मायावती का इस्तीफा बढ़ा सकता है बसपा की सीटें, हिला सकता है भाजपा की कुर्सी

18 जुलाई को मॉनसून सत्र के दूसरे दिन जब सदन की कार्यवाही शुरू हुई तो मायावती दलितों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ हाल ही में हुई घटनाओं का मुद्दा उठाना चाहती थीं. लेकिन उपसभापति की ओर से उन्हें महज तीन मिनट का समय दिया गया. इससे दलित नेत्री भड़क गईं और इस्तीफे की धमकी देकर सदन से उठकर चली गईं.

मायावती ने राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया, लेकिन उनका इस्तीफा स्वीकार हो, इसकी संभावना बहुत कम ही है. क्योंकि इसके पीछे संसद का नियम है. सदन का कोई भी सदस्य सिर्फ एक लाइन बोलकर नहीं जा सकता, उसे सदन छोड़ने के कारणों का विस्तार से उल्लेख करना होता है. ऐसे में किसी पॉलिटिकल स्पीच की तरह लग रहे तीन पेज को पत्र को शायद ही स्वीकार किया जाए. .

मायावती के इस्तीफा के पीछे कारण

मायावती के इस्तीफे के पीछे सबसे बड़ा कारण क्या है. इसकी जिक्र उन्होंने अपने पत्र में ही कर दिया है. मायावती ने एक तीर से कई निशान करने की कोशिश की है. उन्होंने संदेश देने की कोशिश की कि सदन का सदस्य होते हुए भी उन्हेंने दलितों के अत्याचार और हिंसा पर बोलने नहीं दिया गया.मायावती का यह गुस्सा कहीं न कहीं उन्हें फिर दलित एजेंडे से जोड़ेगा. वह बड़ी चतुराई से सहारनपुर में हुई हिंसा और विरोध का क्रेडिट लेना चाहती हैं.

वह भीम आर्मी से क्रेडिट लेते हुए, राज्यसभा से इस्तीफा देकर यह दर्शाने की कोशिश में हैं कि वह दलितों के लिए इतना बड़ा त्याग भी कर सकती हैं. यह बीएसपी के हार्डकोर वोटरों के लिए बड़ा संदेश कहा जा सकता है. पिछले तीन विधानसभा और एक संसदीय चुनाव में हार का सामना कर चुकी मायवाती को अब इस बात का अंदाज हो गया है कि कैसे दलित वोटर बीएसपी के हाथ से फिसल रहा है.

वहीं बीजेपी ने बतौर प्रेसिडेंट दलित चेहरे राम नाथ कोविंद को प्रत्याशी बना कर मायावती को और असमंजस में डाल दिया था. अगर कोविंद राष्ट्रपति बन जाते हैं तो यूपी में बीजेपी दलित वोट बैंक पर और मजबूती से हक जमाने की कोशिश करेगी. वहीं, मायावती ने बीजेपी को उस वक्त यह झटका देने की कोशिश की है जब पार्टी दलित चेहरे को बल पर राष्ट्रपति चुनाव में बड़ा कार्ड खेलकर खुश थी.

मायावती ने यह भी साफ कहा- कोई भी जीते, पर यह साफ है कि एक दलित इस देश का प्रेसिडेंट बनने जा रहा है. यह अंबेडकर के सपने और उनकी राजनीति के लिए बड़ी उपलब्धि है. इसके अलावा मायावती ने बीजेपी पर एक और हमला करने की कोशिश की. दलित को लेकर सत्ताधारी पार्टी की नीतियों और गंभीरता पर प्रहार किया. उन्होंने आरोप लगाया- रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी चुन कर बीजेपी वोट बैंक पर कब्जा करना चाहती है, पर वास्तव में बीजेपी एंटी-दलित है. और इन्हीं आरोपों के साथ मायावती ने राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया. .

दो बातें जो जाननी जरूरी हैं

1. मायावती को पता है कि बहुत देर हो जाए, इससे पहले उन्हें तेज तेवर अपनाने होंगे. क्योंकि बीजेपी की तरह दलित वोट बैंक बड़ी तेजी से खिसक रहा है. ऐसे में उन्हें अपना वोट बैंक बचाने के लिए कुछ न कुछ तो करना ही है. .

2. जब बीजेपी अपने को दलितों का हितैषी बताने में लगी हुई है उस मौके पर वह बीजेपी पर ये आरोप लगाकर, दलितों पर अत्याचार की बात उठाकर दबाव बनाने की कोशिश कर रही हैं. .

मायावती के लिए यह इस्तीफा कहीं भी हार का सौदा नहीं है. वह 2012 में राज्यसभा सदस्य बनी थीं. उनका कार्यकाल सिर्फ 9 महीने का बचा है. मौजूदा हालात को देखते हुए उनका राज्यसभा में लौटना कठिन है. पर वह दलित के मुद्दे पर बीजेपी को निशाना बनाकर हाउस में अन्य पार्टियों का सपोर्ट जरूर पाएंगी.

मायावती का किला ढह गया है, ऐसे में वह वजूद बनाए रखने के लिए कुछ करने के लिए उनके पास कम वक्त ही बचा है. मायावती अपने मौके तलाशने के लिए, अपने वोटरों के लिए करो या मरो की स्थिति में है. क्योंकि मायावती की पार्टी के कई नेता, कई उनके करीबी पिछले कई सालों में पार्टी को छोड़कर जा चुके हैं. .

दलितों की नेत्री कही जाने वाली मायावती को साथियों की तलाश है जो उन्हें मौजूदा राजनीतिक हालात से निकाल सकें. अपना किला बचाने के लिए उनका इस्तीफा पहले कदम के तौर पर देखा जा सकता है. वह इससे एक बार फिर न सिर्फ चर्चा में आएंगी बल्कि उनकी पूछ भी बढ़ेगी. बिहार में लालू यादव की वापसी उनके लिए एक उदाहरण है. और अगर मायावती यह करने में सफल रही तो उनकी राजनीति बच जाएगी.

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