गौरी लंकेश पहली नहीं जिनकी सोच चुभती थी, कई पत्रकारों की हो चुकी है निर्मम हत्या

भारत के बंगलुरू शहर में मंगलवार शाम वरिष्ठ पत्रकार और कथित तौर पर दक्षिणपंथियों की आलोचक रही गौरी लंकेश की हत्या कर दी गई.

पुलिस के अनुसार शाम को वो अपने घर लौटकर दरवाज़ा खोल रही थीं, तब मोटरबाइक पर सवार हमलावरों ने उन पर गोलियां चलाईं. उनके सीने पर दो और सिर पर एक गोली लगी है.

गौरी को जानने वालों के अनुसार उन्हें दक्षिणपंथी विचारधारा वाले संगठनों से कथित तौर पर धमकियां मिल रही थीं.

लेखिका और पत्रकार राणा अय्यूब कहती हैं, “उनकी हत्या उन्हीं लोगों का काम है जो गौरी लंकेश की आवाज़ से डरते थे.”

साहित्यकार लेखक मंगलेश डबराल कहते हैं “उनकी हत्या यक़ीनन विचारधारा के कारण हुई है. वो पिछले दो साल से दक्षिणपंथी ताकतों के निशाने पर थीं.”

लेकिन दक्षिणपंथियों की आलोचना करने वालों में वो पहली नहीं जिनकी हत्या हुई हो.

20 अगस्त 2013 – नरेंद्र दाभोलकर

20 अगस्त 2013 को महाराष्ट्र में रहनेवाले अंधविश्वास-विरोधी आंदोलन के नेता डॉक्टर नरेंद्र दाभोलकर की हत्या कर दी गई थी.

1945 में जन्मे दाभोलकर ने 1989 में महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति की स्थापना की. अपने तीन दशक से भी अधिक के कार्यकाल में दाभोलकर ने ‘पोंगा पंडितों’ के ख़िलाफ़ कई पुस्तकें लिखीं.

दाभोलकर ने तथाकथित चमत्कारों के पीछे छिपी हुई वैज्ञानिक सच्चाइयों को उजागर किया. दाभोलकर ‘नकली संतों-महंतों’ पर प्रहार करते थे.

उन्हीं के प्रयासों के कारण जुलाई 1995 में राज्य में जादू-टोना विरोधी क़ानून का मसौदा पारित हुआ था. लेकिन राजनीतिक कारणों से ये कानून अमली जामा नहीं पहन सका था. बाद में उनकी हत्या के बाद सरकार ने एक अध्यादेश लाकर ये कानून लागू किया.

 

पुणे में 20 अगस्त 2013 की सुबह जब दाभोलकर टहलने निकले थे उन पर अज्ञात हमलावरों ने करीब से गोलियां चलाई. गोलियां उनके सिर पर लगीं और घटनास्थल पर ही उनकी मौत हो गई थी.

उस वक्त महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने हत्यारों का सुराग बताने वाले को दस लाख रुपए इनाम की घोषणा की थी.

इस मामले में सीबीआई ने 2016 में हिंदू जनजागरण समिति के नेता वीरेन्द्र तावड़े को पनवेल से गिरफ़्तार किया. मामले में ये पहली गिरफ़्तारी थी. इससे पहले सीबीआई ने तावड़े और उनके साथी के घरों पर छापे मारे थे.

बाद में 2016 में ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में छपी एक छ़बर के अनुसार सीबीआई ने उन पर गोलियां चलाने वाले बदमाशों की पहचान कर ली थी. बताया गया था कि ये दोनों शूटर सनातन संस्था के सदस्य थे.

उनके हत्यारों का अभी तक कोई पता नहीं चला है.

20 फरवरी 2015 – गोविंद पानसरे

फ़रवरी की एक सुबह कोल्हापुर में कम्युनिस्ट विचारक गोविंद पानसरे जब अपनी पत्नी के साथ सुबह टहलने निकले थे उन पर मोटरबाइक सवार दो लोगों ने जानलेवा हमला किया. पांच दिनों बाद मुंबई के अस्पताल में उन्होंने दम तोड़ दिया.

पानसरे महाराष्ट्र में 50 सालों से प्रगतिशील आंदोलन के मुखिया थे और सांप्रदायिकता के विरोध में भी वे काफ़ी सक्रिय थे.

हत्या से कुछ दिन पहले उन्होंने नाथूराम गोडसे का महिमामंडन किए जाने को लेकर कड़ा एतराज़ जताया था.

