ये ‘उपवास’ से सत्ता का पेट भरने की राजनीतिक ‘भूख’ है

उपवास का धार्मिक महत्व है तो सामाजिक प्रतिष्ठा भी है. उपवास ईश्वर से जुड़ने का जरिया माना जाता है. लेकिन राजनीति की नजर से उपवास का दर्शन अलग ही है. सियासत में उपवास अपनी मांगें मनवाने का हथियार है तो शांति, सौहार्द कायम करने का तरीका भी. मध्यप्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान तीन दिनों के उपवास के बाद अब उपवास खत्म कर सकते हैं. उनसे मंदसौर फायरिंग में मारे गए मृतकों के परिवार वालों ने गुजारिश की है.

शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि उनसे प्रदर्शन में मारे गए लोगों के परिवार वाले मिले और उपवास तोड़ने को कहा जिससे वो भावुक हो गए क्योंकि इस आंदोलन में नहीं रहे.

शिवराज उपवास तोड़ देंगे. तोड़ना भी चाहिये. जिस आंदोलन ने उनकी नींद उड़ाई जिससे उन्हें ख्वाबों और हकीकत में किसान ही किसान दिखने लगें तो ऐसे में राजधर्म का पालन करने वाले मुखिया को भला भूख और प्यास कैसे लग सकती है.

मंदसौर के बाद सत्ता पर ग्रहण

अब चूंकि हालात धीरे धीरे सामान्य हो रहे हैं तो ऐसे में उपवास की राजनीति के जरिये शिवराज किसी भी तरह उनके शासन में हुई इस बड़ी घटना से बाहर निकलना चाहते हैं. वो ये जानते हैं कि 13 साल की साफ छवि के बाद उनकी सरकार ने एक मौका कांग्रेस को दे दिया है. शिवराज ये भी जानते हैं कि सरकार उनकी, प्रशासन भी उनका और बंदूक की नली से निकली गोली भी उनकी पुलिस की थी.

लेकिन उपवास के राजनीतिक हथियार का चूंकि अब तक कोई दूसरा तोड़ नही निकल सका है इसलिये सियासतदां इसी हथियार से ही पलटवार करते आए हैं.

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