राज्यसभा चुनाव: सत्ता के हर पायदान को कब्जाने की नीति पर भाजपा

उत्पल पाठक

उत्तर प्रदेश में भाजपा द्वारा घोषित राज्यसभा उम्मीदवारों की घोषणा उसकी किसी भी कीमत पर सत्ता के हर पायदान को कब्जाने की प्रवृत्ति की ओर इशारा करती है. राज्यसभा चुनावों की उम्मीदवारी के लिये पिछले कुछ महीनों से चल रही खेमेबाज़ी के बीच उत्तर प्रदेश से आने वाले नामों को लेकर सबसे ज्यादा उत्सुकता थी. इस बात का बखूबी फायदा उठाते हुए भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने अपने विरोधियों के उम्मीदवारों की घोषणा होने के बाद आख़िरी समय तक सस्पेंस बरकरार रखा. नामांकन खत्म होने के महज 20 घंटे पहले भाजपा ने राज्यसभा उम्मीदवारों की सूची जारी की.

भाजपा के उम्मीदवारों के नाम की घोषणा और सोमवार को हुई राजनीतिक उठापटक के बाद उत्तर प्रदेश की दस सीटों का समीकरण बेहद दिलचस्प हो गया है. कई बातें हैं जिन्हें अलग-अलग तरीकों से समझना होगा.

भाजपा ने 10 सीटों के लिए अपनी तरफ से 11 उम्मीदवारों को का नाम घोषित किया है. जानकारों की मानें तो इसके पीछे अंतिम समय में किसी नाम के खारिज होने या नामांकन रद्द होने की स्थिति में सीट दूसरी पार्टी को न जाने पाए, इससे बचने के लिए एहतियातन ज्यादा उम्मीदवार उतारे हैं.

उत्तर प्रदेश के एक भाजपा नेता के मुताबिक पार्टी ने जानबूझ कर दो डमी उम्मीदवार उतारे हैं. भाजपा विधानसभा में अपनी मौजूदा संख्या बल के आधार पर आठ सदस्य चुन सकती है. 47 विधायकों के साथ सपा जया बच्चन को राज्यसभा में भेजेगी. इसके बाद उसके पास 10 वोट बच जाएंगे. ये दस वोट सपा को बसपा उम्मीदवार के समर्थन में देना था. यह दोनों दलों के बीच गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव से पहले बनी सहमति का हिस्सा था.

लेकिन अब लगता है कि बसपा को अपना राज्यसभा उम्मीदवार जिताने में एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ेगा क्योंकि नरेश अग्रवाल के सपा छोड़ने के साथ ही उनके विधायक बेटे नितिन अग्रवाल ने भी सपा का साथ छोड़ दिया है. ऐसे में सपा के सिर्फ 9 वोट बचे हैं. 19 वोट बसपा के हैं. 7 वोट कांग्रेस, एक-एक वोट रालोद और निषाद पार्टी का है. कुल मिलाकर 37 के जादुई अंक तक पहुंचता है. जाहिर है यह आरामदेह स्थिति नहीं है. बकौल बसपा के एक नेता, भाजपा उनके और बाकी दलों के कई विधायकों की खरीद-फरोख्त की कोशिश में लगी हुई है.

भाजपा खेमे से आ रही ख़बरों के मुताबिक पार्टी किसी भी कीमत पर बसपा के उम्मीदवार को हराना चाहती है. पार्टी मायावती द्वारा समाजवादी पार्टी को उपचुनाव में दिए गए समर्थन के बाद उन्हें सबक सिखाना चाहती है.

इस सबके बीच भाजपा की सूची में अरुण जेटली और जीवीएल नरसिम्हा राव के नामों के अलावा जो नाम शामिल हैं उनके भी काफी गहरे जातिगत संदेश हैं जिन्हें पार्टी ने खासी नाप तौल के बाद तय किया है.

जात-पात से भोज-भात तक

उत्तर प्रदेश में राज्यसभा चुनावों की गर्माहट का अंदाज़ा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि मुख्यमंत्री योगी ने सूची जारी होने के बाद रविवार शाम को अपने आवास पर एक रात्रिभोज का आयोजन किया. जबकि तयशुदा कार्यक्रम के अनुसार मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और फ्रांस के राष्ट्रपति एमैन्युएल मेक्रों के वाराणसी-मिर्जापुर दौरे में अगवानी के मद्देनज़र वाराणसी में ही रात्रि विश्राम करना था.

लेकिन मुख्यमंत्री आनन-फानन में वाराणसी से लखनऊ पहुंचे और भोज की मेज़बानी के बीच उन्होंने राज्यसभा चुनाव की रणनीति पर चर्चा की. शीर्ष भाजपा सूत्रों की माने तो इस भोज में केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली समेत अनिल जैन, प्रदेश संगठन महामंत्री सुनील बंसल समेत प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र पांडेय और कुछ चुनिंदा मंत्री भी शामिल थे.

