सोहराबुद्दीन मामला: याचिकाअों की सुनवाई कर रहीं जज बदल दी गई, सीबीआई पर उठाये थे सवाल

मुंबई: सोहराबुद्दीन शेख कथित फर्जी मुठभेड़ मामले में भारतीय पुलिस सेवा के कुछ अधिकारियों को आरोपमुक्त किये जाने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाअों की सुनवाई कर रहीं जज बदल दी गई हैं.

अभी तक जस्टिस रेवती मोहिते डेरे इन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थीं. बॉम्बे हाईकोर्ट की वेबसाइट पर प्रकाशित नोटिस के अनुसार, अब वे आपराधिक समीक्षा आवेदनों की सुनवाई नहीं करेंगी और अब अग्रिम जमानत अर्जी के ही मामले देखेंगी.

सोहराबुद्दीन का मामला अब जस्टिस एनडब्ल्यू सांबरे की नई एकल पीठ के पास रहेगा. वे ही अापराधिक समीक्षा आवेदनों को सुनेंगे. जस्टिस डेरे के साथ-साथ अन्य जजों की जिम्मेदारी में भी बदलाव किया गया है.

गौरतलब है कि सोहराबुद्दीन के भाई रुबाबुद्दीन ने मामले में कुछ आईपीएस अफसरों को आरोपमुक्त किए जाने के निचली अदालत के फैसले को चुनौती दे रखी है.

वहीं, सीबीआई ने भी पूर्व आईपीएस अधिकारी एनके अमीन और एक अन्य पुलिसकर्मी को आरोपमुक्त किए जाने को चुनौती दी है. इन याचिकाओं पर जस्टिस डेरे तीन हफ्तों से प्रतिदिन सुनवाई कर रही थीं. पांच आवेदनों में से चार के सभी पक्षकारों की जिरह का ज्यादातर हिस्सा वह सुन चुकी थीं.

सोहराबुद्दीन शेख़ फ़र्ज़ी मुठभेड़ मामले की सुनवाई करने के दौरान बीते 21 फरवरी को बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा था कि सीबीआई अदालत की पर्याप्त सहायता नहीं कर पा रही है, जिसकी वजह से इस पूरे मामले को लेकर अब तक स्पष्टता नहीं है.

मामले की सुनवाई कर रहीं जस्टिस रेवती मोहिते डेरे ने कहा था कि सीबीआई आरोपमुक्त किए गए लोगों के ख़िलाफ़ सभी साक्ष्यों को रिकॉर्ड पर रखने में विफल रही.

जस्टिस डेरे ने कहा था, ‘अभियोग लगाने वाली एजेंसी का यह प्रथम कर्तव्य है कि वह अदालत के समक्ष सभी साक्ष्यों को रखे, लेकिन इस मामले में अदालत द्वारा कई बार पूछने पर भी सीबीआई ने केवल उन्हीं दो अधिकारियों की भूमिका के बारे में बहस की जिन्हें आरोपमुक्त करने को उसने चुनौती दी है.’

जस्टिस ने कहा था, ‘अभियोजन पक्ष के पूरे मामले को लेकर अभी भी अस्पष्टता है क्योंकि मुझे सीबीआई की ओर से पर्याप्त मदद नहीं मिल रही.’

रुबाबुद्दीन के वकील गौतम तिवारी का कहना है कि वे एक्टिंग चीफ जस्टिस वीके ताहिलरमानी से मांग करेंगे कि मामले को जस्टिस डेरे की कोर्ट में ही चलने दिया जाए. वे काफी सुनवाई कर चुकी हैं.

तो वहीं, बरी हुए आईपीएस अफसरों का पक्ष रख रहे वकील महेश जेठमलानी का कहना है कि जजों की जिम्मेदारी में रोजाना बदलाव होता है. इसके ज्यादा कुछ अर्थ निकालने की जरूरत नहीं है.

मालूम हो कि बॉम्बे उच्च न्यायालय गुजरात के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी डीजी वंजारा, राजस्थान के पुलिस अधिकारी दिनेश एमएन और गुजरात पुलिस के एक अधिकारी राजकुमार पांडियन को आरोप मुक्त किए जाने को लेकर रुबाबुद्दीन शेख़ की ओर से दाख़िल तीन याचिकाओं की सुनवाई कर रहा है.

इसके साथ ही उच्च न्यायालय सीबीआई द्वारा राजस्थान पुलिस के कॉन्स्टेबल दलपत सिंह राठौड़ और गुजरात पुलिस के अधिकारी एनके अमीन को बरी करने के ख़िलाफ़ दो याचिकाओं पर भी सुनवाई कर रहा है.

साल 2005 में गुजरात पुलिस की ओर से किए गए एक कथित फ़र्ज़ी मुठभेड़ में सोहराबुद्दीन शेख़ को मार गिराया गया था. उनकी पत्नी कौसर बी. रहस्यमय तरीके से लापता हो गई थीं और आरोप लगा कि पुलिस ने उन्हें भी मार डाला. इन हत्याओं के गवाह रहे तुलसीराम प्रजापति को एक अन्य कथित फ़र्ज़ी मुठभेड़ में दिसंबर 2006 में मार गिराया गया था.

सीबीआई ने इस मामले में वंज़ारा, पांडियन, दिनेश और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह सहित 38 लोगों के ख़िलाफ़ आरोप-पत्र दायर किया था. लेकिन वंज़ारा, पांडियन, दिनेश और अमित शाह सहित 15 लोगों को आरोप-मुक्त किया जा चुका है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)