बीजेपी को 19 करोड़ का चंदा देने वाली वेदांता और सरकारों के खूनी गठजोड़ का इतिहास!

अभिषेक श्रीवास्‍तव


मद्रास उच्‍च न्‍यायालय की मदुरै खंडपीठ ने तमिलनाडु के तूतीकोरिन में वेदांता स्‍टरलाइट के औद्योगिक कारखाने के विस्‍तार पर बुधवार को रोक लगा दी। एक दिन पहले ही इस कारखाने का विरोध कर रहे हैं 15000 लोगों पर पुलिस ने गोलीबारी की थी जिसमें 11 लोग मारे गए थे और कई अन्‍य घायल हुए थे।

इस इलाके के लोग वेदांता के ताम्‍बा ढलाई कारखाने के विस्‍तार का पिछले सौ दिन से विरोध कर रहे थे। मंगलवार को विरोध प्रदर्शन का सौवां दिन था जब पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी कर के 11 की जान ले ली। कंपनी ने फरवरी में प्‍लांट के विस्‍तार को पर्यावरणीय मंजूरी दिए जाने संबंधी आवेदन किया था। इसके बाद तांबा ढलाई कारखाने की क्षमता आठ लाख टन सालाना से दोगुना हो जानी थी।

सोशल मीडिया पर एक और बात सामने आई है कि भारतीय जनता पार्टी को स्‍टरलाइट कंपनी से 19 करोड़ रुपये का चंदा मिला था।

BJP received 19 Crore as donations from Sterlite Industries #SterliteKillings
BJP is the same party, which also received donations from Dow Chemicals, company which is responsible for killing 1000s of people in Bhopal. pic.twitter.com/EedFDgpZUD

— Kapil (@kapsology) May 23, 2018

गोलीबारी के अगले दिन राष्‍ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मामले का संज्ञान लेते हुए तमिलनाडु के मुख्‍य सचिव और पुलिस महानिदेशक को नोटिस भेजा है और गोलीबारी कांड की रिपोर्ट दो हफ्ते के भीतर मंगवाई है। देश भर में इस घटना का विरोध हो रहा है। दिल्‍ली में आज शाम 4 बजे तमिलनाडु भवन पर विरोध प्रदर्शन रखा गया है।

National Human Rights Commission (NHRC) issues notice to #TamilNadu Chief Secretary and Director general of police (DGP) over police firing during anti-sterlite protest in #Thoothukudi that claimed 11 lives, seeks report within two weeks pic.twitter.com/fWfC6czAfP

— ANI (@ANI) May 23, 2018

सरकारों के साथ मिलकर लोगों पर गोली चलवाने और मानवाधिकार उल्‍लंघन करने के ममले में वेदांता का रिकॉर्ड पहले से काफी कुख्‍यात रहा है। इसे अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर मानवाधिकाार उल्‍लंघनों के लिए ब्‍लैकलिस्‍ट भी किया जा चुका है। आज से कोई साढ़े आठ साल पहले 23 सितंबर 2009 को छत्‍तीसगढ़ के कोरबा में एक निर्माणाधीन चिमनी गिर गई थी जिस हादसे में 40 लोग मारे गए थे। समूचे मीडिया में यही बताया गया और आज भी गूगल यही बताता है कि 275 मीटर ऊंची चिमनी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी बाल्‍को (भारत अलुमिनियम) के थर्मल प्‍लांट के लिए तैयार की जा रही थी। इस बात को समूचे मीडिया में बड़े करीने से छुपा लिया गया कि बालको दरअसल अनिल अग्रवाल की कंपनी वेदांता के हाथों बिक चुकी थी यानी थर्मल प्‍लांट समेत चिमनी वेदांता की थी। इस तथ्‍य को छुपाए जाने की वजहें कई हैं, जिनमें से एक अहम वजह यह है कि वेदांता के वकील उस वक्‍त केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम और उनकी पत्‍नी थे।

This is horrible, using rifle to control crowd. #Tuticorin pic.twitter.com/9AQNv9ghXl

