पुण्यतिथि विशेष: वित्त मंत्री को इस्तीफे के लिए बाध्य कर दिया था फिरोज गांधी ने

फिरोज गांधी ने 1957 में लोकसभा में मुंधड़ा-एल.आई.सी घोटाले का मामला जोरदार ढंग से उठाया था. इस कांड में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री टी. टी. कृष्णामाचारी को अंततः इस्तीफा देना पड़ा. जबकि कृष्णमाचारी प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के खास करीबी माने जाते थे.

उससे पहले फिरोज गांधी ने एक अन्य बड़े उद्योपति के भ्रष्टाचार का मामला उठाया और उस उद्योगपति को जेल जाना पड़ा था. लाइफ इंश्योरेंस ऑफ इंडिया एक्ट, 1956 पास करवाने के पीछे भी फिरोज गांधी की महत्वपूर्ण भूमिका थी.

फिरोज गांधी ने 16 दिसंबर 1957 को लोकसभा में अपना यादगार भाषण दिया

इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी ने यह सब इस बात के बावजूद किया कि वे सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी के सांसद थे. मुंधड़ा घोटाला आजादी के बाद का सबसे बड़ा घोटाला था जिसके कारण एक मंत्री को इस्तीफा देना पड़ा था.

दरअसल एल. आई. सी ने कलकत्ता के व्यापारी हरिदास मुंधड़ा की एक कंपनी के एक करोड़ 26 लाख रुपए मूल्य के शेयर खरीद लिए थे जबकि उस कंपनी की कोई साख नहीं थी. इससे एल.आई.सी को 37 लाख रुपए का घाटा हुआ.

शेयर खरीदते समय अन्य किसी कंपनी को ऐसा अवसर नहीं दिया गया. एल. आई. सी ने मुंधड़ा कंपनी से व्यक्तिगत तौर पर बातचीत की और उसके शेयर खरीद लिए. ऐसा उच्चस्तरीय साठगांठ के तहत किया गया था.

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यह मामला पहले अखबार में छपा. फिर फिरोज गांधी ने लोकसभा में जोरदार ढंग से उठाया. मुंधड़ा घोटाले पर फिरोज गांधी ने 16 दिसंबर 1957 को लोकसभा में अपना यादगार भाषण दिया.

इस मामले की बारी-बारी से दो जांचें हुईं. वित्त मंत्री को इस्तीफा देना पड़ा. इस प्रकरण के बाद जवाहर लाल नेहरू से फिरोज गांधी का संबंध पहले से भी अधिक खराब हो गया. कई कारणों से इंदिरा-फिरोज की शादी सफल नहीं रही. लंदन स्कूल ऑफ इकॉनोमिक्स में शिक्षा पाए निर्भीक फिरोज गांधी अपने ढंग से जिए. उन्हें प्रधानमंत्री आवास में रह कर दोयम दर्जे का जीवन जीना मंजूर नहीं था.

इलाहाबाद के एक छोटे व्यवसायी परिवार में 12 सितंबर 1912 को जन्मे फिरोज जहांगीर गांधी, नेहरू परिवार के करीबी रहे. आजादी की लड़ाई के दिनों में वे कमला नेहरू के साथ सक्रिय रहते थे. परंतु 1936 में अपने निधन से ठीक पहले कमला नेहरू ने अपने पति जवाहर लाल से कहा था कि वह इंदु की फिरोज से शादी न होने दें.

याद रहे कि फिरोज और इंदिरा की दोस्ती तब हुई थी जब दोनों लंदन में पढ़ने के लिए गए थे. इंदिरा गांधी ऑक्सफोर्ड में पढ़ती थीं. अपनी मां कमला नेहरू के निधन के पांच साल बाद इंदिरा गांधी ने अपने पिता से कहा कि वह फिरोज से शादी करना चाहती हैं. नेहरू इस पर दुःखी हुए. उन्होंने विजय लक्ष्मी पंडित और पद्मजा नायडु से मदद मांगी. कोई नतीजा नहीं निकला. आखिर शादी के लिए उन्हें राजी होना पड़ा.

उधर कटृटरपंथी हिंदुओं के साथ-साथ कट्टरपंथी पारसियों ने भी इस अंत:धर्म विवाह के खिलाफ नेहरू परिवार को यहां तक कि गांधी जी को भी धमकियां दी थीं.

अंत में जवाहर लाल नेहरू को इस पर एक वक्तव्य जारी करना पड़ा. उन्होंने कहा कि ‘शादी एक निजी और पारिवारिक मामला है जिसका खास संबंध विवाह करने वालों से और कुछ थोड़ा संबंध उनके परिवारों से भी है. मेरा बहुत पहले से यह नजरिया रहा है कि मां-बाप को इस मामले में सलाह जरूर देनी चाहिए, मगर आखिरी फैसला उन्हीं पर छोड़ देना चाहिए, जिन्हें शादी करनी है और अगर वह फैसला खूब सोच समझने के बाद किया गया है तो उसे अमल में लाया जाना चाहिए. और मां-बाप को या दूसरे किसी को भी उसमें रोड़े अटकाने का कोई हक नहीं है. जब इंदिरा और फिरोज ने आपस में शादी करने का इरादा जाहिर किया, तो मैंने फौरन अपनी मंजूरी दे दी और उसके साथ ही अपने आशीर्वाद भी. ’

जवाहर लाल जी ने इस बारे में गांधी जी से भी परामर्श किया था. गांधी जी ने सलाह दी कि शादी कुछ बड़े पैमाने पर ही करनी चाहिए, यद्यपि वे स्वयं हमेशा सादगी से ही विवाह करने के पक्ष में रहते थे.

