भारतीय ई-कार बाजार में चीन की कंपनियों की सेंध

भारतीय फर्में इलेक्ट्रिक कारों के मोर्चे पर मुस्तैदी से कर रहीं काम
लेकिन शोध पर अधिक लागत और नकदी की कमी बन सकती है बाधा
फिलहाल देश में महिंद्रा इलेक्ट्रिक ही बनाती है इलेक्ट्रिक कार

महिंद्रा इलेक्ट्रिक के पास अपनी इलेक्ट्रिक कारों की बिक्री बढ़ाने के लिए एक आसान योजना है। वह ओला और जूमकार कंपनियों के साथ हाथ मिला रही है। दरअसल कंपनी यह साबित करना चाहती है कि उसकी ई2ओ कार से कंपनियां ज्यादा मुनाफा कमा सकती हैं। कंपनी के मुख्य कार्याधिकारी महेश बाबू कहते हैं, ‘ओला जैसी कंपनी का बिजनेस मॉडल कार की लागत (कार की कीमत और उसको चलाने का खर्च) पर है। इस मामले में हमारी कार ज्यादा फायदेमंद है।’

उन्होंने कहा कि कंपनी की इलेक्ट्रिक कार की लागत पेट्रोल-डीजल से चलने वाली कार की तुलना में महज 10 से 20 फीसदी है। इलेक्ट्रिक कार को चलाने में जहां प्रति किलोमीटर 80 पैसे खर्च आता है वहीं पेट्रोल या डीजल से चलने वाली कार का खर्च इससे 5-6 गुना ज्यादा है। देश की एकमात्र इलेक्ट्रिक कार निर्माता कंपनी होने के नाते महिंद्रा इलेक्ट्रिक की रणनीति समझ में आती है। लेकिन अधिकांश दूसरी कार निर्माता कंपनियों के लिए यह इलेक्ट्रिक कारों के साथ प्रयोग करने की दिशा में कदम बढ़ाने का समय है। मारुति सुजुकी के चेयरमैन आर सी भार्गव वाहन उद्योग के इरादे को कुछ इस तरह बयां करते हैं, ‘अभी तक इलेक्ट्रिक कारों के लिए ज्यादा तैयारी नहीं हुई है। लेकिन कोई भी इस बदलाव से नहीं बच सकता और आखिरकार आपको इस दिशा में जाना ही है।’

सवाल उठता है कि कब? सुजूकी के पास दुनिया के बाजार में एक हाइब्रिड कार है लेकिन कोई भी इलेक्ट्रिक कार नहीं है। लेकिन भारत में मौजूद अधिकांश दूसरी विदेशी कार कंपनियां दूसरे देशों में इलेक्ट्रिक कारें बेच रही हैं। इनमें हुंडई, फोर्ड, टोयोटा, वोल्वो और होंडा शामिल हैं। इलेक्ट्रिक वाहनों की न्यूनतम कीमत 29,000 डॉलर से अधिक है और साथ ही भारत में 60 फीसदी आयात शुल्क भी लगता है। इस कीमत पर इन्हें आयात करने की कोई तुक नहीं है।

अलबत्ता एक दूसरा रास्ता है। इसे पुर्जों की शक्ल में 10 फीसदी आयात शुल्क पर मंगाया जा सकता है। कुछ कंपनियां इलेक्ट्रिक कार की दिशा के कुछ छोटे कदम उठा रही हैं। इसमें सबसे ज्यादा सक्रिय वोल्वो है जो अपनी नई मालिक चीन की कार कंपनी जीली की मदद से अवसर का लाभ उठा सकती है। वोल्वो ऑटो इंडिया के प्रबंध निदेशक टॉम वॉन ब्रॉन्सडॉर्फ कहते हैं कि कंपनी अपनी पहली पूर्ण इलेक्ट्रिक कार 2019 में वैश्विक बाजार में लाएगी और इसे 2020 में भारत में पेश किया जाएगा। हुंडई और निसान भी चुपचाप इसकी शुरुआत करने की योजना बना रही हैं। दक्षिण कोरियाई कंपनी

