भारत में ये भाषाएं दम तोड़ रही हैं

दुनिया में सैकड़ों भाषाएं दम तोड़ने के कगार पर हैं. यूनेस्को के मुताबिक 577 ऐसे भाषाएं है जिन पर लुप्त होने का सबसे ज्यादा खतरा मंडरा रहा है. इसमें भारत की 42 भाषाएं शामिल हैं. इनमें अधिकतर आदिवासी इलाकों की भाषाएं हैं.

जारवा

यूनेस्को के अनुसार दक्षिण अंडमान द्वीप की जारवा भाषा को बोलने वाले अब सिर्फ 31 लोग बचे हैं. इस इलाके की और भी कई भाषाओं पर खतरा मंडरा रहा है.

ग्रेट अंडमानीज

इस भाषा को अका जेरू या जेरू भी कहते हैं. मध्य और उत्तरी अंडमान में प्रचलित रही इस भाषा को बोलने वाले सिर्फ पांच लोग हैं. यूनेस्को के पास यह आंकड़ा 2007 का है

सेंटीनल

अंडमान द्वीप पर बोली जाने वाली भाषा सेंटीनल भी दम तोड़ने के कगार पर है. इसे बोलने वाले लोगों की संख्या अब 50 से भी कम बची है.

ओंगे

यूनेस्को का कहना है कि ओंगे भाषा को बोलने वाले लोगों का आंकड़ा भी 50 ही माना जाता है, हालांकि वास्तविक संख्या इससे काफी कम हो सकती है.

शोमपेन

ग्रेट निकोबार आइलैंड के जंगलों में रहने वाले लोग इस भाषा को बोलते हैं. असली संख्या पता नहीं लेकिन अनुमान है कि अब इसे सिर्फ 100 लोग ही इस्तेमाल करते हैं.

लामोंगीज

लिटिल निकोबार और कोंडुल द्वीपों पर लामोंगीज भाषा बोली जाती है. लेकिन अब इसे बोलने वाले सिर्फ 400 लोग बचे हैं.

ताराओ

ताराओ भाषा पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर के चंदेल और उखरुल जिले के इलाकों में बोली जाती है. 2001 की जनगणना के अनुसार अब सिर्फ 870 लोग ताराओ भाषा बोलते हैं.

पुरुम

मणिपुर के सेनापाटी जिले के फाइजोल, लाइकोट, थुइसेनपाई और खरम पालेन गांवों में यह भाषा बोली जाती है. माना जाता है कि अब इसे बोलने वाले सिर्फ 503 लोग ही बचे हैं.

तंगम

अरुणाचल प्रदेश के तंगम गांव में इस भाषा को बोलने वाले लोग रहते हैं. उसी के नाम पर इसका नाम भी पड़ा है. इसे बोलने वालों की संख्या लगभग 100 के आसपास है.

म्रा

अरुणाचल प्रदेश की ऊपरी सुबानसीरी नदी घाटी के कुछ गावों में यह भाषा बोली जाती है. ताजा आंकड़ों के अनुसार अब सिर्फ 350 लोग ही इस भाषा को बोलते हैं.

ना

चीन से लगने वाले अरुणाचल प्रदेश के कुछ गांवों में ना भाषा भी चलती है. लेकिन इसे इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या सिमट कर अब 350 रह गयी है.

ताई नोरा

इस भाषा को खामयांग के नाम से भी जाना जाता है. इसे बोलने वाले लगभग सभी 100 लोग असम के तिनसुकिया जिले के पोवाईमुख गांव में रहते हैं.

ताई रोंक

असम में जोरहाट के आसपास के इलाके में ताई लोंग भाषा बोलने वाले अब सिर्फ 100 लोग बचे हैं. इसलिए यह भी यूनेस्को की सबसे ज्यादा खतरे का सामना कर रही भाषाओं की सूची में है.

 

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