► अटकी समेकित बाजार पूंजी 14,000 करोड़ रुपये
► अधिकांश कंपनियों में आम निवेशकों की शेयरधारिता ज्यादा
प्रतिक्रिया : ज्यादातर कंपनियां ‘शेल’ या ‘मुखौटा’ कंपनी के तौर पर वर्गीकृत करने को गलत बता रही हैं और सेबी तथा एक्सचेंजों से पाबंदी हटाने को कह रही हैं। गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय और आयकर विभाग की सलाह से कंपनी मामलों के मंत्रालय द्वारा इन मुखौटा कंपनियों की पहचान की गई थी।
सरकार ने तो 331 कंपनियों पर मुखौटा कंपनियां करार देकर उनके शेयर कारोबार पर रोक लगा दी, लेकिन असली मार निवेशकों पर पड़ी, जिनमें म्युचुअल फंड और छोटे निवेशक भी शामिल हैं। इन कंपनियों में निवेशकों के करीब 9,000 करोड़ रुपये फंस गए हैं। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने कल देर रात स्टॉक एक्सचेंजों को मुखौटा कंपनियों में शेयरों की खरीद-बिक्री फौरन बंद करने का निर्देश दिया था। उसकी फेहरिस्त में 331 कंपनियां दी गई थीं, जिन्हें कंपनी मामलों के मंत्रालय ने मुखौटा करार दिया था। मंत्रालय ने गंभीर अपराध जांच कार्यालय (एसएफआईओ) और आयकर विभाग की सलाह पर मुखौटा कंपनियों की पहचान की है।
उन कंपनियों को मुखौटा कंपनी कहा जाता है, जिनका कोई कारोबार नहीं होता या संपत्ति नहीं होती। लेकिन इन 331 कंपनियों में से कई ऐसी हैं, जो कारोबार में सक्रिय हैं। कम से कम 5 ऐसी कंपनियां हैं, जिनमें से हरेक का बाजार पूंजीकरण 500 करोड़ रुपये से भी अधिक है और जिनके शेयरधारकों में संस्थागत निवेशकों के साथ खुदरा निवेशक भी शामिल हैं। इन कंपनियों को छठे चरण की निगरानी श्रेणी में रखा गया है। इस श्रेणी में महीने में केवल एकबार शेयर कारोबार की अनुमति दी जाती है और जितनी कीमत के शेयरों का कारोबार होता है उसकी तीन गुना राशि बतौर जमानत जमा करानी पड़ती है।
जे कुमार इन्फ्रा (बाजार पूूंजीकरण 2,150 करोड़ रुपये), प्रकाश इंडस्ट्रीज (2,124 करोड़ रुपये), पाश्र्वनाथ डेवलपर्स (1,036 करोड़ रुपये) और बहुराष्ट्रीय कंपनी एसक्यूएस इंडिया (535 करोड़ रुपये) सहित कई कंपनियों का कहना है कि इस फेहरिस्त में उन्हें रखना सही नहीं है। उन्होंने सेबी तथा एक्सचेंजों से इस निर्देश पर पुनर्विचार का आग्रह किया है।
जे कुमार इन्फ्रा ने कहा, ‘स्पष्ट किया जाता है कि जे कुमार मुखौटा कंपनी नहीं है और नियामक का संदेह अनुचित है। हमारी कंपनी एक्सचेंज और कंपनी पंजीयक दोनों के नियमों का अनुपालन करती है।’ यह कंपनी अभी कई परियोजनाओं पर काम कर रही हैं, जिनमें से कुछ सरकारी ठेके भी शामिल हैं। सूत्रों ने कहा कि सूची में तीन दर्जन से अधिक कंपनियां तकनीकी रूप से मुखौटा कंपनी की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आती हैं और सर्कुलर को संशोधित किया जा सकता है। सूत्र ने कहा, ‘जिन कंपनियों ने शिकायत दर्ज कराई है, नियामक उनका सत्यापन कर रहा है। हालांकि इसमें थोड़ा वक्त लग सकता है। ऑडिटर और नियामकीय प्राधिकारणों से हरी झंडी मिली तो सेबी पाबंदी हटा सकता है।’
कई कंपनियों ने सेबी और कंपनी मामलों के मंत्रालय को विवरण देकर समझाया है कि वे मुखौटा कंपनियां नहीं हैं। स्टेकहोल्डर्स इंपावरमेंट सर्विसेज (एसईएस) के प्रबंध निदेशक जेएन गुप्ता ने कहा, ‘इसकी संभावना हो सकती है कि मुखौटा कंपनियों के तौर पर वर्गीकृत कंपनियां वास्तविक हों। ऐसे मामले में वह पाबंदी हटाने के लिए सेबी तथा स्टॉक एक्सचेंज से संपर्क कर सकती हैं। यह निरोधात्मक कदम होगा और जो दोषी नहीं हैं, उन्हें ठीक किया जा सकता है।’
विशेषज्ञों ने कहा कि अगर सभी कंपनियां मुखौटा कंपनियां नहीं भी हो, तब भी संभव है कि प्रवर्तन एजेंसियों को कुछ गड़बड़ी के सूत्र मिले हों, जिस कारण यह कदम उठाया गया हो। प्राइम डेटाबेस के संस्थापक चेयरमैन पृथ्वी हल्दिया ने कहा, ‘इसके जरिये कारोबारियों का कड़ा संदेश दिया गया है कि किसी भी तरह की धोखाधड़ी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।’
एलटीजीसी से बचने के लिए बाजार में गड़बड़ी करने वालों पर सख्ती : आयकर विभाग और सेबी की कई जांचों में पता चला है कि सूचीबद्ध मुखौटा कंपनियों का इस्तेमाल स्टॉक एक्सचेंज के माध्यम से धनशोधन में किया जाता रहा है। इसमें मुखौटा फर्मों के शेयर खरीदे जाते हैं, उनकी कीमत बढ़ाई जाती है और एक साल के बाद उस शेयर को बेचकर दीर्घावधि पूंजीगत लाभ कर (एलटीसीजी) से छूट हासिल कर ली जाती है।