हुंडई वैश्विक बाजार में अपनी इलेक्ट्रिक कार ‘आयनिक’ की आक्रामक मार्केटिंग कर रही है। भारत में कंपनी के प्रबंध निदेशक वाई के कू कहते हैं, ‘भारत में इलेक्ट्रिक वाहन के बारे में हम व्यावहारिकता अध्ययन करा रहे हैं और 2019 में हम इस श्रेणी में एक छोटी एसयूवी लाएंगे।’ निसान दुनिया में सर्वाधिक बिकने वाली इलेक्ट्रिक कारों में शामिल ‘निसान लीफ’ को प्रयोग के तौर पर भारत में उतारना चाहती है।

चीन इलेक्ट्रिक कारों का सबसे बड़ा बाजार है और विशेषज्ञों की मानें तो वहां की कंपनियां भारतीय कंपनियों पर भारी पड़ सकती हैं। चीनी कंपनियां 8,500 डॉलर कीमत की इलेक्ट्रिक कारें बनाने में कामयाब हो चुकी हैं।  इतना ही नहीं दुनिया की कुल लीथियम आयन बैटरी निर्माण क्षमता में चीन की कंपनियों की 83 फीसदी से अधिक भागीदारी है।  कुछ चीनी कंपनियों ने चुपचाप भारतीय बाजार में सेंध भी लगा दी है। इनमें एसएआईसी मोटर्स शामिल है जो अपनी सहयोगी कंपनी एमजी मोटर्स के जरिये गुजरात में एक संयंत्र लगा रही है। इसी तरह बिड ऑटो ने एक भारतीय साझेदार के साथ संयुक्त उपक्रम स्थापित किया है और इलेक्ट्रिस बसें बना रही हैं।भारतीय कंपनियां भी इलेक्ट्रिक कारों की दिशा में आगे बढ़ रही हैं। 

टाटा मोटर्स ब्रिटेन के कोवेंट्री में स्थित अपने केंद्र में इलेक्ट्रिक वाहनों के शोध और विकास पर काम कर रही हैं।  कंपनी ने बोल्ट और तियागो इलेक्ट्रिक का सार्वजनिक प्रदर्शन किया है और साथ ही बैटरी पर भी काम कर रही है। लेकिन इसमें कोई शक नहीं है कि इलेक्ट्रिक कारों के क्षेत्र में सबसे बड़ा दाव महिंद्रा इलेक्ट्रिक ने खेला है। कंपनी के बेंगलूरु संयंत्र की क्षमता 1,000 से बढ़ाकर 5,000 यूनिट प्रतिमाह की जा रही है।

बाबू का कहना है कि नई तकनीक पर काम चल रहा है ताकि 2019 तक उच्च क्षमता के वाहन बनाए जा सकें। ये वाहन एक बार चार्ज करने पर 250-300 किमी तक चल सकते हैं। कंपनी अगले दो-तीन साल में 2 से 4 नए इलेक्ट्रिक वाहन पेश करने की योजना बना रही है। भारत में एक विदेशी कार कंपनी के पूर्व प्रबंध निदेशक ने कहा कि शोध और विकास की लागत बहुत ज्यादा है और मुझे नहीं लगता है कि महिन्द्रा या टाटा के पास इतनी नकदी है।

फोक्सवैगन ने कहा है कि वह इलेक्ट्रिक कार के विकास पर अगले 5 साल में 10 अरब डॉलर निवेश करेगी। इस तरह के निवेश की जरूरत है। मुझे नहीं लगता है कि सुजुकी भी अकेले ऐसा कर पाएगी। सरकार की नीति पर भी सवाल उठ रहे हैं। हाइब्रिड वाहनों पर जीएसटी बढ़ने से भी कंपनियों ऐसे वाहनों पर निवेश के लिए हतोत्साहित होंगी। हाइब्रिड वाहनों से ही इलेक्ट्रिक वाहनों की राह निकलती है।

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