भारत में फिल्म वितरण श्रृंखला से संबंधित बाजार अध्ययन,

नयी दिल्ली,14 अक्टूबर 2022,भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (‘आयोग’) ने आज ‘भारत में फिल्म वितरण श्रृंखला से संबंधित बाजार अध्ययन: प्रमुख निष्कर्ष एवं विचार’ शीर्षक एक रिपोर्ट जारी की। यह अध्ययन विभिन्न हितधारकों द्वारा चिन्हित किए गए फिल्म वितरण श्रृंखला में प्रतिस्पर्धा से संबंधित कुछ प्रमुख मुद्दों पर प्रकाश डालता है।

ऐसा करने के क्रम में, यह अध्ययन वितरण श्रृंखला में उत्पादन, वितरण या प्रदर्शन के स्तर पर जुड़े विभिन्न एसोसिएशनों की भूमिका, कुछ चुनिंदा प्रतिष्ठानों की बेहतर शक्ति एवं परिणामी असंतुलन, विभिन्न स्तरों पर मौजूद बाधाएं; जोखिमों का असमान वितरण; राजस्व साझा करने की व्यवस्था; सिनेमा में नई प्रौद्योगिकियां; प्रदर्शन के स्तर पर बांधने और सूत्रबद्ध करने से जुड़ी व्यवस्था आदि के बारे में चर्चा करता है।

इस अध्ययन के निष्कर्षों के आधार पर और अपने हिमायत संबंधी दायित्वों के तहत आयोग ने फिल्म उद्योग को विभिन्न श्रेणी के हितधारकों के लिए कुछ स्व-नियामक उपायों को विकसित करने की सिफारिश की है। इन स्व-नियामकों में शामिल हैं:

मल्टीप्लेक्सों एवं निर्माताओं से संबंधित

अनुबंध के मानक प्रारूपों के स्थान पर, जरूरतों के मुताबिक तैयार किए गए व्यवस्थाओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। राजस्व को साझा करने के मामले में, मौजूदा क्रमिक रूप से न्यून मान (स्लाइडिंग स्केल) वाली व्यवस्थाओं की तुलना में समग्र समझौतों को प्राथमिकता दी जा सकती है, जिसके तहत पहले से की गई बातचीत में तय दोनों पक्षों के बीच निर्धारित प्रतिशतता के बंटवारे के आधार पर मल्टीप्लेक्स और निर्माता फिल्म द्वारा अर्जित कुल राजस्व को साझा कर सकते हैं।
मल्टीप्लेक्स द्वारा फिल्मों के प्रचार पर होने वाले खर्चों को साझा करके निर्माताओं के साथ प्रचार के संबंध में उपयुक्त एवं उचित शर्तों पर विचार किया जा सकता है।
मल्टीप्लेक्सों को प्रदर्शन से संबंधित व्यवसाय पर ऐसे किसी भी प्रतिबंध से बचना चाहिए, जो निर्माताओं की व्यवसाय करने की स्वतंत्रता को प्रभावित करे।

बॉक्स ऑफिस पर होने वाले राजस्व संग्रह की रिपोर्टिंग

टिकटिंग से संबंधित लॉग और रिपोर्ट तैयार करने, उन्हें दर्ज करने व संभाल कर रखने हेतु बॉक्स ऑफिस की निगरानी प्रणाली को अपनाना चाहिए और ऐसी प्रणाली द्वारा एकत्र किए गए डेटा में किसी भी हितधारक द्वारा फेरबदल नहीं किया जाना चाहिए।
निर्माताओं को ऐसी निगरानी प्रणालियों की जांच करने और उनका उपयुक्त तरीके से काम कर पाना तथा उनमें छेड़छाड़ नहीं होना सुनिश्चित करने के लिए स्वतंत्र लेखा परीक्षकों को सूचीबद्ध करना चाहिए।

वर्चुअल प्रिंट शुल्क (वीपीएफ)

मल्टीप्लेक्स को भुगतान किए गए वीपीएफ को सबसे पहले चरणबद्ध तरीके से हटाया जा सकता है। डिजिटल सिनेमा उपकरणों के लिए वीपीएफ-संचालित लीज मॉडल पर उनकी निर्भरता को देखते हुए, सिंगल-स्क्रीन के लिए वीपीएफ को धीरे-धीरे समाप्त किया जा सकता है।
जब तक वीपीएफ के निरस्त होने का निर्णय और उसका कार्यान्वयन नहीं हो जाता, तब तक डिजिटल सिनेमा उपकरण (डीसीई) प्रदाताओं और निर्माताओं को पारस्परिक रूप से स्वीकार्य वीपीएफ शुल्क के बारे में विचार – विमर्श करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वीपीएफ के कारण फिल्मों के प्रदर्शन में कोई व्यवधान न हो।

हितधारकों का एसोसिएशन

एसोसिएशनों को प्रतिबंध और बहिष्कार में शामिल होने और गैर-सदस्यों के साथ काम करने से फिल्म उद्योग को प्रतिबंधित करने से बचना चाहिए। इसके अलावा, एसोसिएशनों को ऐसे किसी अन्य आचरण में शामिल नहीं होना चाहिए जो पहले आयोग द्वारा प्रतिस्पर्धा-विरोधी पाया गया हो।
एसोसिएशनों को इस बात पर विचार करना चाहिए कि विभिन्न हितधारकों के बीच किसी भी असहमति को सुलझाने के लिए मध्यस्थता जैसे वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र को कैसे संस्थागत बनाया जा सकता है।
एसोसिएशनों को यह सलाह दी जाती है कि वे प्रतिस्पर्धा कानून के बारे में जागरूकता और प्रतिस्पर्धा अनुपालन की जरूरत के बारे में अपने संबंधित सदस्यों को शिक्षित करने वाले कार्यक्रम आयोजित करें।

डिजिटल सिनेमा

डिजिटल सेवा प्रदाता फिल्म प्रदर्शकों या निर्माताओं के साथ जो समझौते करते हैं, उसमें सौदेबाजी की शक्ति से संबंधित असंतुलन को कम करने के लिए बातचीत की गुंजाइश होनी चाहिए। साथ ही, एक तरफा उपधाराओं वाले दीर्घकालिक समझौतों से बचा जाना चाहिए।
आयोग ने फिल्म निर्माण, वितरण और प्रदर्शनी के विभिन्न पहलुओं के बारे में अपनी बहुमूल्य अंतर्दृष्टि देकर विभिन्न हितधारकों द्वारा दिए गए सहयोग की सराहना की। आयोग ने इस बात की पुरजोर आशा व्यक्त की कि सभी के सर्वोत्तम हित में विभिन्न घटकों द्वारा प्रतिस्पर्धा-विरोधी कार्य – प्रणालियों को नियंत्रित किया जाएगा, इस प्रकार नियामक हस्तक्षेप को सीमित किया जाएगा।

@ फोर्थ इंडिया न्यूज़ टीम

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