ओला, उबर से मोटी कमाई की उम्मीद में ड्राइवरों ने लोन पर गाड़ियां लीं और काम शुरू किया था। लेकिन अब टैक्सी एग्रीगेटर ने इंसेटिव कम कर दिए हैं। नतीजा ड्राइवर की कमाई घट गई, लोन की किश्तें मिस हो रही हैं और गाड़ियां जब्त होने का खतरा मंडरा रहा है।
नरेश ने 2015 में मारुति स्विफ्ट डिजायर यह सोच कर खरीदी थी कि उबर में टैक्सी चला कर जल्द ही अपनी किश्ते चुका लेंगे। उबर ने वादा किया था कि हर हफ्ते कम से कम 11 हज़ार की आमदनी तो होगी ही। शुरुआत में आमदनी अच्छी थी लेकिन अब यह हफ्ते में 3000 रुपये भी नहीं कमा पा रहे हैं। नतीजा, तीन महीनों से किश्त नहीं भर पा रहे हैं और बैंक वाले गाड़ी जब्त करने की धमकी दे रहे हैं।
लंबे समय तक डिस्काउंट और इंसेंटिव देने के बाद अब ऊबर और ओला जैसी कंपनियां अपना नुकसान कम करने की कोशिश कर रही हैं। इंसेंटिव में भारी कटौती के बाद ड्राइवरों की आमदनी काफी घट गई है और वे अपने लोन की भरपाई नहीं कर पा रहे हैं। अलग-अलग शहरों में ओला उबर के ड्राइवरों की डिफॉल्ट दर 7 से 20 फीसदी के बीच है। अब कई बड़े बैंको ने ड्राइवर्स को लोन देना बंद कर दिया है।
देश भर में ओला उबर के लगभग 10 लाख ड्राइवर हैं। इनमें से ज्यादातर ने गाड़ियां लोन पर ली है। बैंक अब गाड़ियों को जब्त कर अपने लोन की भरपाई करने का मन बना रहे हैं। लेकिन नए लोन न मिलने से ओला उबर जैसे एग्रीगेटर की विस्तार योजनाओं पर भी ब्रेक लग सकता है।
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