बुंदेलखंड के युवाओं ने परिवार की भूख मिटाने छोड़ा गांव

23 साल के पप्पू के गांव में पानी का संकट अभी से गहराने लगा है, कुएं सूख चले हैं, खेती की जमीन खाली पड़ी है. साथ ही गांव और आसपास कहीं काम नहीं है. इसलिए वह अपने कुछ युवा साथियों के साथ अपने और परिवार के अन्य सदस्यों की भूख मिटाने का इंतजाम करने दिल्ली जा रहा है.

पप्पू बुंदेलखंड के छतरपुर जिले की बिजावर तहसील के अमरपुर गांव का निवासी हैं और आदिवासी समुदाय से आते हैं. वह बताते हैं, “मैंने कभी ऐसा सूखा नहीं देखा, मौसम ठंड का है और पीने के लिए पानी की समस्या खड़ी होने लगी है. कुएं सूख चले हैं, तालाब में पानी मुश्किल से जानवरों के पीने लायक बचा है.”

अमरपुर के ही 25 साल के वीरेंद्र पटेल भी काम की तलाश में दिल्ली आये हैं. वीरेंद्र कहते हैं, “पहले तो गांव में ही काम मिल जाता था, जिसके चलते परिवार का जीवन चलता रहता था. इस बार तो गांव में भी काम नहीं है और अगर काम है तो मजदूरी पाने के लिए कई-कई माह तक भटकना पड़ता है. उसके गांव से लगभग 25 फीसदी आबादी काम की तलाश में पलायन कर चुकी है. गांव में रहेंगे तो भूखों मरने की नौबत आ जाएगी. माता-पिता को भी रोटी मिल जाए, इसलिए दिल्ली जा रहा हूं.”

खजुराहो रेलवे स्टेशन से निजामुद्दीन जाने वाली संपर्क क्रांति एक्सप्रेस से दिल्ली जा रहे खजुराहो के राकेश अनुरागी कहते हैं कि यहां काम है नहीं, दिन भर फालतू रहें, इससे अच्छा है कि दिल्ली जाएं. वहां कम से कम कुछ तो काम मिल जाएगा. जो पैसा बचेगा उससे परिवार की मदद हो जाएगी. यहां मनरेगा में काम करो तो पैसा कई माह बाद मिलता है. तब तक तो भूखों मरने की नौबत आ जाएगी.”

बुंदेलखंड वह इलाका है, जिसमें मध्यप्रदेश के छह जिले छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना, दमोह, सागर व दतिया उत्तर प्रदेश के सात जिलों झांसी, ललितपुर, जालौन, हमीरपुर, बांदा, महोबा, कर्वी (चित्रकूट) आते हैं. कुल मिलाकर 13 जिलों से बुंदेलखंड बनता है.

इस बार मानसून ने पूरे बुंदेलखंड के साथ दगा किया है. एक तरफ मानसून ने साथ नहीं दिया तो दूसरी ओर सरकारों की ओर से वह प्रयास नहीं किए गए, जिनके जरिए बरसे पानी को रोका जा सकता. वैसे भी यह इलाका बीते तीन सालों से सूखे की मार झेल रहा है.

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