झारखंड में नक्सली महिलाओं की दयनीय स्थिति

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स्वाति सिंह

देखा जाए तो महिलाओं के जीवन एवं उनकी इज्जत की रक्षा करने के लिए न जाने कितनी योजनाएं बनायी गयी ।लेकिन इन योजनाओं ने किताबों एवं अखबारों के पन्ने तक ही सिमट कर दम तोड़ दिया ।महिलाओं का शोषण तो कल भी होता था और आज भी हो रहा है ।उनकी स्थिति में कुछ भी नहीं बदला, बस बदले है तो शोषण करने के तरीके । प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण झारखंड का एक बडा हिस्सा आज नक्सलवाद से प्रभावित है । अब नक्सलवाद के दलदल में महिलाओं को भी खींचा जा रहा है ।

झारखंड में महिला नक्सलियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है ।तीन हजार सक्रिय नक्सलियों मे 40% हिस्सेदारी महिलाओं की हो गई है ।कोई भी महिला खुद की मर्जी से नक्सली नहीं बनना चाहती है ।कई महिलाएं समाज एवं परिवार वालों की दुत्कार एंव प्रताडनाओ से तंग होकर बेबसी की हालत में नक्सली संगठन में शामिल हो जाती है तो वहीं कुछ महिलाओं का अपहरण करके उन्हें जबरन बंदूक की नौक पर नक्सली संगठन में शामिल किया जाता है । नक्सली समाज में पुरुषों की भाती महिलाओं को भी बराबरी की ट्रेनिंग दी जाती है ताकी संकट के वक्त वह अपनी और अपने दल की सुरक्षा अच्छे से कर सके ।विभिन्न मुटभेडो में नक्सली बडी संख्या में घायल होते है इसलिए महिलाओं को पैरा मेडिकल इकाइयों में भी रखा जाता है ।

इन महिलाओं को घायलों की प्राथमिक चिकित्सा के लिए विशेष रूप से परिक्षण दिया जाता है ।इस संगठन में महिलाओं को एके 47 राइफल चलाने का भी परिक्षण दिया जाता है और इन महिलाओं को पुरूषों के बराबर का दर्जा दिया गया है ।महिलाओं को नक्सली संगठन में शामिल करने का सबसे बड़ा उद्देश्य यह है कि वह भीड़ में आसानी से घुल मिल जाती है और एक महिला होने के कारण उन्हें कोई शक भरी निगाह से नहीं देखता इसी का फायदा उठाकर वह अपने भयानक कारनामों को अंजाम देती है और इनका दूसरा प्रमुख उद्देश्य विभिन्न गांवों में घुमकर कम उम्र की बच्चियों को अपनी बातो से वरगला कर अपने दल में शामिल करना है ।

अब तक आपको मेरी बातों से यही लग रहा होगा कि नक्सली महिलाओं की स्थिति ज्यादा चिंतनीय नही है, उन्हें भी पुरुषों के बराबर अधिकार प्राप्त है ।लेकिन अब मै जो आपको बताने जा रही हूं उससे आपकी रूह कांप उठेगी ।नक्सलियों का सबसे आसान शिकार आदिवासी और गरीब बच्चियां होती है जिनकी उम्र 12 से 20 के बीच की होती है ।इन बच्चियों का इस्तेमाल दल के सदस्य यौन वस्तु के रूप में करते है।इन मासूम बच्चियों को नक्सली बंदूक की नौक पर अगवाह करते हैं और इसके बाद इन बच्चियों के साथ आए दिन संगठन के विभिन्न पुरूषों द्वारा यौन हिंसा और बलात्कार किया जाता है ।जब यह लडकियां गर्भवती हो जाती है तो इनका गर्भपात करवा दिया जाता है ।कम उम्र में गर्भपात होने के कारण बहुत सी बच्चियों की सासों की डोर टूट जाती है ।

जो लडकियां गर्भपात न करवा कर संगठन से विरोध करती है उन्हें सभी महिलाओं के सामने गोलियों से छलनी कर दिया जाता है ताकि दूदूसरी बार फिर से कोई महिला संगठन से विद्रोह करने की हिम्मत न जुटा सके ।अगर कोई महिला संगठन से भागने में कामयाब हो जाती है तो संगठन के पुरुष उस महिला के परिवार वालों का अपहरण कर उन्हें खुब मारते-पीटते एवं प्रताड़ित करते हैं ।परिवार वालों की पीड़ा देख उस महिला को थक हारकर उसी नर्क भरी जिंदगी में लौटना पडता है जहां से मुक्त होने के लिये वह छटपटाती रहती है ।संगठन में अगर कोई पुरुष संगठन की ही महिला से जबरन या फिर प्रेम विवाह भी कर लेता है तो उन्हें बच्चों को जन्म देने की अनुमति नहीं मिलती क्योंकि एक नक्सली माता-पिता भी नही चाहेंगे कि उनकी संतान उन्हीं की तरह अपने मासूम हाथों में बंदूक लेकर नक्सली बने ।

वह लोग भी आम आदमी की तरह अपने बच्चों को अच्छी परवरिश देने की चाहत में संगठन से विद्रोह करेंगे जिसके परिणामस्वरूप संगठन की एकता में दरार पड जाएगी।संगठन में महिलाओं से लुट, डकैती, हत्या, गर्भपात आदि जैसे अनेको गंभीर अपराध करवाए जाते हैं ।लेकिन अब सरकार ने नक्सली महिलाओं को बचाने के लिए कडा रूख अपनाया है ।सरकार इन महिलाओं को नए सिरे से जीवन की शुरूआत करने के लिए मुआवजे के रूप में धन राशि, भूमि और नौकरी दे रही है, जिससे यह महिलाएं अपनी पूरानी कडवी यादों से उभर कर आत्मनिर्भरता के साथ समाज में सर उठाकर इज्जत के साथ जी सके।