इंडिया टीवी ने मेडिकल घोटाले में नाम आने पर मांगा था संपादक हेमंत शर्मा का इस्तीफा

जून 2017 में हेमंत शर्मा (एकदम दाएं) के बेटे की शादी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पहुंचे थे. (फोटो: फेसबुक)

सरकार द्वारा कुछ मेडिकल कॉलेजों के एडमिशन पर रोक लगाई गई थी, पर कॉलेज बिचौलियों की मदद से मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों को घूस देकर ये फैसला बदलवाना चाहते थे. इस मामले में इंडिया टीवी के एक वरिष्ठ पत्रकार हेमंत शर्मा का नाम आया था.

इंडिया टीवी के प्रमोटर और एडिटर इन चीफ रजत शर्मा ने द वायर से बातचीत में चैनल के न्यूज़ डायरेक्टर हेमंत शर्मा से इस्तीफा मांगने की बात स्वीकार की है. इस महीने की शुरुआत में मेडिकल कॉलेज और सरकारी अधिकारियों से जुड़े रिश्वत कांड में नाम आने के कारण हेमंत से नौकरी छोड़ने को कहा गया था. रजत शर्मा के अनुसार ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि भ्रष्टाचार के किसी आरोप के प्रति चैनल ‘ज़ीरो टॉलरेंस’ रखता है.

द वायर ने 10 अगस्त को प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया था कि कैसे सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्तरीय सुविधाएं मुहैया न करवाने के कारण कुछ मेडिकल कॉलेजों के एडमिशन देने पर बैन लगाया गया था और इन मेडिकल कॉलेजों के अधिकारियों की कॉल ट्रैक करते समय सीबीआई को एक रैकेट का पता चला.

आगे की जांच में पता लगा कि ये कॉलेज बिचौलियों के नेटवर्क के ज़रिये किन्हीं अनाम सरकारी कर्मचारियों की मदद से ‘सरकारी अधिकारियों से अपने हित में आदेश लेने’ की कोशिश कर रहे थे. इस महीने की शुरुआत में सीबीआई ने इस मामले में 4 लोगों पर आरोप लगाया, जिनमें से तीन को औपचारिक रूप से गिरफ्तार भी किया गया.

ऐसा बताया जा रहा है कि मामले की जांच में पूछताछ के दौरान सीबीआई के अधिकारियों को आरोपियों ने बताया कि वे एक हिंदी समाचार चैनल के वरिष्ठ पत्रकार के संपर्क में थे, जिसके स्वास्थ्य मंत्रालय के वरिष्ठों से करीबी संबंध हैं.

हालांकि एफआईआर में हेमंत शर्मा का नाम कहीं दर्ज नहीं है, लेकिन सूत्रों के अनुसार आरोपियों से पूछताछ में ये सामने आया. रजत शर्मा के अनुसार जब चैनल को इस बारे में जानकारी मिली, तब हेमंत से सम्मानजनक रूप से चैनल की भलाई के लिये नौकरी छोड़ने के बारे में कहा गया.

गौरतलब है कि रजत शर्मा और इंडिया टीवी को वर्तमान सत्ता पक्ष का करीबी माना जाता है, वहीं हेमंत भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह समेत भाजपा के बड़े नेताओं से जुड़े रहे हैं. हेमंत को 2014 के आम चुनावों में मोदी को वाराणसी सीट से लड़ने का सुझाव देने का श्रेय भी किया जाता है. साथ ही उन्हें समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता मुलायम सिंह यादव का करीबी भी माना जाता है.

द वायर से बात करते हुए रजत शर्मा ने कहा, ‘मेरा रुख बिल्कुल साफ है. इंडिया टीवी में मेरे साथ काम करने वाला हर व्यक्ति जानता है कि भ्रष्टाचार पर मेरा क्या रुख है, क्या सिद्धांत हैं. साथ ही, संस्थान भी जानता है कि मेरी टीम में काम करने वाले किसी भी सदस्य पर कुछ ग़लत करने का आरोप मैं बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कर सकता. हेमंत मेरे संस्थान से बहुत लंबे समय से जुड़े थे और वे मेरे इस कदम का सम्मान करते हैं.’

संयोग से जब हेमंत ने अपने इस्तीफे के बारे में घोषणा की, तब इंडिया टीवी ने कहा कि हेमंत करिअर में कुछ समय का ब्रेक लेना चाहते हैं. रजत शर्मा का कहना था, ‘इंडिया टीवी के साथ हेमंत का लंबा साथ रहा है, हमारी शुभकामनाएं हमेशा उनके साथ हैं.’

