यु का समाचार पाकर दिन के 11 बजे 2 दिनों के अवकाष का प्रार्थना पत्र देकर अपने गांव मनोरा, दरभंगा चले गये थे. वहां से 15 दिनों के अवकाश   बढ़ाने के लिए विभाग के पास पंजीकृत डाक से प्रार्थना पत्र भेजे. उसी दौरान उन्हें पीलिया बीमारी हो गयी, तो कुछ दिन और गांव पर रुक गये. दो महीने बाद वे गांव से लौटे थे. इसके पूर्व अवकाष के कारण बाढ़ से किसी का नुकसान न हो इसलिए अधिषासी अभियंता अब्दुल्ला के आदेश  पर मनोज कुमार सिंह को कार्यभार ग्रहण कराया गया था. यह कार्यभार अरुण कुमार चौधरी की अनुपस्थिति में अधीक्षण अभियंता के पत्र के माध्यम से एक्जूम कराया गया था. जबकि मृतक मनोज कुमार सिंह के भाई और मुकदमा वादी अजय कुमार सिंह ने स्थानांतरण की बात घटना से 20-25 दिन पहले होने की बात कही थी, तथ्य असत्य पायी गयी.

अभियुक्त अरुण कुमार चौधरी के द्वारा अदालत में पेश किया गया एक एक साक्ष्य और सबूत सत्य पाया गया. विवेचनाधिकारी विजय सिंह ने केस डायरी में उल्लेख किया था कि अभियुक्त माफिया अजीत शाही के आवास बेतियाहाता में मनोज कुमार सिंह की हत्या की योजना बनायी गयी थी, पुलिस की यह विवेचना भी अदालत में असत्य साबित हुई. बचाव पक्ष के अघिवक्ता महेन्द्र  प्रसाद पाण्डेय ने अदालत को बताया कि पुलिस केष डायरी में उल्लेख कि है कि मनोज सिंह की हत्या से पहले अजीत शाही के बेतियाहाता आवास पर बदमाशों को लेकर बैठक की गयी थी. बैठक में अजीत शाही , अरुण कुमार चौधरी, लालबहादुर यादव, पंकज शाही, अजय यादव उर्फ गुड्डू, संजय यादव, आशुतोष उर्फ दीपक सिंह, पंकजलोचन मिश्रा और षषिभूशण सिंह मौजूद थे.

अधिवक्ता महेंद्र प्रसाद पाण्डेय ने तर्क दिया कि ये कतई संभव नहीं है. दो अलग  अलग  गुट के जानी दुश्मन जो देखते ही वे एक दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं, एक छत के नीचे बैठ कर किसी की हत्या की साजिश  रचे. विवेचक जिस पंकज शा ही, आशुतोश उर्फ दीपक सिंह, पंकजलोचन मिश्रा और शशिभूषण सिंह को अजीत शा ही गैंग का होना बताया था, दरअसल, ये अपराधी माफिया डॉन विनोद उपाध्याय गैंग के नामचीन शूटर हैं. अजीत शाही और विनोद उपाध्याय गैंग के बीच में वषों से 36 का आंकड़ा है. महेंद्र प्रसाद पाण्डेय ने अपने तर्क से पुलिस के इस विवेचना को साबित करने में विफल किया.

दरअसल, माफिया अजीत शाही और माफिया डॉन विनोद उपाध्याय के बीच वर्षों  से नंगी तलवारें खिंची हुई हैं. इस रक्तरंजित दुश्मनी के पीछे दिल दहला देने वाला गोरखपुर का पीडब्ल्यूडी कांड सुमार है. पीडब्ल्यूडी के करोड़ों के ठेके को लेकर दोनों गुटों के बीच गोली बारी हुई थी. गोली बारी में अजीत शाही -लालबहादुर यादव गैंग ने डॉन विनोद उपाध्याय गैंग के एक गुर्गे की भेजा उड़ा दिया था. उसके बाद से विनोद उपाध्याय और अजीत शाही ही के बीच अदावत की गहरी खाई खुद गयी थी. इस खूनी दुष्मनी का ही परिणीत रहा कि करीब 2 साल पहले डॉन विनोद उपाध्याय अजीत शाही ही के दाहिना हाथ रहा लालबहादुर यादव की पंडित दीनदयाल उपाध्याय विष्वविद्यायल गोरखपुर के मुख्य गेट के सामने गोलियो  से छलनी करके मौत के घाट उतार कर अपना इंतकाम पूरा किया. लालबहादुर यादव हत्याकांड में इन दिनों विनोद उपाध्याय जेल में बंद है.