— Vikas Tripathi (@vikasjournolko) May 22, 2018

कोरबा कांड में जांच के लिए गठित एक सदस्‍यीय न्‍यायिक आयोग ने चिमनी कांड के लिए बालको, चीन की कंपनी सेपको और जीडीसीएल सहित कोरबा के नर निगम को दोषी माना था। बालको में भारत सरकार की 49 फीसदी और वेदांता की 51 फीसदी हिस्‍सेदारी थी, लिहाजा बालको का समूचा प्रबंधन वेदांता के हाथ में था। बालको को दोषी ठहराया जाना दरअसल वेदांता को दोषी ठहराया जाना था। सेपको ने बालको यानी वेदांता से चिमनी बनाने का ठेका लिया था और जीडीसीएल को दे दिया था। जीडीसीएल का मतलब गैनन डंकरले नाम की कंपनी है जिसके मालिक कमल मुरारका हैं जो चौथी दुनिया नाम का अखबार निकालते हैं। लिहाजा जिनके खिलाफ़ मुकदमा कायम हुआ, उसमें बालको के तीन अफसर, सेपको के तीन अफ़सर और जीडीसीएल के छह अफसर शामिल थे। चार्जशीट बालको के सीईओ के खिलाफ थी।

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इस मामले और दो अन्‍य मामलों का संज्ञान लेते हुए दुनिया के सबसे बड़े सरकारी निवेश फंड नॉर्वे के गवर्नमेंट पेंशन फंड ग्‍लोबल (जीपीएफजी) ने वेदांता रिसोर्सेज़ पीएलसी को मानवाधिकारों, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन पर प्रभाव संबंधी उल्‍लंघन के नाम पर अपनी सूची में ‘ब्‍लैकलिस्‍ट’ कर दिया था।

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दो और मामले क्‍या थे? भारत में बालको चिंमनी कांड के अलावा ओडिशा के लांजीगढ़ में अलुमिना की रिफाइनरी का प्‍लांट जिसके लिए वेदांता ने दुर्लभ डोंगरिया कोंड आदिवासियों को उजाड़ कर नियमगिरि की पहाडि़यों में बॉक्‍साइट खनन करने का ठेका लिया था, जिसे 2013 के अगस्‍त में आदिवासियों ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर आयोजित 12 पल्‍ली सभाओं (एक तरह की ग्राम सभा) में एक स्‍वर में 12-0 से हरा दिया था। तीसरा मामला जांबिया में कोकोला कॉपर का है जिस मामले में 2007 में ही कंपनी को जीपीएफजी की काली सूची में डाल दिया गया था। इसकी विसतृत जानकारी इस लिंक से ली जा सकती है: https://thewire.in/business/norway-wealth-fund-blacklists-vedanta-indian-firms

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कोरबा कांड में 2009 में इस लेखक ने शायद सबसे पहली उद्घाटनकारी रिपोर्ट रविवार डॉट कॉम और सांध्‍य दैनिक ‘छत्‍तीसगढ़’ में की थी और मीडिया में पहली बार बताया था कि बालको ही वेदांता है। उस रिपोर्ट में चिदंबरम और उनकी पत्‍नी के वेदांता से रिश्‍तों के बारे में लिखा था। इसके बाद 2013 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर नियमगिरि की पहाडि़यों में जब डोंगरिया कोंढ आदिवासियों के गांवों में ग्राम सभा रखवायी गई तब भी वहां दिल्‍ली से पहुंचे कुल पांच पत्रकारों में यह लेखक भी था। दो दूरदर्शन से थे, एक चौथी दुनिया से, एक मैं और एक पत्रकार एनडीटीवी से वहां गई थीं। इस कहानी में एक दिलचस्‍प अंतकर्था है जिसके बारे में बताना चाहूंगा।

जिस दिन 12वीं ग्राम सभा जारपा गांव में हुई और डोंगरिया आदिवासियों ने वेदांता को अपने इलाके से 12-0 से बेदखल किया ठीक उसी दिन दिल्‍ली के लीला होटल में एनडीटीवी के मालिक प्रणय रॉय वेदांता के मालिक अनिल अग्रवाल के साथ खड़े होकर पर्यावरण पर एक सीएसआर प्रोग्राम की शुरुआत कर रहे थे और उसमें अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा को ब्रांड अम्‍बैसडर बनाया गया था। यह दोहरी नैतिकता का गज़ब खेल था। सच्‍चाई तब सामने आई जब नियमगिरि गई एनडीटीवी की रिपोर्टर की वीडियो रिपोर्ट सामने आई। पूरी रिपोर्ट में कहीं भी वेदांता का नाम या उसकी हार का जिक्र था बल्कि आदिवासियों की संस्‍कृति का जश्‍न मनाया गया था। मैंने इस दोहरेपन पर एक चिट्ठी लिखकर सैवंती नैनन को द हूट में भेजी, जिसे उन्‍होंने किन्‍हीं अबूझ कारणों से छापने से मना कर दिया। बाद में वह चिट्ठी इंडिया रेजिस्‍ट में छपी, जिसके बाद मुझे अंग्रेज़ी के पत्रकारों ने मिलकर ट्रोल किया। ये वही पत्रकार थे जो वेदांता से तमाम तरीकों से लाभ ले रहे थे।

