मोदी सरकार जवाब दे – बहुमत होने के बाद भी आखिर अब तक क्यों अटका महिला आरक्षण बिल ?

 

नितिन कुमार

 

लोकसभा 2019 चुनाव से पहले महिला आरक्षण बिल पेश कर खेल सकते है चुनावी इक्का?

संसद में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण का बिल 2010 में पास करा लिया गया था लेकिन लोकसभा में समाजवादी पार्टी, बीएसपी और राष्ट्रीय जनता दल जैसी पार्टियों के भारी विरोध की वजह से ये बिल पास नहीं हो सका। इसकी वजह है दलित, पिछड़े तबके की महिलाओं के लिए अलग से आरक्षण की मांग। कांग्रेस के पास 2010 में अपने दम पर बहुमत नहीं था लेकिन आज मोदी सरकार के पास ऐसी कोई मजबूरी नहीं है आखिर अब महिलाओं को उनका हक देने क्या दिक्कत है। सरकार राजनीतिक इच्छाशक्ति क्यों नहीं दिखा रही है।

मोदी सरकार पूरी तरह बहुमत पर है जिसके बावजूद भी महिला बिल, बिल में चला गया है। संसद में महिलाओं का औसत देखें तो विश्व का औसत जहां 22.6 फीसदी है। संसद में महिलाओं के आंकड़ें देखें तो रवांडा 63 फीसदी के स्तर पर हैं और नेपाल में 29.5 फीसदी महिलाएं संसद में हैं। अफगानिस्तान में 27.7 फीसदी और चीन की संसद में 23.6 फीसदी महिला सांसद हैं। पाकिस्तान में भी संसद में 20.6 फीसदी महिला सांसद हैं। वहीं भारत का औसत केवल 12 फीसदी है।

संसद में महिला आरक्षण बिल क्यों लटका है और लोकसभा में बहुमत होने के बावजूद फिर क्या दिक्कत है, क्या पार्टियों में राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी है और पुरुषवादी मानसिकता की वजह से टालमटोल की जा रही है। कोटे के भीतर कोटे की दलील में कितना दम है और क्या इन्हीं मुद्दों की वजह से महिला आरक्षण बिल लटका रहेगा, ये कुछ अहम सवाल हैं।

राजनीति में महिला भागीदारी कम होने का कारण है कि महिला आरक्षण बिल 20 साल से अटका हुआ है। ये बिल 1996 में पहली बार पेश हुआ था और 2010 में राज्यसभा से पास हो गया था लेकिन लोकसभा से पास नहीं हुआ है। सपा, बसपा और आरजेडी का विरोध और कोटे के भीतर कोटे की मांग के चलते ये बिल पास नहीं हो पाया।

संसद में महिला आरक्षण बिल 1996 में देवेगौड़ा सरकार ने पहली बार पेश किया था और इसका कई पुरुष सांसदों ने भारी विरोध किया था। फिर साल 2010 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में दोबारा पेश होने के बाद राज्यसभा में बिल पास हुआ लेकिन लोकसभा में आरक्षण बिल पास नहीं हो पाया। इतना ही नहीं लोकसभा में महिला आरक्षण बिल की कॉपी फाड़ी गई।