यही नहीं अधिवक्ता महेंद्र प्रसाद पाण्डेय ने तब विवेचक विजय कुमार सिंह की बखिया उधेड़ कर रख दी थी, जब पुख्ता सबूतों के आधार पर ये साबित करने में सफल रहे कि विवेचक विजय कुमार सिंह के द्वारा मनोज कुमार सिंह हत्याकांड की केष डायरी उनकी हस्तलिपि में लिखि ही नहीं गयी थी. यह केस डायरी कैंट थाने के एसआई सुभाषचंद्र सिंह के हस्तलिपि में लिखि गयी थी. अदालत के सामने एसआई सुभाषचंद्र सिंह ने भी यह कबूल किया था कि केस डायरी पर लिखि गयी हस्तलिपि उनकी ही थी.

एसआई सुभाषचंद्र सिंह की ये बयान इंस्पेक्टर विजय कुमार सिंह की पूरी विवेचना पर प्रश्न  चिह्न खड़ा कर दिया था. इसके पीछे अधिवक्ता महेंद्र पाण्डेय ने अदालत को तर्क दिया कि एसआई सुभाषचंद्र सिंह दोनों पैरों से चलने में असमर्थ हैं. वे कहीं चल फिर सकने में असमर्थ थें. उनसे पूरी केस डायरी थाने पर लिखवायी गयी. जब उनसे ये बयान लिया गया कि क्या आप विवेचना लिखने के लिए अधिकृत व्यक्ति थे? तो उन्होंने जबाव दिया नहीं. फिर जब उनसे यह बयान लिया गया कि इंस्पेक्टर विजय सिंह के साथ जेल में बंद अभियुक्तों के बयान लेने आप जेल गये थे? तो उनका उत्तर था नहीं.

‘‘जब विवेचनाधिकारी के साथ जेल आप अभियुक्तों के बयान लेने गये ही नहीं, तो उन अभियुक्तों के बयान आपने अपने हस्तलिपि कैसे लिख दिया.’’ अधिवक्ता महेंद्र ने फिर से सवाल किया था.

‘‘हां, ये सच है मैं विवेचनाधिकारी के साथ जेल अभियुक्तों के बयान लेने नहीं गया था. लेकिन ये भी बयान नहीं कर सकता कि विवेचनाधिकारी अभियुक्तों से जेल में बयान लेने गये थे या नहीं, इस बात की ज्ञान मुझे नहीं है. लेकिन मैंने जो फर्द पर लिखा, विवेचनाधिकारी के कहने पर लिखा था. ये कहना सरासर गलत है कि मैंने थाने में बैठे बैठे ही पूरी विवेचना लिखी है. विवेचनाधिकारी विजय सिंह तो अब इस दुनिया में रहे नहीं, इसका सही जबाव वे ही दे सकते थे.’’

‘‘अभियुक्त अरुण कुमार चौधरी के बयान जीडी या सीडी में दर्ज क्यों नहीं है?’’

‘‘मुझे नहीं पता..’’

‘‘फिर ये बतायें कि मृतका की पत्नी श्वेता सिंह से पूछताछ आपके सामने किया गया था. उसका उल्लेख जीडी या सीडी में क्यों  नहीं है?’’

‘‘उसका उल्लेख केस   डायरी में क्यों नहीं किया गया, मैं नहीं बता सकता. यह कहना गलत है कि सही तथ्य कुछ और था उसको छिपाने के लिए जानबूझ कर उसका उल्लेख केष डायरी में नहीं किया गया.’’

      तमाम सवालात अधिवक्ता महेंद्र पाण्डेय ने द्वितीय विवेचक रहे एसआई सुभाषचंद्र सिंह से किये. सुभाषचंद्र सिंह किसी भी सवाल के माकूल जबाव देने में असफल रहे. यही नहीं विवेनाधिकारी की खिल्ली उस समय और उड़ी थी जब फायरसुदा असलहें की लैबोरेटरी में परीक्षण की गयी थी. परीक्षणकर्ता ने अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया कि जिस असलहे से कारतूस का फायर होना बताया जाता है, वह कारतूस इस असलहे का हो ही नहीं सकता है. क्योंकि फायरसुदा खोखा असलहें में फिट हो ही नहीं रहा था. पुलिस को यहां भी अपनी मुंह को खानी पड़ी.