वहीं हेमंत का कहना था, ‘अपने लेखन के प्रति प्रेम से जुड़े लंबे करिअर से कुछ दिन का विराम लेना चाहता हूं, लेकिन मैं इंडिया टीवी के लिए हमेशा उपलब्ध रहूंगा.’

द वायर ने रजत शर्मा के बयान पर हेमंत शर्मा से बात करने के कई प्रयास किए, लेख को उनका पक्ष रखने के उद्देश्य से हफ़्ते भर तक रोका भी गया लेकिन उनकी ओर से किसी भी कॉल या मैसेज का कोई जवाब नहीं दिया गया.

हालांकि सीबीआई ने हेमंत शर्मा के इस मामले से जुड़े होने के बारे में इंडिया टीवी में किसी से कोई पूछताछ नहीं की और न ही जांच के इस संदर्भ के बारे में सार्वजानिक रूप से बताया गया, ऐसे में यह स्पष्ट नहीं है कि चैनल ने किस आधार पर उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करने का फैसला किया.

फोटो: पीटीआई

सरकारी कर्मचारियों को घूस देने की कोशिश

सीबीआई द्वारा 3 अगस्त 2017 को आपराधिक साज़िश, भ्रष्ट और अवैध तरीके से घूस देकर सार्वजानिक कर्मचारियों को प्रभावित करने का एक मामला दर्ज किया गया.

सीबीआई के अनुसार दो आरोपी नरेंदर सिंह और कुंवर निशांत सिंह झज्जर के वर्ल्ड कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज के लिए काम कर रहे थे- ये उन कॉलेजों में से एक है जिन्हें सरकार द्वारा स्तरीय सुविधाएं न देने या आवश्यक कोटे को पूरा न करने के चलते मेडिकल छात्रों को एडमिशन देने से रोका गया है.

मंत्रालय द्वारा पहले भारतीय मेडिकल काउंसिल द्वारा निर्धारित मानकों का पालन न करने के चलते 23 मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन पर रोक लगाई थी. इसके बाद इस साल जुलाई में 32 निजी मेडिकल कॉलेजों को दो साल तक नए छात्रों को प्रवेश देने से रोक दिया गया.

हालांक सीबीआई की जांच दिखाती है कि जहां मंत्रालय को लगा था कि मेडिकल कॉलेजों के ख़िलाफ़ लिए गए इस कदम से वे व्यवस्था को साफ और दुरुस्त कर पाएंगे, वहीं कुछ शीर्ष अधिकारियों और बिचौलियों को पैसा कमाने का मौका मिल गया.

अनाम अधिकारियों के संपर्क में थे आरोपी

सीबीआई के अनुसार ये दोनों दिल्ली में मीटिंग्स के ज़रिये लगातार इस मामले पर काम कर रहे थे, वहीं दूसरी ओर 23 कॉलेजों ने इस रोक को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को इस मामले को दोबारा शुरू करने का आदेश दिया था, वहीं सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के आधार पर सीबीआई की जांच कहती है कि ‘ये दोनों व्यक्ति मंत्रालय के जरिये रोक के इस आदेश को पलटवाना चाहते थे और इसके लिए वे कई लोगों से मिले थे जिन्होंने इनकी मदद करने का आश्वासन दिया और ऐसा करवाने के लिए संबंधित अनाम सरकारी कर्मचारियों को एक बड़ी घूस देने की बात कही थी.

बाकी दो लोग, वैभव शर्मा और वीके शर्मा नोएडा के सेक्टर-44 के रहने वाले हैं और इन मेडिकल कॉलेजों से सीधे नहीं जुड़े हैं, लेकिन सीबीआई द्वारा दर्ज एफआईआर में नामजद हैं. सीबीआई का कहना है कि ये दोनों नरेंदर सिंह और निशांत सिंह के संपर्क में थे, जिन्होंने कॉलेज प्रबंधन को आश्वासन दिया था कि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों से नज़दीकी के ज़रिये वो कॉलेज के पक्ष में आदेश लाने में मदद करेंगे.

सीबीआई का कहना था कि हालांकि इस संदर्भ में इनके द्वारा काफी बड़ी रिश्वत की मांग की गई थी, ये चारों आरोपी सरकारी अधिकारियों से अपने पक्ष में आदेश लेने की कोशिश में थे.

एक सूत्र के हवाले से सीबीआई का यह भी कहना है कि ये ‘रिश्वत’ वैभव शर्मा और वीके शर्मा को दी जानी थी, जो अपने संपर्कों के जरिये इसे स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों तक पहुंचाते.

 

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