रविवार रात को हुए इस भोज के बाद सोमवार की भोर से ही लखनऊ समेत प्रदेश के अन्य शहरों के पत्रकारों के पास व्हाट्सएप के माध्यम से नरेश अग्रवाल के भाजपा में जाने की आशंका वाले संदेशों का आदान प्रदान शुरू हो गया था जो सोमवार शाम होने तक सच में बदल गया.

बहरहाल, भाजपा ने नरेश अग्रवाल के धुर विरोधी और पूर्व सपाई अशोक वाजपेयी को पहले ही साध लिया था लेकिन नरेश को लाने के पीछे भाजपा की मंशा सपा के गढ़ में बड़ी सेंध लगाने की थी. राजनीति के मंजे हुए खिलाड़ी और एक मुंहफट वक्ता नरेश ने सपा में रहकर कई मौकों पर राज्यसभा में भाजपा को लाजवाब कर दिया था. नरेश को पार्टी में लेकर अमित शाह ने सपा को राज्यसभा में भी चुनौती देने का प्रयास किया है. संभव है कि सपा को राज्यसभा में नरेश के जैसे मुखर वक्ता का अभाव महसूस हो.

लम्बी बहस और कागज़ी गुणा-गणित के जातिगत आधार पर बनी भाजपा की सूची में जो नाम सामने आए उनके निहितार्थ और संदेश क्या है-

विजय पाल तोमर

मूलतः मेरठ के मूल निवासी विजय पाल तोमर किसी ज़माने में जनता दल के सक्रिय सदस्य थे. वे सरधना विधानसभा सीट से एक बार जनता दल के टिकट से विधायक भी चुने गये. लेकिन कुछ समय बाद वे भाजपा में आ गये और जिला अध्यक्ष भी बने. हालांकि बाद में बसपा और सपा के स्थानीय नेताओं ने उन्हें हाथ पैर फैलाने का मौका नहीं दिया.

अमित शाह के सक्रिय होने के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा के मिशन 2014 को 2013 से ही क्रियान्वित करने वाली टीम के सक्रिय सदस्य रहे तोमर को भाजपा ने बाद में प्रदेश किसान मोर्चा का अध्यक्ष बनाया.

2014 में सरकार आने के बाद तोमर के नेतृत्व में भाजपा ने गन्ना किसानों को लेकर आंदोलन किया था. 2017 में भाजपा को मिली भारी जीत के पीछे इस आंदोलन की भी एक भूमिका रही. तोमर वर्तमान में भाजपा के किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.

हरनाथ सिंह यादव

किसी ज़माने में एटा से संघ के प्रचारक रहे हरनाथ यादव ने नब्बे के दशक में भाजपा में विभाग संगठन मंत्री और प्रदेश महामंत्री जैसे पदों की जिम्मेदारी भी संभाली. 1990 में भाजपा के टिकट से विधान परिषद के स्नातक कोटे से चुनाव भी लड़े लेकिन हार गए. 1996 में निर्दलीय चुनाव जीत कर एमएलसी चुने गये. नब्बे का दशक जाते-जाते उनका राजनैतिक रुझान बदल गया और वे सपा में शामिल हो गये.

2002 में सपा के टिकट से स्नातक सीट दोबारा जीतने में कामयाब हुए लेकिन कार्यकाल ख़त्म होने के बाद अगले चुनावों में पार्टी के द्वारा तवज्जो न दिये जाने के कारण फिर वापस भाजपा में लौट आये. इन्हें टिकट देकर भाजपा ने प्रदेश के भारी-भरकम यादव वोट बैंक में अपनी पैठ को मजबूत बनाने की कोशिश की है. हाल ही में भाजपा ने प्रदेश में युवा मोर्चा की कमान सुभाष यदुवंश को दी है और ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि भविष्य में यादवों को और भी पदों से नवाजा जायेगा.

डॉ. अशोक वाजपेयी

उत्तर प्रदेश की राजनीति में वाजपेयी कद्दावर खिलाड़ी हैं, कान्य कुब्ज ब्राह्मण हैं और मूलतः हरदोई जिले के निवासी हैं. संघ के स्वयंसेवक के रूप में अपना राजनीतिक करियर शुरू करने वाले डॉ.  वाजपेयी बाद में खांटी समाजवादी बन गए और सपा के संस्थापक सदस्यों में उनका नाम पहली पंक्ति में था.

कई सरकारों में मंत्री और सात बार विधायक चुने जाने के बाद वे हाल ही में सपा से विधान परिषद की अपनी सीट केशव मौर्या के लिये छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे. उन्हें इस त्याग का इनाम राज्यसभा भेज कर दिया गया है. प्रदेश भाजपा अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडेय पहले से ही पार्टी का ब्राह्मण चेहरा हैं और अब राज्यसभा में अशोक वाजपेयी के बहाने एक तीर से कई निशाने साधे गये हैं.

