मुंशी प्रेमचंद की जयन्ती पर विशेष

मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर विशेष :

माँ -आज बन्दी छूटकर घर आ रहा है। करुणा ने एक दिन पहले ही घर लीप-पोत रखा था। इन तीन वर्षों में उसने कठिन तपस्या करके जो दस-पाँच रूपये जमा कर रखे थे, वह सब पति के सत्कार और स्वागत की तैयारियों में खर्च कर दिये। पति के लिए धोतियों का नया जोड़ा लायी थी, नये कुरते बनवाये थे, बच्चे के लिए नये कोट और टोपी की आयोजना की थी। बार-बार बच्चे को गले लगाती ओर प्रसन्न होती-उपरोक्त कहानी का अंश उपन्यासकार सम्राट मुंशी प्रेमचंद की कहानी का है।
मुंशी प्रेमचंद ३१ जुलाई १८८० का जन्म वाराणसी से चार मील दूर लमही गाँव में हुआ था। असली नाम धनपत राय श्रीवास्तव हुआ करता था।उनकी शादी शिवरानी देवी से १५ साल की उम्र में हुई जब वो कक्षा ९ में थे,प्रारम्भिक शिक्षा उर्दू और फ़ारसी से शुरुवात हुई ।मुंशी प्रेमचंद ७  साल के थे तभी उन्होंने लालपुर की मदरसा में शिक्षा प्राप्त करना शुरू किया, १८९८ में मैट्रिक की परीक्षा पास की और उसके बाद एक स्थानिक पाठशाला में अध्यापक नियुक्त हुए ।उनके पिता के जमनिया में स्थानांतरण होने के बाद १८९० के मध्य में प्रेमचंद ने बनारस के क्वीन कॉलेज में एडमिशन लिया, वह इंटर( १९१६) और बी.ए.( १९१९) के पास करने के बाद स्कूलों के डिप्टी सब-इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त किये गए।लगभग ३०० कहानियाँ तथा डेढ़ दर्जन उपन्यास लिखे ,लगभग २५० लघु कथाएँ, कई निबंध और अनेकों विदेशी साहित्यिक कृतियों का हिंदी में अनुवाद शामिल है, प्रसिद्ध हिंदी रचनायें हैं ; उपन्यास: गोदान,गबन,सेवासदन,रंगभूमि प्रेमाश्रम,निर्मला ; कहानी संग्रह: प्रेम तीर्थ ,नमक का दरोग़ा, प्रेम पचीसी, सोज़े वतन, पांच फूल, सप्त सुमन ; बालसाहित्य:जंगल की कहानियाँ,कुत्ते की कहानी आदि।उस दौर की सभी प्रमुख उर्दू और हिंदी पत्रिकाओं जमाना, सरस्वती, माधुरी, मर्यादा, चाँद, सुधा आदि में भी लिखा।
मुंशी प्रेमचंद ने हिंदी समाचार पत्र जागरण तथा साहित्यिक पत्रिका हंस का संपादन और प्रकाशन भी किया था ।बाद में सरस्वती प्रेस खरीदा जो घाटे में रहा और बंद करना पड़ा। प्रेमचंद फिल्मों की पटकथा लिखने मुंबई गए और लगभग तीन वर्ष तक वहाँ रहे। जीवन के अंतिम दिनों तक वे साहित्य सृजन में लगे थे। महाजनी सभ्यता अंतिम निबंध रहा ,साहित्य का उद्देश्य अंतिम व्याख्यान, मशहूर कहानी कफन अंतिम कहानी थी,गोदान तथा मंगलसूत्र अंतिम अपूर्ण उपन्यास है। प्रेमचंद के इस उपन्यास ‘मंगलसूत्र’ में कैसे एक नारी का जीवन शादी के बाद बदल जाता है और किस प्रकार से उसे हर कदम पर अपने मंगलसूत्र का मान रखना पड़ता है। १९०६ से १९३६ के बीच लिखा गया प्रेमचंद का साहित्य इन तीस वर्षों का सामाजिक सांस्कृतिक धरोहर है। इन सब में उस दौर के समाजसुधार आंदोलनों, स्वाधीनता संग्राम तथा प्रगतिवादी आंदोलनों के सामाजिक प्रभावों का स्पष्ट चित्रण देखने को मिलता है।
साहित्य में दहेज, अनमेल विवाह, पराधीनता, लगान, छूआछूत, जाति भेद, विधवा विवाह, आधुनिकता, स्त्री-पुरुष समानता,आदि उस दौर की सभी प्रमुख समस्याओं का प्रभाव देखने को मिलता है। हिंदी कहानी तथा उपन्यास के क्षेत्र में कालखंड १९१८ से १९३६ को ‘प्रेमचंद युग’ कहा गया है।८ अक्टूबर १९३६ को अपनी अंतिम सास ली

(अरुण चंदेल ,वरिष्ठ पत्रकार,एडिटर इन चीफ फोर्थ इंडिया न्यूज़ )