उदय से भी नहीं हुए डिस्कॉम रोशन

केंद्र सरकार की महत्त्वाकांक्षी उदय योजना भी राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों की खस्ताहाल स्थिति में सुधार नहीं ला पाई है। बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर और छत्तीसगढ़ उन 8 राज्यों में शामिल हैं जिनका कुल पारेषण और व्यावसायिक नुकसान उदय में शामिल होने के बाद घटने के बजाय और बढ़ गया है।

अब तक कुल 26 राज्य ऋण पुनर्गठन योजना उदय से जुड़ चुके हैं। पारेषण एवं व्यावसायिक नुकसान का उच्च प्रतिशत इस बात का प्रतीक है कि इन राज्यों में बिजली आपूर्ति और वितरण का बुनियादी ढांचा बुरी तरह चरमराया हुआ है। केंद्र सरकार की संस्था पावर फाइनैंस कॉरपोरेशन ने जुलाई में एक विज्ञप्ति में दावा किया था कि उदय के तहत बिजली खरीद लागत, पारेषण एवं व्यावसायिक नुकसान और ब्याज लागत घटनी शुरू हो गई है जिससे राष्टï्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के कार्यकाल में राजस्व और लागत का अंतर 40 फीसदी कम हुआ है। इन आंकड़ों के मुताबिक औसत पारेषण एवं व्यावसायिक नुकसान 2014 के 23 फीसदी के मुताबिक 2017 में घटकर 20 फीसदी रह गया है। अलबत्ता इन आंकड़ों पर नजर डालने पर पता चलता है कि राज्यों को 2019 तक इस नुकसान को 15 फीसदी तक लाने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए अभी बहुत कुछ करना है।

छत्तीसगढ़ ने उदय में शामिल होने के लिए जनवरी 2016 में केंद्र सरकार के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। लेकिन इस दौरान राज्य का पारेषण एवं व्यावसायिक नुकसान दोगुना से भी अधिक हो गया है। जिन राज्यों में यह नुकसान बढ़ा है उनमें से पंजाब और केरल को छोड़कर बाकी 6 राज्यों में भाजपा या उसके सहयोगी दलों की सरकार है। पंजाब यह नुकसान 19.22 फीसदी है। पारेषण एवं व्यावसायिक नुकसान के मामले में जम्मू-कश्मीर 61.6 फीसदी के साथ पहले स्थान पर है। हालांकि इसमें 0.14 फीसदी का बेहद मामूली सुधार हुआ है। बिहार में बिजली की दरों में संशोधन के बावजूद यह नुकसान 44 फीसदी पर पहुंच चुका है।

उत्तर प्रदेश और राजस्थान की बिजली वितरण कंपनियों पर 2016 में क्रमश: 50 हजार करोड़ और 75 हजार करोड़ रुपये का कर्ज था, उनका पारेषण एवं व्यावसायिक नुकसान भी बढ़ा है। उत्तर प्रदेश के मामले में इसमें 0.14 फीसदी की मामूली बढ़ोतरी हुई है। राजस्थान में यह 28.86 फीसदी और हरियाणा में 28 फीसदी है। पीडब्ल्यूसी इंडिया के पार्टनर पावर ऐंड यूटिलिटीज संबितोष महापात्र ने कहा कि जब तब राज्य सरकारें व्यवस्था को दुरुस्त नहीं करेंगी तब तक सुधार नहीं होगा। केंद्र सरकार ने अपना काम कर दिया है और अब सुधारों को आगे ले जाने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है।

उदय योजना राज्यों की वितरण कंपनियों के वित्तीय पुनर्गठन के लिए शुरू की गई है। इन कंपनियों पर मार्च 2015 तक कुल 4 लाख करोड़ रुपये का कर्ज था। उदय योजना से जुडऩे वाले राज्यों के लिए किसी भी वित्तीय संस्थान या बैंक से नुकसान की भरपाई की अनुमति नहीं है। भविष्य में किसी भी तरह की फंडिंग कंपनी के प्रदर्शन पर निर्भर करेगी। इन कंपनियों के कुल 4 लाख करोड़ रुपये के कर्ज में से 90 फीसदी को बॉन्ड में बदला गया है लेकिन राज्यों पर फिर से कर्ज चढऩे की आशंका है क्योंकि बहुत कम राज्यों ने बिजली की दरों में संशोधन किया है। बिहार ने 2017-18 की बिजली खरीद लागत के मुताबिक दरों में बदलाव की घोषणा की है। राज्य में सभी तरह के उपभोक्ताओं के लिए दरों में 28 फीसदी बढ़ोतरी की गई है। राज्य सरकार कमजोर तबके के लिए सीधे सब्सिडी देगी।

पारेषण एवं व्यावसायिक नुकसान के अलावा बिजली खरीद लागत और राजस्व में अंतर भी बढ़ गया है। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, झारखंड, हरियाणा और तमिलनाडु में औसत आपूर्ति लागत और औसत राजस्व के अनुपात में मापा गई खरीद लागत और राजस्व का अंतर बहुत ज्यादा है। इन राज्यों में यह अंतर 0.26 से 2.55 के बीच है। पीएफसी के मुताबिक 2014 में यह औसतन 0.76 था जो 2017 में घटकर 0.46 रह गया है।  पिछले महीने सरकार की आर्थिक समीक्षा में कहा गया कि बिजली क्षेत्र की बुनियादी समस्याओं से निपटने में उदय योजना उल्लेखनीय योगदान रहा है लेकिन यह उनकी राजकोषीय स्थिति से निपटने के लिए कोई रामबाण नहीं है।

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