Birthday Special: गुलजार के बारे में 10 बातें जो शायद आप जानते नहीं होंगे

नई दिल्‍ली: ‘हवा के सींग न पकड़ो खदेड़ देती है, जमीं से पेड़ों के टांके उधेड़ देती है…’  कल्‍पनाओं की ऐसी विचित्रता और शब्‍दों की ऐसी जादूगरी सिर्फ गुलजार ही कर सकते हैं और आज शब्‍दों के इसी जादूगर का जन्‍मदिन है. जानेमाने शायर गुलजार का असली नाम संपूर्ण सिंह कालरा है. उनका जन्म 18 अगस्त, 1934 को झेलम जिले के दीना गांव में हुआ था जो अब पाकिस्‍तान में है. वे फिल्मों में आने से पहले गैराज मकेनिक का काम किया करते थे. गुलजार कम उम्र में ही लिखने लग थे लेकिन उनके पिता को यह पसंद नहीं था, लेकिन उन्होंने लिखना जारी रखा और एक दिन अपनी मेहनत के दम पर बॉलीवुड का बड़ा नाम बन गए. वे 20 बार फिल्मफेयर तो पांच राष्ट्रीय पुरस्कार अपने नाम कर चुके हैं. 2010 में उन्हें स्लमडॉग मिलेनेयर के गाने ‘जय हो’ के लिए ग्रैमी अवार्ड से नवाजा गया था. उन्हें 2013 के दादा साहेब फालके सम्मान से भी नवाजा जा चुका है. जानिए उनके बारे में कुछ खास बातेः

1.      गुलजार अपने कॉलेज के दिनों से ही सफेद कपड़े पहन रहे हैं.
2.      उन्होंने बिमल रॉय के साथ असिस्टेंट का काम किया. एस.डी. बर्मन की ‘बंदिनी’ से बतौर गीतकार शुरुआत की. उनका पहला गाना था, ‘मोरा गोरा अंग…’
3.      बतौर डायरेक्टर गुलजार की पहली फिल्म ‘मेरे अपने’ (1971) थी, जो बंगाली फिल्म ‘अपनाजन’ की रीमेक थी.
4.      गुलजार की अधिकतर फिल्मों में फ्लैशबैक देखने को मिलता, उनका मानना है कि अतीत को दिखाए बिना फिल्म पूरी नहीं हो सकती. इसकी झलक, ‘किताब’, ‘आंधी’ और ‘इजाजत’ जैसी फिल्मों में देखने को मिल जाती है.
5.      गुलजार उर्दू में लिखना पसंद करते हैं.

6.      गुलजार ने 1973 की फिल्म ‘कोशिश’ के लिए साइन लैंग्वेज सीखी थी क्योंकि ये फिल्म मूक-वधिर विषय पर थी. जिसमें संजीव कुमार और जया भादुड़ी थे.
7.      1971 में उन्होंने ‘गुड्डी’ फिल्म के लिए ‘हमको मन की शक्ति’ देना गाना क्या लिखा ये गाना स्कूलों मे प्रार्थना में सुनाई देने लगा.
8.      उन्होंने ‘हू तू तू’ के फ्लॉप होने के बाद फिल्में बनानी बंद कर दीं, इस झटके से उबरने के लिए उन्होंने अपना ध्यान शायरी और कहानियों की ओर किया.
9.      उन्हें टेनिस खेलन बेहद पसंद है, और वे सुबह टेनिस जरूर खेलते हैं.
10.  उनकी लोकप्रिय फिल्मों में ‘अचानक’, ‘कोशिश’ (1972),  ‘आंधी’ (1975), ‘मीरा’, ‘लेकिन’, ‘किताब’ (1977) और ‘इजाजत’ (1987) के नाम आते हैं.

 

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