      अदालत में परीक्षण के दौरान मनोज कुमार सिंह हत्याकांड एक मजाक बन कर रह गयी थी. मुकदमें के सारे गवाह पक्षद्रोह बन गये थे. जब बारी वादी मुकदमें की आयी, तो वह भी बयान देने अदालत नहीं आया. उसे अपना बयान दर्ज के लिए अदालत की ओर से सम्मन भेजवाना पड़ा था. इस पर भी वह अदालत में हाजिर नहीं हुआ. उसके बाद उसे अदालत में हाजिर करने के लिए वारंट, नॉन वारंट, एनबीडब्ल्यू सम्मन जारी किया गया, फिर भी वह कोर्ट में अपना बयान दर्ज कराने नहीं आया. वह बयान दर्ज कराने से भागता रहा.

      तब विवश होकर अदालत ने आईजी गोरखपुर को पत्र लिखकर वादी मुकदमा अजय कुमार सिंह को किसी भी सूरत में अदालत में हाजिर कराने की आदेष पारित किया तब वह अपना बयान कोर्ट में दर्ज कराया. अजय कुमार सिंह ने बयान दिया, ‘‘मर्चरी में अपने भाई मनोज कुमार सिंह को देखा था. उन्हे  चोट कई तरफ पसली गोली की थी. पंचनामा मेरे सामने हुआ था.’’ उसने आगे बयान दिया,‘‘दरोगा जी ने इस संबंध में मेरा कोई बयान नहीं लिया था. मेरे भाई ने एके. चौधरी के अलावा और किसी का नाम नहीं बताया.’’

      अजय कुमार सिंह ने अपना सनसनीखेज बयान देकर अदालत को चौंका दिया था. वादी के लिखित तहरीर पर मुकदमा दर्ज किया गया था. करीब 7 वषों तक गवाह और अभियुक्तों के बयान होते रहे. अदालत का कीमती समय जाया हुआ था. सवाल यह उठता है कि जब विवेचनाधिकारी ने उससे उसके बयान ही नहीं लिये थे, तो उसने इसकी षिकायत उच्चाधिकारियों से क्यों नहीं की? जबकि उसका ये अधिकार बनता था. आखिर उसकी ऐसी कौन सी मजबूरी थी, जो उसने ऐसा नहीं किया. सवाल यहीं खत्म नहीं होता है. इस घटना की अहम गवाह मृतक मनोज कुमार सिंह की पत्नी ष्वेता सिंह हो सकती थी. पत्नी पति की हमराज होती है तो फिर पुलिस ने ष्वेता सिंह से पूछताछ करने के बाद उसका बयान जरनल डायरी या केष डायरी में क्यों उल्लेख नहीं किया? श्वेता सिंह चाहती तो पति के न्याय के लिए सत्र न्यायालय से मुकदमा हार जाने के बाद उच्च न्यायालय के दरवाजे खटखटा सकती थी? पर उन्होंने भी ऐसा नहीं किया, क्यों? आखिर उसकी ऐसी कौन सी मजबूरी थी. ये तो वही जाने. लेकिन अजय कुमार सिंह और मृतक मनोज कुमार सिंह की पत्नी ष्वेता सिंह की खामोषी बहुत कुछ कहती है. असल कहानी इसी खामोषी के बीच दफन है. जो एक राज़ बन कर रह गयी है.

बहरहाल, ये आज भी एक ज्वलंत सवाल बन कर खड़ी है. इसका उत्तर किसी के पास नहीं है. सच तो ये है कि पुलिस ने असल कहानी छिपा दी थी. असल कहानी पर पुलिस रौषनी डालती तो कहानी का सच कुछ और ही सामने आता. अभियुक्त अरुण कुमार चौधरी आज तक ये नहीं समझ पाये कि जो अपराध उन्होंने किया ही नहीं था, उस अपराध के बदले नाहक जेल क्यों जाना पड़ा. उनका दोश क्या था? आज भी वे इसी सवालों के चक्रव्यूह में उलझे हैं. पुलिस की घोर लापरवाही से सभी अभियुक्त दोषमुक्त किये गये.

                                                              (कथा अदालत की फैसले पर आधारित.)

 

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