वेदांता के काम करने का तरीका ऐसा ही है। तूतीकोरिन हो या लांजीगढ़ या फिर उदयपुर और कोरबा, वेदांता हर बार अपने निवेश के चक्‍कर में विरोधरत स्‍थानीय आबादी को इतना नुकसान पहुंचाता है कि वहां कोई न कोई कांड हो ही जाता है। जाहिर है, कंपनी के रिश्‍ते पत्रकारों और पुलिस प्रशासन से बहुत अच्‍छे होते हैं। मीडिया को कंपनी के सीएसआर का एक हिस्‍सा समर्पित होता है जिससे समाचार प्रतिष्‍ठान अपनी ज़बान बंद रखते हैं। पुलिस प्रशासन की भी पूरी देखभाल की जाती है। जब कभी गोली चलाने की बारी आती है, तो कठघरे में स्‍थानीय प्रशासन होता है, वेदांता नहीं।

These are the dead bodies from Tuticorin. People killed because they wanted a polluting factory closed. The factory is of the same Vedanta that has notorious history of displacing tribals. Factories aren’t closed if it kills people, they are closed when owner stops making profit. pic.twitter.com/frSQ8b1RRj

— sucheta de (@sucheta_ml) May 22, 2018

कम लोग जानते हैं कि राजस्‍थान के उदयपुर शहर को वेदांता सिटी के नाम से भी जाना जाता है। उदयपुर जिंक की खदानों के लिए मशहूर है। यहां सरकारी कंपनी हिंदुस्‍तान जिंक लिमिटेड का राज है। यह दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी जिंक उत्‍पादक कंपनी है। एनडीए के राज में 2001 में एक विनिवेश मंत्रालय बनाया गया था जिसका काम सरकारी कंपनियों को बेचना था। उस वक्‍त हिंदुस्‍तान जिंक घाटे में चल रही थी और सरकार ने उसे बेचने के लिए बाजार में खड़ा कर दिया था। वेदांता की एंट्री 2002 में होती है। स्‍टरलाइट अपॉर्चुनिटीज़ एंड वेन्‍चर्स लिमिटेड (एसओवीएल) नाम की कंपनी एचजेडएल की बोली लगाती है और प्रबंधकीय नियंत्रण व 46 फीसदी हिंस्‍सेदारी खरीद लेती है। यह हिस्‍सेदारी आगे चलकर 64.92 फीसदी पर पहुंच गई। आज भारत सरकार की अपने ही सार्वजनिक उपक्रम में हिस्‍सेदारी 30 फीसदी से भी कम है। अप्रैल 2011 में एसओवीएल का स्‍टरलाइट इंडस्‍ट्रीज़ इंडिया लिमिटेड में विलय कर दिया गया। स्‍टरलाइट इंडस्‍ट्रीज़ का सेसा गोवा के साथ अगस्‍त 2013 में विलय हुआ और नई कंपनी बनी सेसा स्‍टरलाइट लिमिटेड। इसी कंपनी का नामकरण अप्रैल 2015 में वेदांता लिमिटेड कर दिया गया। वेदांता लिमिटेड लंदन स्‍टॉक एक्‍सचेंज में सूचीबद्ध वेदांता रिसोर्सेज़ पीएलसी का अनुषंगी इकाई है।

भारत में वेदांता लिमिटेड के बनने की प्रक्रिया सार्वजनिक उपक्रमों के अधिग्रहण और विलय से मिलकर बनी है। यही वजह है कि वेदांता और सरकारों की मिलीभगत से होने वाले कॉरपोरेट अपराधों पर मीडिया आसानी से परदा डाल देता है।