भारत में जेनेटिकली मोडीफ़ाइड सरसों को मिली मान्यता, एससी के फैसले का अभी इंतज़ार

स्वदेशी जागरण मंच सहित कई संगठनों के विरोध के बीच केंद्रीय जैविक नियामक ने भारत में संवर्धित की गई सरसों की फसल को मान्यता दे दी है। हालांकि जीएम सरसों की व्यावसायिक खेती की छूट देने से पहले केंद्र सरकार उच्चतम न्यायालय में चल रहे मामले में फैसले की प्रतीक्षा कर सकती है। अगर जेनेटिकली मोडीफ़ाइड यानि आनुवांशिक रूप से संवर्धित किए गए सरसों के बीज को बोये जाने की अनुमति मिलती है तो यह भारत में पहली बार होगा जब भारत में ही संवर्धित बीज का व्यावसायिक इस्तेमाल शुरू होगा।

उल्लेखनीय है कि दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व उप-कुलपति दीपक पटेल ने सरसों के बीजों को आनुवांशिक रूप से संवर्धित किया है। केंद्रीय जैविक नियामक ने बृहस्पतिवार को भारत में जीएम सरसों की खेती के लिए अपनी अनुमति दे दी है। जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रेज़ल कमिटी ने भी पर्यावरण मंत्रालय को अपनी संस्तुति दे दी है कि वह जेनेटिकली मोडीफाइड सरसों की बुआई की छूट दे सकती है।
अब यह मामला पर्यावरण मंत्रालय के पास है और पर्यावरण मंत्रालय जीएम सरसों की बुआई की अनुमति देता है या सर्वोच्च अदालत के फैसले की प्रतीक्षा करेगा यह अभी स्पष्ट नहीं है। गौरतलब है कि अभी तक देश में अब तक बीटी कॉटन एकमात्र ऐसी फसल है जो आनुवांशिक तौर पर संवर्धित और जिसकी देश में व्यावसायिक खेती की अनुमति मिली हुई है। यानि जीएम क्रॉप के रूप में बीटी कॉटन ही व्यावसायिक रूप से इस्तेमाल में लाई जा रही है।

हालांकि जीएम फसलों के इस्तेमाल का देश के कई संगठन विरोध कर रहे हैं। स्वदेशी जागरण मंच सहित इन संगठनों का मानना है कि जीएम क्रॉप भारत के पर्यावरण के अनुकूल नहीं है। स्वदेशी जागरण मंच ने बृहस्पतिवार को एक बयान जारी कर कहा कि वह सरसों सहित किसी भी जीएम क्रॉप के व्यावसायिक इस्तेमाल के विरोध में है। एसजेएम ने कहा कि वह सरकार से अनुरोध करेगी कि आनुवांशिक रूप से संवर्धित किसी भी फसल को देश में बोये जाने की अनुमति दी जाए।

विकसित देशों में सबसे अधिक बोई जाती हैं जीएम फसलें

दुनिया के कई देशों में जीएम फसलों को समर्थन मिलता है जबकि कई देश इसका विरोध करते हैं। वर्ष 1996 में जीएम फसलों की खेती 4.2 मिलियन एकड़ थी जो 2015 में 100 गुना बढ़कर 444 मिलियन एकड़ हो गई। अमरीका ऐसा देश जहां वर्ष 2014 में 94 प्रतिशत सोयाबीन, 96 प्रतिशत कपास और 93 प्रतिशत मक्के की खेती के लिए आनुवांशिक रूप से संवर्धित बीजों का इस्तेमाल किया गया था। इसके अलावा अन्य विकसित देशों में भी जीएम क्रॉप की खेती तेज़ी से बढ़ रही है।

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