इंदिरा की शादी मार्च, 1942 में रखी गई थी

गांधी जी का तर्क था कि धूम धाम से शादी नहीं होने पर लोग यही समझेंगे कि जवाहर लाल साथ देने को राजी नहीं हैं जो उनके और खुद इंदिरा के मामले में सही नहीं होगा. इस तरह इंदिरा की शादी धूम धाम से करने के लिए राजी होना पड़ा.

इंदिरा की शादी मार्च, 1942 में रखी गई थी. विवाह वैदिक रीति से हुआ. उसमें डेढ़ घंटे लगे. खूब बड़ा शामियाना ताना गया था. सारे देश से बहुत से मेहमान आए थे.

Daughter of India's NAtive Leader Indira Nehru

इस संबंध में जवाहर लाल की बहन कृष्णा हठीसिंग लिखती हैं कि ‘मार्च में शादी का वह दिन भी बहुत सुंदर और सुहावना था. खूब धूप खिल रही थी. इंदिरा ने केसरिया रंग की साड़ी पहनी थी, जिसमें चांदी के छोटे-छोटे फूल टंके हुए थे. साड़ी का सूत उसके पिता जी ने अपने जेल के दिनों में काता था. सोने -चांदी के आभूषणों के बदले उसे फूलों के गहनों से सजाया गया था, जैसा कि काश्मीरियों में रिवाज है. वह हमेशा की तरह शांत और गंभीर लग रही थी. परंतु चेहरे की दमक उसके आंतरिक उच्छाह को उजागर किये दे रही थी. देखने में सुंदर और प्रिय वह उस समय और भी सुदर्शन और प्यारी लग रही थी. उसका छरहरा बदन स्वर्गिक आभा से मंडित हो उठा था.

विवाह की वैदिक विधि भी बहुत ही सुंदर और सादगीपूर्ण थी. ठीक समय, शुभ मुहूर्त में, उसे जवाहर लाल लेकर शामियाने में आए, जहां फिरोज अपने परिवार के साथ बैठे उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे.

फिरोज खादी की शेरवानी और चूड़ीदार पायजामा पहने हुए थे,जैसा कि उत्तर प्रदेश में रिवाज है. हवन कुंड के सामने दुल्हा और दुल्हन पास- पास बिठाए गए. दुलहिन के एक ओर उसके पिता बैठे. उसके पास वाला आसन खाली था. सिर्फ एक मसनद रखा हुआ था जो इस बात का प्रतीक था कि यह दुलहिन की मां का आसन है जो खुशी का यह दिन देखने के लिए जीवित न रह सकीं.

जवाहर ने अपनी बेटी का हाथ दुल्हे के हाथ में थमा दिया. एक दूसरे का हाथ थामे, पंडित जी द्वारा बोले हुए शादी के पवित्र मंत्रों और प्रतिज्ञाओं का उच्चारण करते हुए, दोनों ने सप्तपदी की, अग्नि के सात फेरे करने की, परंपरागत रस्म पूरी की.

इंदिरा और फिरोज सुहाग रात मनाने के लिए कश्मीर चले गए और कुछ समय वहीं रहे. इंदिरा और फिरोज लौटकर इलाहाबाद रहने लगे. 1946 में जवाहर लाल नेहरू ने गोविंद बल्लभ पंत से कह कर फिरोज को संविधान सभा का सदस्य बनवा दिया. बाद में वह नेशनल हेराल्ड-नवजीवन-कौमी तंजीम के प्रकाशक एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड के एम. डी. बनाए गए.

1960 में पड़े दूसरे दौरे को फिरोज गांधी झेल नहीं सके

फिरोज अंतरिम संसद के भी सदस्य बने. वे 1952 और 1957 में राय बरेली से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा के सदस्य चुने गए. 1944 में राजीव गांधी और 1946 में संजय गांधी का जन्म हुआ.

हालांकि समय के साथ फिरोज और इंदिरा के बीच संबंध बिगड़ता चला गया. फिरोज और इंदिरा दिल्ली में अलग -अलग रहते थे. एसोसिएटेड जर्नल्स से हटने के बाद रामनाथ गोयनका ने फिरोज गांधी को इंडियन एक्सप्रेस में कोई बड़ा काम दे दिया था.

उन्हें बड़ी गाड़ी भी मिली थी. पर उसे नेहरू ने अच्छा नहीं माना तो गोयनका ने गाड़ी वापस ले ली. उधर फिरोज गांधी अपने स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं दे पाए. 1958 में उन्हें पहली बार दिल का दौरा पड़ा था. 1960 में पड़े दूसरे दौरे को फिरोज गांधी झेल नहीं सके.

यह विडंबना ही कहा जाएगा कि जब राजनीति में आदर्शों का दौर था तो नेहरू परिवार की एक लड़की इंदिरा ने ऐसे व्यक्ति से शादी की जिसने देश के उस समय के सबसे बड़े घोटाले को लेकर एक केंद्रीय मंत्री की छुट्टी करा दी. दूसरी ओर मौजूदा अर्थ युग में उसी परिवार की एक लड़की प्रियंका की ऐसे व्यापारी से शादी हुई जिस पर घोटाले के आरोप लग रहे हैं.

 

 

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