राज्यसभा चुनाव : क्या गुजरात की राजनीति में ‘खेल’ कर चुके हैं शंकर सिंह वाघेला?

अहमदाबाद : गुजरात में प्रतिष्ठा का सवाल बनी राज्यसभा की तीसरी सीट के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के सलाहकार अहमद पटेल ने पूरी ताकत लगा रखी है. लेकिन, दूसरी ओर उनके विजय रथ के पहिए को रोकने का कांग्रेस के बागी व मूलत: आरएसएस पृष्ठभूमि के शंकर सिंह वाघेला ने एक तरह से एलान कर दिया है. कल जहां उन्होंने 70 के दशक से अहमद भाई से दोस्ती होने का हवाला देते हुए कोई टिप्पणी नहीं की थी, वहीं आज वोट देने के साथ उन्होंने एलान कर दिया कि उन्होंने अहमद भाई को अपना वोट नहीं दिया. सुबह नौ बजे गांधीनगर विधानसभा में शुरू हुई वोटिंग में सवेरे-सवेरे वोटिंग करने वाले वाघेला को आखिरकार इसकी जरूरत क्यों पड़ी? यह सवाल बहुतों के दिमाग में तैर रहा है.

शंकर सिंह वाघेला ने सुबह-सुबह वोट करने के बाद अहमद भाई को वोट नहीं देने का एलान कर कांग्रेस के उन विधायकों को संदेश दिया है, जिसे पार्टी ने अपने कब्जे में कर रखा था और उन्हें पहले बेंगलुरु के रिजार्ट में और फिर गुजरात के ही अहमदाबाद से सटे शहर आणंद के रिजार्ट में रख रखा था. इनमें कई ऐसे हो सकते हैं, जिनकी निजी निष्ठा कांग्रेस पार्टी से ज्यादा शंकर सिंह वाघेला में है. इसके कारण भी हैं. गुजरात की राजनीति में व्यक्तिगत रूप से ऊंची हैसियत रखने वाले वाघेला ने बहुतों को राजनीति में स्थापित किया, आगे बढ़ाया. जाहिर है इसका असर तो होगा ही.

वाघेला ने आज वोट देने के बाद कांग्रेस पार्टी पर निशाना साधते हुए कहा है कि उसे अहमद भाई की रेपुटेशन से खिलवाड़ नहीं करना चाहिए, उनके साथ 40 विधायक भी नहीं हैं और शाम पांच बजे रिजल्ट आने पर सब पता चल जायेगा. बापू के नाम से गुजरात में मशहूर वाघेला ने मीडिया के इस शब्द को भी आज खारिज किया कि वे गुजरात की राजनीति में क्या ‘खेल’ कर रहे हैं? लेकिन उनका बॉडी लैंग्वेज यह संकेत देता है कि वे ‘खेल’ कर चुके हैं. मौजूदा परिस्थिति में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में अहमद पटेल को जीत के लिए 45 विधायकों के वोट की जरूरत है और 51 में 45 विधायक ही कांग्रेस ने रिजार्ट में रख रखे थे.

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