इस हत्या के एक प्रत्यक्षदर्शी 14 साल के एक बच्चे से पुलिस ने बात की थी. ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ में छपी इस ख़बर के अनुसार बच्चे ने पुलिस को बताया था कि दोनों बाइकसवार किसी का इंतज़ार कर रहे थे और लगातार अपने फ़ोन पर बात कर रहे थे.

 

इंडियन एक्सप्रेस’ में छपी एक ख़बर के अनुसार इस मामले में महाराष्ट्र पुलिस के विशेष जांच दल ने 2015 में सनातन संस्था से जुड़े समीर गायकवाड़ को गिरफ्तार किया. उन्हें बाद में कोर्ट ने जमानत दे दी थी.

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार 2016 में इस मामले में वीरेंद्र तावडे (इन्हें इससे पहले नरेंद्र दाभोलकर की हत्या के सिलसिले में भी गिरफ्तार किया गया था) को पुलिस से गिरफ्तार किया. उन्हें कोर्ट ने न्यायिक हिरासत में भेजा था.

उनके हत्यारों का अभी तक कोई पता नहीं चला है.

20 अगस्त 2015 – डॉ. एमएम कलबुर्गी

प्रमुख भारतीय विद्वान और जाने-माने तर्कवादी विचारक डॉक्टर एमएम कलबुर्गी की हत्या कर्नाटक में उनके घर के दरवाज़े पर कर दी गई थी.

कर्नाटक के धारवाड़ में स्थित कलबुर्गी के घर पर दो नौजवान मोटरसाइकिल से आए थे. एक ने दरवाज़ा खटखटाया और ख़ुद को कलबुर्गी का छात्र बताया.

थोड़ी देर तक कलबुर्गी से बात करने के बाद उस शख़्स ने उन्हें गोली मार दी. और मोटरसाइकिल पर इंतज़ार कर रहे अपने दोस्त के साथ वहाँ से निकल भागा.

पुलिस ने इस बात की जाँच की कि क्या उनकी मृत्यु का संबंध पिछले साल मूर्तिपूजा के विरोध में दिए गए बयान से है जिससे दक्षिणपंथी हिन्दू संगठनों में ग़ुस्सा था. उनके बयान के बाद कुछ दक्षिणपंथी संगठनों ने उनके ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन किए थे जिसके बाद उन्हें पुलिस सुरक्षा भी दी गई थी.


हालांकि कई लोगों का मानना था कि कलबुर्गी ने लिंगायत समुदाय की परंपराओं और विश्वासों की कई बार खुली आलोचना की थी और समुदाय में ही कई दुश्मन बना लिए थे.

राज्य के ज़्यादातर मुख्यमंत्री इसी समुदाय के रहे हैं और माना जाता है कि ये समुदाय अब राष्ट्रवादी दक्षिणपंथी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का मुख्य जनाधार है.

‘इंडियन एक्सप्रेस’ के अनुसार इस मामले में पूछताछ करने के लिए सीआईडी ने सनातन संस्था से जुड़े वीरेंद्र तावडे को हिरासत में लिया था. लेकिन उनकी तबीयत खराब होने के कारण उनसे पूछताछ नहीं कर पाई थी.

2015 में पुलिस से सोशल मीडिया पर कलबुर्गी को हत्या की धमकी देने वाले एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया था. ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में छपी एक ख़बर के अनुसार प्रसाद अट्टावर नाम के ये व्यक्ति श्रीराम सेना और बजरंग दल ये जुड़े थे.

अट्टावर को साल 2009 में मंगलोर के एक पब में महिलाओं पर हमला करने के लिए गिरफ्तार किया गया था.

कलबुर्गी की हत्या के मामले में फिलहाल किसी को सज़ा नहीं मिली है.

निशाने र रहे केएस भगवान

इससे अलग एक घटना में मंगलोर पुलिस ने बजरंग दल के एक स्थानीय नेता भुवित शेट्टी को गिरफ़्तार किया था. उन पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने ट्वीट कर एक अन्य कन्नड लेखक केएस भगवान को जान से मारने की धमकी दी थी.

पुलिस से मामले की स्वत:संज्ञान लेते हुए भारतीय दंड संहिता की धारा 153 ए और 506 के तहत मुकदमा दर्ज किया और केएस भागवन को पुलिस सुरक्षा दी.

के एस भगवान हिंदू धर्म और हिंदू देवी-देवताओं पर खुल कर बोलने के लिए जाने जाते हैं. ‘इकोनोमिक टाइम्स’ में छपी एक ख़बर के अनुसार धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आरोप में के एस भगवान के ख़िलाफ़ एफ़आईआर भी दर्ज कराई गई थी.

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