कान्ता कर्दम

मेरठ की रहने वाली कान्ता कर्दम जाटव समुदाय से आती हैं. भाजपा ने उन्हें मेरठ से मेयर का टिकट भी दिया था लेकिन वे बसपा प्रत्याशी से हार गयीं. कान्ता लम्बे समय से भाजपा की सक्रिय सदस्या हैं और वर्तमान में भाजपा की प्रदेश उपाध्यक्ष हैं. इन्हें एक बार विधानसभा चुनाव में भी मौका मिला था लेकिन वहां भी इन्हें सफलता नहीं मिली. राज्यसभा में कान्ता को भेजने के पीछे दलित समुदाय की महिलाओं को सकारात्मक सन्देश देने की मंशा है.

डॉ. अनिल जैन

भाजपा ने राष्ट्रीय कोटे का ध्यान रखते हुए वैश्य समाज की भी भागीदारी सुनिश्चित की है. इसी उद्देश्य से डॉ. अनिल जैन को भी उत्तर प्रदेश कोटे से भेजने का निर्णय लिया है. उत्तर प्रदेश के ही मूल निवासी डॉ. जैन पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव होने के अलावा अमित शाह के करीबी माने जाते हैं. वर्तमान में वे छत्तीसगढ़ और हरियाणा के प्रभारी होने के साथ-साथ आल इण्डिया टेनिस एसोसिएशन के भी पदाधिकारी हैं. गौरतलब है कि जैन समुदाय और जैन मतावलम्बियों की अच्छी खासी संख्या उत्तर प्रदेश समेत गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी है.

सकलदीप राजभर

पूर्वांचल के सामाजिक समीकरण साधने के उद्देश्य से भाजपा ने बलिया के एक सामान्य सी पृष्ठभूमि वाले कार्यकर्ता एवं प्रदेश कार्यसमिति सदस्य सकलदीप राजभर को चुना है. प्रदेश में भाजपा की सहयोगी दल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर फिलहाल भाजपा की आंख की किरकिरी हैं. पूर्वांचल में राजभर समुदाय की संख्या को ध्यान में रखते हुए भाजपा ने 2019 में ओमप्रकाश से सीधी लड़ाई होने की स्थिति में इस्तेमाल किये जाने वाले विकल्प के रूप में सकलदीप राजभर को राज्यसभा भेजने का निर्णय लिया है.

पुराने जो रह गए

इस लिस्ट से कुछ नाम गायब भी हुए हैं जिनमें रामजन्मभूमि आंदोलन से चर्चा में आये पूर्व राज्यसभा सदस्य विनय कटियार, सुधांशु त्रिवेदी और लक्ष्मीकांत वाजपेयी जैसे पुराने भाजपा कार्यकर्ताओं के नाम शामिल हैं. इन्हें मौका नहीं दिया गया. इनके अलावा उत्तर प्रदेश के मूल निवासी कुछ राष्ट्रीय स्तर के पत्रकारों ने भी भाजपा के टिकट से राज्यसभा जाने का सपना संजो रखा था लेकिन अंतिम समय में उन सबको नज़रअंदाज़ करते हुए इस सूची को जारी किया गया.

भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के लिए शनिवार से लेकर सोमवार तक का समय खासा मशक्कत वाला रहा. मामले की गंभीरता का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि रविवार को एक तरफ प्रधानमंत्री और फ्रांसीसी राष्ट्रपति मैक्रों की अगुवाई के लिये पूरा प्रशासनिक अमला और वरिष्ठ नेता वाराणसी में लगे हुए थे और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को वाराणसी के निरीक्षण के फ़ौरन बाद ही लखनऊ आकर भोज का आयोजन करना पड़ा. वहीं दूसरी तरफ सोमवार सुबह से ही मीडिया में प्रधानमंत्री द्वारा अपने लोकसभा क्षेत्र में दौरे से सबंधित खबरें टीवी चैनलों पर प्रमुखता से चलायी जा रही थी लेकिन इसी बीच बिना समय गंवाए सोमवार शाम होने से पहले ही भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने नरेश अग्रवाल को भाजपा में शामिल करवा दिया.

आख़िरी दौर में राज्यसभा चुनाव भी रोचक हो चले हैं लेकिन लखनऊ में बैठे जानकार मानते हैं कि भाजपा ने फूलपुर और गोरखपुर उपचुनाव से सबक लेते हुए सपा बसपा को राज्यसभा में घेरने की कोशिश की है. देश भले ही 2019 के लोकसभा चुनाव को दूर मान रहा हो लेकिन दो लोकसभा सीटों के उपचुनाव और राज्यसभा चुनावों ने उत्तर प्रदेश को अभी से चुनावी मोड में डाल दिया है.