वीज़ा में बदलाव – आईआईटी के छात्रों के लिए अमेरिका के दरवाजे बंद

नई दिल्लीः दिसंबर 2016 में दिग्गज भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनियों से जिन आई.आई.टी. छात्रों को यू.एस. में जॉब का ऑफर मिला था उनका सपना अब तक साकार नहीं हुआ है। अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की वीजा पॉलिसी इसके लिए जिम्मेदार है। इस पॉलिसी का नतीजा यह हुआ कि देश के जिन बेहतरीन पेशेवरों को यू.एस. के लिए करोड़ों का ऑफर मिला था अब वे इससे कम पैकेज पर भी समझौता करने को मजबूर हैं। इससे कई संस्थानों की चिंता भी बढ़ गई है।

संस्थानों की चिंता बढ़ी
वैसे तो कंपनियां आई.आई.टी. ग्रैजुएट्स को हायर करने के लिए वायदे के मुताबिक पूरी कोशिश कर रही हैं लेकिन संस्थानों को आगामी प्लेसमैंट सीजन में यू.एस. ऑफर में गिरावट की चिंता सता रही है। अमरीका में सरकार बदलने के बाद पिछले साल दिसंबर में देश के अग्रणी आई.आई.टीज में यू.एस. ऑफर्स गिरकर एक अंक में आ गई हैं। इस स्थिति से निपटने के लिए आई.आई.टीज के प्लेसमैंट सैल इंटरनैशनल ऑफ र के लिए यू.एस. से परे मौके खोज रहे हैं।

अब यूरोपीय देश छात्रों की प्राथमिकता सूची में शामिल 
अब जापान, ताइवान, कनाडा, सिंगापुर और कुछ यूरोपीय देश छात्रों की प्राथमिकता सूची में शामिल होने लगे हैं। पिछले साल जिन आई.आई.टी. ग्रैजुएट्स को ऑफर मिला था उनमें से बहुत थोड़े ने अमरीका में काम करना शुरू कर दिया है। बाकी ने कंपनियों के भारत स्थित कार्यालय को ज्वाइन किया है या विदेश में वैकल्पिक ऑफर उनको दिए जा रहे हैं। उदाहरण के लिए माइक्रोसॉफ्ट ने छात्रों को कनाडा में जॉब पोजीशन ऑफर किया है। आई.आई.टी. बॉम्बे के एक ग्रैजुएट ने बताया, ‘‘छात्र जल्द ही कनाडा स्थित कार्यालय को ज्वाइन करने की सोच रहे हैं। हालांकि पैकेज में समानता नहीं है लेकिन ज्यादातर संगठनों के रैपुटेशन बहुत ज्यादा हैं। कंपनियों ने छात्रों से वायदा किया है कि जब 1 या 2 साल दूसरे जगह वे पूरा कर लेंगे और वीजा का प्रबंध हो जाएगा तो उनको यू.एस. शिफ्ट कर देंगे।’’

 

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